Motivational Concept: सोच अच्छी, तो सब अच्छा

punjabkesari.in Saturday, Apr 24, 2021 - 04:37 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ  
एक समय की बात है जब आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद फर्रूखाबाद में धर्म प्रचार के लिए रुके हुए थे। तभी एक मजदूरी से घर चलाने वाला व्यक्ति आया। वह अपने घर से महर्षि के लिए दाल-चावल बनाकर लाया। स्वामी जी ने उसके हाथों से बना भोजन सहर्ष स्वीकार कर लिया बल्कि भोजन लाने के लिए धन्यवाद भी किया।

धन्यवाद का शब्द सुनते ही एक ब्राह्मण ने कहा, ‘‘महर्षि ! आपने भोजन स्वीकार कर इस पर अहसान किया है किंतु आप भ्रष्ट हो गए हैं। आप संन्यासी हैं। यह हीन कुल का व्यक्ति है।
महर्षि ने मुस्कुराते हुए पूछ लिया,  ‘‘भई! यह तो बताओ कि क्या यह अन्न दूषित था? ब्राह्मण देवता बताओ तो।’’

हां, आपको यह स्वीकार नहीं करना चाहिए था क्योंकि यह अन्न दूषित ही था।

कैसे दूषित?...अन्न दो प्रकार से दूषित होता है। एक वह जो दूसरों को तकलीफ देकर,  उनका शोषण करके प्राप्त किया जाए।

और...दूसरा वह जहां भोजन बनाते समय कुछ ऐसा पदार्थ पड़ जाए जो खाने योग्य ही न हो। इन दो ही अवस्थाओं में भोजन को भ्रष्ट माना जाता है। मेरा मानना है कि इस व्यक्ति द्वारा लाया अन्न दोनों ही श्रेणी में नहीं आता। यह तो परिश्रम की कमाई का है। मैं इसे दूषित कैसे मान लूं? 

ऐसे में मैं कैसे भ्रष्ट हुआ? संभवत: आपका अपना मन मलिन है। तभी तो आपको दूसरों की चीजें मलिन नजर आती हैं। अपनी इस सोच को बदल लो, तभी अच्छा होगा। स्वामी जी ने इस प्रकार उस ब्राह्मण को झकझोर दिया। उसकी आंखें झुक गईं।
-सुदर्शन भाटिया-विभूति फीचर्स


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Jyoti

Recommended News

Related News