कार्तिक मास के पहले प्रदोष पर बन रहे हैं शुभ योग, मिलेगी शनिदेव की खास कृपा
punjabkesari.in Saturday, Oct 22, 2022 - 01:39 PM (IST)

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हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने में दो प्रदोष व्रत रखे जाते हैंऐसे में कार्तिक मास का पहला प्रदोष व्रत 22 अक्टूबर को पड़ रहा है। शनिवार होने के कारण इसे शनि प्रदोष कहा जाएगा। मान्यता है कि शनि प्रदोष व्रत रखने से भगवान शंकर के साथ शनिदेव भी प्रसन्न होते हैं। कहा जाता है कि शनि प्रदोष व्रत पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ भी किया जाता है और कार्तिक मास में पड़ने वाले प्रदोष व्रत को बेहद शुभ माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार इस प्रदोष व्रत पर कई शुभ योग बी बन रहें हैं। जिस कारण इसका महत्व और भी बढ़ गया है। तो आईए जानते हैं-
ज्योतिष गणना के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्म योग शाम 05 बजकर 13 मिनट तक रहेगा। इसके बाद इंद्र योग शुरू होगा। इसके साथ ही इस दिन त्रिपुष्कर योग दोपहर 01 बजकर 50 मिनट शाम 06 बजकर 02 मिनट तक रहेगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इन शुभ योग में किए गए कार्यों में सफलता हासिल होने की मान्यता है।
बता दें, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर 2022, शनिवार को शाम 06 बजकर 02 मिनट से शुरू हो रही है। इस तिथि का समापन अगले दिन 23 अक्टूबर, रविवार को शाम 06 बजकर 03 मिनट पर होगा। त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष काल में शिव पूजन का विशेष महत्व है। ऐसे में शनि प्रदोष व्रत 22 अक्टूबर को रखा जाएगा।
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22 अक्टूबर को शाम 06 बजकर 02 मिनट से रात 08 बजकर 17 मिनट के बीच भगवान शिव के पूजन का शुभ मुहूर्त रहेगा। पूजन की अवधि 2 घंटे 15 मिनट की है।
प्रदोष व्रत में भोलेनाथ की पूजा संध्या काल में की जाती है। सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल शुरु होता है। इस दिन पूजा के लिए साधक को ढाई धंटे का समय मिलेगा। ऐसे में इस दौरान छोटे छोटे उपाय ज़रूर करें।
शनि की अशुभता को कम करने के लिए इस दिन स्नान कर शिवलिंग पर काले तिल अर्पित करें। कहते हैं इससे आर्थिक स्थिति में सुधार आता है और जीवन के समस्त कलह-क्लेश दूर हो जाते हैं।
शनि प्रदोष व्रत में जरुरतमंदों को अन्न, वस्त्र या जूते-चप्पल का दान करना बहुत पुण्यकारी होता है। मान्यता है इससे शनि देव बहुत प्रसन्न होते हैं और भक्त से जाने-अनजाने में हुए पापों का नाश होता है।
शनि प्रदोष व्रत में भोलेनाथ का प्रदोष काल में रुद्राभिषेक कर शिव चालीसा का पाठ और शनि देव का तेलाभिषेक शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। कहते हैं इससे पितृदोष और साढ़ेसाती के अशुभ प्रभाव में कमी आती है।