महाभारत के इस प्रसंग से मिलती है ये सीख, जीवन में 1 बार अपनाकर देखें
punjabkesari.in Saturday, Nov 30, 2019 - 05:15 PM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
अक्सर आप ने लोंगो को कहते सुना है कि अगर किसी के साथ अच्छा करो तो आपके साथ भी अच्छा हो होता है। परंतु साथ ही ये भी कहा जाता है कि कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिनके साथ चाहे जितना भी अच्छा करने की कोशिश कर लें या अच्छा व्यवहार कर लिया जाए लेकिन उनका स्वाभाव कभी नहीं बदलता। अर्थात दुष्ट इंसान के लिए आप कितना भी अच्छा आचरण कर लें या उसकी कितनी ही मदद कर लें, आप उसका स्वभाव नहीं बदल सकते। कहा जाता है ऐसे लोग केवल कुछ ही देर तक अच्छा रहा सकता है वह भी केवल तक तक जब तक वो किसी अच्छे इंसान की संगत में हो, बुरे लोगों के संपर्क में आकर वो फिर से अपने पुराने स्वभाव में लौट जाता है। ये कथन आज कल के समय में ही नहीं बल्कि प्राचीन समय से ही प्रचलित है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार महाभारत काल का सबसे प्रमुख पात्र कहे जाने वाले दुर्योधन से जुड़ा एक ऐसा ही प्रसंग प्रचलित है। जो उपरोक्त बताए कथन को सत्य साबित करता है।
दरअसल बात उस समय की है जब दुर्योधन हमेशा पांडवों के लिए षडयंत्र करता था लेकिन जब उसे युद्ध में गंधर्वों ने बंदी बना लिया तो पांडवों ने उसे छुड़ाया। कुछ देर उसे आत्मग्लानि हुई लेकिन थोड़ी ही देर बाद वो फिर पांडवों के खिलाफ साजिश में लग गया। आइए विस्तार से जानें इस प्रसंग के बारे में-
जुए में हारने के बाद वनवास के दौरान पांडव काम्यक वन में रह रहे थे। जब यह बात दुर्योधन को पता चली तो शिकार करने के बहाने उसने भी वहीं अपना शिविर बनवा लिया ताकि अपने ठाट-बाट दिखाकर पांडवों को जला सके। यहां किसी बात पर दुर्योधन का गंधर्वों से विवाद हो गया। गंधर्वों ने दुर्योधन को बंदी लिया। जब ये बात युधिष्ठिर को पता चली तो उसने अपने भाई दुर्योधन को बचाने के लिए और गंधर्वों की कैद से छुड़ाने के लिए अर्जुन और भीम से कहा। पांचों भाई दुर्योधन के कारण ही अपना राजपाठ हार कर वन में रह रहे थे, लेकिन उन्होंने अपने भाई को बंदी बनता देख उसकी मदद के लिए प्रण किया। पांडवों ने गंधर्वों को हराकर दुर्योधन को छुड़ा लिया।
इस घटना से दुर्योधन स्वयं को बहुत अपमानित महसूस करने लगा। उसके मन में आत्महत्या का विचार आता है और वह अन्न-जल त्याग कर उपवास के नियमों का पालन करने लगता है। यह बात जब पातालवासी दैत्यों को पता चलती है तो वे दुर्योधन को बताते हैं कि तुम्हारी सहायता के लिए अनेक दानव पृथ्वी पर आ चुके हैं। दैत्यों की बात मान कर दुर्योधन आत्महत्या करने का विचार छोड़ देता है और प्रतीज्ञा करता है कि अज्ञातवास समाप्त होते ही वह पांडवों का सर्वविनाश कर देगा।