Life changing teachings of Gautam Buddha: धन को लेकर महात्मा बुद्ध की ये शिक्षाएं आज भी उतनी सच हैं, जितनी कल थी
punjabkesari.in Tuesday, Nov 18, 2025 - 08:03 AM (IST)
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Life changing teachings of Gautam Buddha: भगवान बुद्ध का जन्म वैशाख मास की पूर्णिमा को हुआ था, इसलिए इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। भारतवर्ष में बुद्ध पूर्णिमा का पर्व हर्षोल्लासपूर्वक मनाया जाता है। इतिहासकारों के अनुसार बुद्ध के जीवनकाल को 563-483 ई.पू. के मध्य माना गया है। अधिकांश लोग नेपाल के लुम्बिनी नामक स्थान को बुद्ध का जन्म स्थान मानते हैं। बुद्ध पूर्णिमा का संबंध बुद्ध के जन्म से ही नहीं है, बल्कि इसी पूर्णिमा को वर्षों वनों में भटकने व कठोर तपस्या करने के पश्चात बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे बुद्ध को सत्य का ज्ञान हुआ था। इसके पश्चात महात्मा बुद्ध ने अपने ज्ञान के प्रकाश से पूरी दुनिया में एक नई रोशनी पैदा की और वैशाख पूर्णिमा के दिन ही कुशीनगर में उनका महापरिनिर्वाण हुआ भी था।

इस प्रकार देखें तो उनका जन्म, सत्य तथा ज्ञान की प्राप्ति और महापरिनिर्वाण एक ही दिन यानी वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। आज भौतिकतावाद और जीवन की आपाधापी के बीच बौद्ध जीवन मार्ग और महात्मा बुद्ध के संदेशों का महत्व और बढ़ गया है। बुद्ध की शिक्षाएं प्रत्येक काल एवं परिस्थितियों में मानवमात्र का मार्गदर्शन करती आई हैं। यही वजह भी है कि इनकी शिक्षाओं को विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण के दृष्टिगत स्कूलों के पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित किया गया है। बुद्ध का शाब्दिक अर्थ है जागा हुआ, एनलाइटेंड अर्थात् जिसे सत्य और आत्मज्ञान की प्राप्ति हो चुकी हो।
यहां इसका तुच्छ अर्थ केवल राजा शुद्धोधन के पुत्र सिद्धार्थ से नहीं है, बल्कि उनसे पहले भी अनेक समाधिस्थ व्यक्तियों को चैतन्यता, सत्य और जीवन के रहस्यों से साक्षात्कार होने के कारण बुद्ध की श्रेणी में रखा गया है। इस प्रकार देखें तो अपने को जानने की यह तपस्या और क्रिया बाद में भी तथा भविष्य में भी निरंतर चलती रहेगी।

यदि बुद्ध की शिक्षाओं को पढ़ें तो उनके अनुसार मनुष्य को सदैव शुभ कर्म करते हुए अशुभ तथा पाप कर्मों से विरक्त रहना चाहिए। यदि आदमी शुभ कर्म करे तो उन्हें बार-बार करना चाहिए, उसी में चित्त लगाना चाहिए क्योंकि शुभ कर्मों का संचय सुखकर होता है।
जिस काम को करके आदमी को पछताना न पड़े और जिसके फल को वह आनंदित मन से भोग सके, उसी काम को करना श्रेयस्कर है।
महात्मा बुद्ध का मानना था कि उच्च चरित्र, शील एवं सदाचार की सुगंध चन्दन, तगर तथा मल्लिका जैसे फूलों की सुगंध से भी बढ़कर होती है। मनुष्यों को चाहिए कि वे पाप कर्म न करें, प्रमाद से बचें और किसी भी मनुष्य की धन-संपत्ति पर कुदृष्टि न रखें।
धन की वर्षा होने पर भी आदमी की कामना की पूर्ति नहीं होती है। बुद्धिमान आदमी जानता है कि कामनाओं की पूर्ति में अल्प स्वाद है और दुख है। इसी प्रकार लोभ से दुख पैदा होता है, लोभ से भय पैदा होता है।
जो व्यक्ति लोभ से मुक्त है, उसके लिए न दुख है न भय है। जो शीलवान है, जो प्रज्ञावान है, जो न्यायवादी है, जो सत्यवादी है तथा जो अपने कर्तव्य को पूरा करता है, उससे लोग प्यार करते हैं।
वाणी से बुरा वचन न बोलना, किसी को कोई कष्ट न देना, विनयपूर्वक नियमानुसार संयत रहना यही बुद्ध की देशना है। बुद्ध अहिंसा में विश्वास रखते थे, इसलिए वह ‘न जीव हिंसा करो, न कराओ’ के सिद्धांत में विश्वास रखते थे। महात्मा बुद्ध की शिक्षाएं सदैव प्रासंगिक रहेंगी।

