प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्म का आनंद लेने एक बार जरुर जाएं लद्दाख
punjabkesari.in Monday, Dec 20, 2021 - 11:52 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Why to visit Leh Ladakh: अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य की छटा बिखेरता लद्दाख बर्फ से ढंके ऊंचे-ऊंचे पर्वतों से घिरा हुआ है पर यह क्षेत्र ज्यादातर बंजर ही है। श्रीनगर- लेह राष्ट्रीय राजमार्ग पर यात्रा करते समय रास्ते में निराले प्राकृतिक सौंदर्य के दृश्य देखने को मिलते हैं। मीलों तक फैले ऊंचे, नंगे, बर्फीले पर्वतों को देख कर लगता है न जाने कितने रहस्य अपने में समेटे ये र्निवकार और शांत खड़े हैं। आबादी का कहीं दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं है, पर तभी अचानक बीच में छोटी सी एक हरी-भरी घाटी दिखाई पड़ जाती है, जहां जिंदगी बड़ी ही सुस्त रफ्तार से रेंगती-सी दिखती है।
Leh Ladakh me Ghumne Ki Jagah: कच्चे मकान, इक्का-दुक्का चरते हुए जानवर...खुबानी से लदे पेड़, गांवों के बीचोंबीच बहती छोटी सी नदी पर कपड़े धोती पारंपरिक वेशभूषा में लद्दाखी बालिकाएं, वीराने में जीवन का ऐसा स्पंदन शायद ही कहीं और देखने को मिलेगा। हवाएं इतनी तेज एवं रुखी तथा धूप एकदम सीधी और त्वचा को बेधती है लेकिन हर परिस्थिति का डट कर सामना करना लद्दाखियों का स्वभाव है।
Why to visit Leh Ladakh: विशाल पर्वतों के साये में रह कर शायद लद्दाखियों ने धैर्य, सहिष्णुता, विश्वास और हर प्रकार की चुनौतियों का डट कर सामना करना सीख लिया है। इसलिए लद्दाख की अपनी अलग संस्कृति है, अलग ही जीवनशैली है। यह प्रदेश अपने विविध प्राकृतिक सौंदर्य से पर्यटकों को लुभाता है। पर्वतारोहियों को नून (7135 मी.), कुन (7077 मी.), वाइट नीडल (6500 मी.), पिनेकल (6930 मी.) और जैड- वन (6400 मी.) जैसी ऊंची-ऊंची चोटियों पर विजय प्राप्त करने की चुनौती भी देता है। नूबरा घाटी की काराकोरम की पहाड़ी चींटियों, पेड़- पौधों, ग्लेशियर आदि के प्राकृतिक सौंदर्य से सभी को अभिभूत कर देती हैं। अन्य रोमांचकारी खेलों जैसे कि ट्रैकिंग, केनोइंग राफ्टिंग वगैरह के लिए लद्दाख से बेहतर कोई जगह ही नहीं है।
Leh Ladakh Me Paryatan Sthal: इठलाती, बलखाती, ठाठें मारती सिंधु नदी इसी क्षेत्र से गुजरती हैं और साहसिक खेलों का मजा लेने वाले उत्साहियों को अपनी गोद में खेलने के लिए पुकारती है। इसके अलावा तीरंदाजी और पोलो जैसे रोमांचकारी खेलों का प्रदर्शन इस क्षेत्र की अपनी ही विशेषता है। रविवार के दिन तो लेह की रौनक अलग ही होती है, जहां पोलो और तीरंदाजी के खेल देखने के लिए बड़ी संख्या में स्थानीय लोग तो आते ही हैं पर पर्यटक भी इनका आनंद लेने में पीछे नहीं रहते हैं। यही नहीं इस निर्जन क्षेत्र के सौंदर्य में चार चांद भी लगाते हैं यहां की झीलें और झरने।
What is Leh Ladakh tourism: पानामिक, चूमाथांग और चांगथांग में गंधक के झरनों के पानी से जोड़ों के दर्द का इलाज होता है। सदियों से यहां के लोग प्राकृतिक जड़ी-बूटियों, खनिज युक्त झीलों और झरनों के जल से अपना इलाज करते आए हैं। 14000 फुट की ऊंचाई पर स्थित 150 कि.मी. लम्बी और 4 कि.मी. चौड़ी पैंगोंग झील और खारे पानी वाली टिसोमोरिरी झील को देखना कोई पर्यटक नहीं भूलता। इस झील का आधा हिस्सा चीन में पड़ता है।
दुनिया की सबसे ऊंची सड़क पर खड़ा होने का गौरव कौन महसूस नहीं करना चाहेगा? 18380 फुट की ऊंचाई पर खार्दुंगला दुनिया की सबसे ऊंची सड़क है, जहां मोटर गाड़ी द्वारा पहुंचा जा सकता है।
