तपस्वी शिक्षक थे राधेश्याम, जानें उससे जुड़़ा ये किस्सा
punjabkesari.in Tuesday, May 25, 2021 - 06:33 PM (IST)

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श्रीराम कथा की विशिष्ट काव्य शैली में रचना करने वाले पंडित राधेश्याम कथावाचक संत-महात्माओं के सत्संग के लिए लालायित रहा करते थे। संत उड़िया बाबा, श्री हरिबाबा, आनंदमयी मां तथा संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी के प्रति वह अनन्य श्रद्धा भाव रखते थे। प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी की प्रेरणा से उन्होंने महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी को भी अपना गुरु बनाया था।
सब लोग पंडित राधेश्याम मालवीय जी के श्रीमुख से भागवत कथा सुनकर भाव-विभोर हो उठते थे। मालवीय जी को भी राधेश्याम जी की लिखी रामायण का गायन सुनकर अनूठी तृप्ति मिलती थी। वह समय-समय पर उन्हें बरेली से काशी आमंत्रित कर उनकी कथा का आयोजन कराते थे।
एक बार गुरु पूर्णिमा के अवसर पर पंडित राधेश्याम जी ने संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी के साथ काशी पहुंच कर अपने गुरु मालवीय जी को एक कीमती शॉल व मिठाइयां भेंट कीं। मालवीय जी को आग्रहपूर्वक शॉल ओढ़ाया गया था। यह शॉल उन्होंने विशेष रूप से गुरु दक्षिणा के लिए तैयार कराया था। कुछ समय बाद अचानक ङ्क्षहदू विश्वविद्यालय के दक्षिण भारतीय संस्कृत शिक्षक मालवीय जी के दर्शन के लिए आ पहुंचे। मालवीय जी उनके विरक्त एवं तपस्वी जीवन से बहुत प्रभावित थे।
उन्होंने शिक्षक की ओर संकेत कर राधेश्याम कथावाचक से कहा, ‘‘इन्होंने कठोर साधना कर असंख्य छात्रों को देववाणी और धर्मशास्त्रों का अध्ययन कराया है। ऐसे तपस्वी शिक्षक हमारे आदर्श हैं।’’
कहते-कहते उन्होंने वह शॉल उन्हें ओढ़ा दिया। राधेश्याम जी उनकी विरक्ति भावना और आदर्श शिक्षक के प्रति श्रद्धा देख दंग रह गए।