महाशिवरात्रि: भगवान शिव के स्वरूप में सब कुछ शामिल है, उनसे बाहर कुछ भी नहीं

punjabkesari.in Friday, Feb 21, 2025 - 11:42 AM (IST)

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Maha Shivratri 2025: शिव परिवार के स्वरुप द्वारा प्रकृति का प्रत्येक पहलू उजागर होता है। जहां उनकी जटाएं पवित्रता की द्योतक गंगा को धारण किये हुऐ हैं वहीं उनके गले में मुण्ड-माला (महाकाल का रूप) और नीचे वाक चर्म सुसज्जित है जो की अशुद्धता का प्रतीक है। शुद्ध-अशुद्ध,दोनों ही शिव में आते हैं।उनके शिखर पर सुशोभित अर्द्धचन्द्र सौंदर्य का प्रतिक है तो वहीं शरीर पर लिप्त भस्म एक साधारण मनुष्य के लिए कुरूपता का चिह्न। उनकी गर्दन में कुंडलित सर्प का भोजन मूषक है, जो की उनके पुत्र गणेश जी का वाहन है। कार्तिकेय की सवारी मयूर है और मयूर का भोजन सर्प। माता शक्ति की सवारी बाघ है और शिव का वाहन बैल, जो कि बाघ का भोजन है।  

शिव कामनाशक हैं तो वहीं माता शक्ति उनकी अर्द्धांगिनी हैं और दोनों मिलकर एक परिवार के प्रतीक हैं और परिवार काम बिना संभव नहीं। एक बार फिर पता चलता है कि दोनों ही स्वरुप शिव के अंदर हैं।

शिव के आभूषण रुद्राक्ष हैं, तो माता के स्वर्ण मणि। भूत, प्रेत, पिशाच, देवी, देवता, सुर, असुर, आदि अस्तित्व के सभी स्तर उनके गण हैं। वह किसी को मना नहींं करते। इस प्रकार भगवान शिव के स्वरुप में सभी कुछ शामिल है, उनसे बाहर कुछ भी नहीं।

सृष्टि का सृजन माता आदि शक्ति से हुआ और उन्हीं से ही शिव उत्पन्न हुए। उन्होनें शिव की अर्द्धांगिनी बनना स्वीकार किया और उनके मिलन से सृष्टि के सभी पहलू उत्पन्न हुए। शिव और शक्ति का मिलन ही पूर्णता का प्रतीक है- जिसका न कोई आदि है न अंत। 

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते 

शिवरात्रि इसी पूर्णता को अपने अंदर अनुभव करने की रात है। किन्तु यह गुरु सानिध्य में, कुछ विशेष क्रियाओं, जैसे सनातन क्रिया, मंत्र जाप और हवन आदि, द्वारा ही संभव है।  हम सभी अपूर्ण हैं और यही अपूर्णता हमें जीवन भर कुछ खोजने के लिए मजबूर करती है। शिवरात्रि शिव को अनुभव करने की रात है, इस अनंत सृष्टि के साथ एक होकर पूर्ण होने की रात है- केवल बौद्धिक रूप से नहीं बल्कि गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान से।

अश्विनीजी गुरुजी 


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Content Editor

Prachi Sharma

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