What to do in Ladakh India: सिंधू नदी के किनारे खालेस्ते और शैलाक सैलानियों के लिए विशेष आकर्षण के केंद्र हैं। यहां आज भी मूल आर्य नस्ल के डूक्रपा जनजाति के कुछ परिवार पारंपरिक रूप से जीवन व्यतीत कर रहे हैं। ये पांच गांवों में फैले हुए हैं। अभी सिर्फ दो गांवों दाह और बियामा तक ही पहुंचा जा सकता है । इन परिवारों की संख्या बहुत कम है। इनके नैन-नक्श प्राचीन आर्यों की तरह हैं और अपनी सभ्यता और संस्कृति को अभी तक ये बचाए हुए हैं। इसलिए अन्य लद्दाखियों से भिन्न इनकी जीवनशैली, परम्पराओं, संस्कृति, त्यौहारों, संगीत, कला आदि का अध्ययन करने के लिए देश-विदेश से अनेक अध्ययनकर्ता यहां आते हैं।
लद्दाख क्षेत्र का एक और महत्वपूर्ण पहलू यहां के धार्मिक स्थल हैं। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए तो यह क्षेत्र अत्यंत पवित्र स्थान है। भगवान बुद्ध को मनाने वाले लोग तिब्बत के बाद शायद लेह में ही सबसे अधिक होंगे। लेह स्थित पवित्र बौद्ध शांति स्तूप की भव्यता देख कर सभी धर्मों के लोग आलौकिक आनंद से भर उठते हैं।
वैसे तो लद्दाख क्षेत्र में ज्यादातर त्यौहार सर्दियों में ही मनाए जाते हैं लेकिन कुछ महत्वपूर्ण त्यौहार गर्मियों में भी मनाए जाते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है हेमिस मेला जोकि हर वर्ष जून या जुलाई में पद्मा समभवा की याद में मनाया जाता है। प्रतिवर्ष बौद्ध अनुयायियों, स्थानीय लोगों के अलावा विदेशी पर्यटकों की एक भारी भीड़ इस गुम्पा (पूजा स्थान) में इकट्ठी होती है और श्रद्धालु पारंपरिक रूप से नृत्य तथा गायन द्वारा ईश्वर को प्रसन्न करते हैं।
यह अनोखा क्षेत्र जहां साल में करीब 300 दिन सूर्य पूरी आबोताब के साथ चमकता है लेकिन रात इसके विपरीत ठंडी। आसमान एकदम निर्मल, नीला और साफ ऐसा कि आदमी एक-एक तारा गिन ले, अपनी शीतल चांदनी बिखेरता चंद्रमा जिसे निहारते हुए कभी आंखें न थकें। इसलिए इसे चंद्र प्रदेश भी कहा जाता है।
How to tour Ladakh: लद्दाख की आबादी दो जिलों लेह और कारगिल में बंटी हुई है। लद्दाख नवम्बर से जून तक देश के बाकी हिस्सों से लगभग कटा रहता है। श्रीनगर लेह राष्ट्रीय राजमार्ग और लद्दाख मनाली मार्ग भारी बर्फ की वजह से बंद हो जाता है। हवाई मार्ग खुला रहता है लेकिन उड़ानों का आना जाना मौसम पर निर्भर करता है। सर्दियों में तापमान शून्य से 30 से 60 डिग्री सैल्सियस नीचे तक पहुंच जाता है। द्रास दुनिया का दूसरा सबसे ठंडा आबादी वाला क्षेत्र है। सर्दी के मौसम में यहां तापमान शून्य से 50 या 60 डिग्री सैल्सियस नीचे तक पहुंच जाता है। कारगिल युद्ध के दौरान अक्सर द्रास का नाम समाचारों में आता रहा, जहां टाइगर हिल्स को आतंकवादियों के चंगुल से छुड़ाने के लिए भारतीय सेना को असाधारण रणनीति से काम लेना पड़ा था। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस तरह की भीषण सर्दी में जीवन निर्वाह कितना मुश्किल होगा।
गर्मी के चार पांच महीनों में ही लद्दाख में सामग्री, ईंधन, पैट्रोल तथा जरूरत की सभी चीजों का स्टाक करना पड़ता है, क्योंकि इस क्षेत्र को शेष दुनिया से जोड़ने वाले दोनों मार्ग बर्फ की ऊंची- ऊंची परतों से ढंक जाते हैं। कृषि और उद्योग की संभावनाएं भी अति समिति हैं। द्रास और कारगिल के लोगों को पाकिस्तान की तरफ से अकारण गोलाबारी का भी सामना करना पड़ता है।
प्रत्येक 12 वर्ष के बाद थांगका को पारंपरिक रूप से श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए प्रदर्शित किया जाता है। थांगका कपड़े का एक विशालकाय टुकड़ा होता है जिस पर धार्मिक चिन्ह चित्रित या अलंकृत होते हैं। अहिंसा, मानव जाति के लिए प्रेम, त्याग सहिष्णुता और सभी धर्मों के लोगों के साथ मिल-जुल कर रहने की भावना लद्दाखियों के स्वभाव में निहित है और वे सही अर्थों में भगवान बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का यथार्थ जीवन में पालन करते हैं। यही कारण है यहां सदियों से मुसलमान और बौद्ध मिल-जुलकर रह रहे हैं। लद्दाख की संस्कृति, भाषा, कला, परम्परा और जीवनशैली अध्ययनकर्ता और इतिहासविदों के सामने नए-नए आयाम प्रस्तुत करती है।