हिंदुओं और सिखों का पवित्र स्थान, स्नान करने से पूरी होती है हर इच्छा
punjabkesari.in Tuesday, Oct 26, 2021 - 09:04 AM (IST)

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Kapal Mochan Tirth: मोचन तीर्थ यमुनानगर जिले के बिलासपुर में हिंदुओं और सिखों का स्थान है। पुराणों में कपाल मोचन तीर्थ का प्राचीन नाम गोपाल मोचन और सोमेसर मोचन था। इसका वर्णन महाभारत और वामन महापुराण में वर्णित है। स्कन्द पुराण के अनुसार कपाल मोचन तीर्थ ब्रह्महत्या नाशक व सभी प्रकार के ऋणों से मुक्ति प्राप्त करने का एकमात्र स्थान है। प्राचीन काल में गद्य कल्प में ब्रह्मा जी ने यज्ञ करवाने के लिये तीन कुंड बनवाये। यह तीनों कुंड ही प्लक्ष, सोमसरोवर व ऋणमोचन कहलाये। सोम सरोवर का ही नाम भगवान शंकर जी ने कपाल मोचन रखा। त्रेता युग में भगवान श्री राम रावण का वध करने के बाद ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के लिये परिवार संहित इस तीर्थ पर पधारे थे। द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण जी भी पांडवों संहित यहां पर पधारे थे। पांडवों ने गुरु द्रोणाचार्य का वध करने के पश्चात ब्रह्महत्या के पाप से इसी स्थान पर मुक्ति पाई थी।
श्री गुरू नानक देव जी भी यहां पर आये थे और उन्होंने भी यहां पर मानवता का संदेश दिया था। सन 1688 में भांगानी की लड़ाई के बाद श्री गुरु गोबिंद सिंह जी भी कपालमोचन पधारे और पहाड़ी शासकों के खिलाफ इस विजयी युद्ध में लड़े सैनिकों को सम्मान स्वरूप पगड़ी भेंट की थी और इसी स्थान पर 52 दिन ठहरे थे। उन्होंने कपालमोचन व ऋणमोचन में स्नान किया व अपने अस्त्र-शस्त्र धोये थे। कपालमोचन व ऋणमोचन सरोवर के बीच में एक अष्टकोण आकार का गुरूद्वारा भी स्थित है, जहां पर श्रीगुरू गोबिंद सिंह जी ने वरदान दिया था - जो भी कार्तिक पूर्णिमा पर गुरूपूर्व के अवसर पर यहां पर कोई भी मनोकामना करेगा उसकी मनोकामना शीघ्रातीशीघ्र पूरी होगी। जिस कारण इस दिन लाखों सिख संगत यहां पर श्रीगुरू नानक देव जी का प्रकाश पर्व मनाती है। श्रीगुरू नानक देव जी इस स्थान पर एक बार व श्रीगुरू गोबिंद सिंह जी यहां पर दो बार पधारे हैं व इसी ही स्थान पर अपना घोड़ा भी बांधा था।
पहला स्नान कपाल मोचन- स्कन्द महापुराण के अनुसार कलयुग के प्रभाव से ब्रह्मा जी के मन में अपनी पुत्री सरस्वती के प्रति मन में बुरे विचारों ने प्रवेश किया। इससे बचने के लिए सरस्वती ने द्वैतवन में भगवान शंकर से शरण मांगी। सरस्वती की रक्षा के लिए भगवान शंकर ने ब्रह्मा का सिर काट दिया, जिससे उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा। इससे शंकर भगवान के हाथ में ब्रह्मा कपाली (काले रंग की खोपड़ी) का निशान बन गया था। सब तीर्थों में स्नान और दान करने के बाद भी वह ब्रह्मा कपाली का चिन्ह दूर नहीं हुआ। घूमते-घूमते भोलेनाथ पार्वती सहित कपालमोचन तालाब के निकट देव शर्मा नामक एक ब्राह्मण के घर साधु के रूप में ठहरे।
रात के समय ब्राह्मण देव शर्मा के आश्रम में गाय का बछड़ा गौ माता से बात कर रहा था कि सुबह ब्राह्मण उसे जान से मार देगा। इससे क्रोधित बछड़े ने कहा कि वह ब्राह्मण की हत्या कर देगा। इस पर गौ माता ने बछड़े को ऐसा करने से मना कर दिया क्योंकि बछड़े को ब्रह्मा हत्या का पाप लग जायेगा। इस पर बछड़ा अपनी माता से कहने लगा कि मैंने कपालमोचन सरोवर में काले कौवे को तालाब में स्नान कर सफेद होता हुआ देखा है और कहा- जब काले कौवे का काला रंग मिट सकता है तो ब्रह्म हत्या का पाप भी मिट सकता है। जब बछड़े ने उस ब्राह्मण को मार दिया। जिस कारण बछड़े का रंग काला पड़ गया तब बछड़े ने कपालमोचन सरोवर में स्नान किया और और फिर से सफेद हो गया परन्तु बछड़े के सींग व पैर काले ही रह गये क्योंकि सींग पानी से ऊपर थे व पांव सरोवर की मिटटी में धंसे होने कारण सफेद नहीं हो पाये इसी ही कारण से गाय व बछड़े के सींग व पांव काले रहते हैं और इसी ही घटना के प्रतीकस्वरूप कपालमोचन के घाट पर गऊ बछड़े का मंदिर स्थापित है।
जब माता पार्वती ने इस सारी घटना को देखा व शिवजी को बताया तब शिवजी ने भी इसी सरोवर में स्नान कर दान-पुण्य किया तब कहीं उनके बाजू पर बना ब्रह्मकपाल का चिन्ह मिट पाया था एवं वह ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हुए थे। शिवजी ने इसी सरोवर में स्नान किया। इससे उनका ब्रह्मा कपाली दोष दूर हो गया। इसलिए भगवान शंकर जी ने सोम सरोवर के इस क्षेत्र का नाम कपाल मोचन रखा था।
दूसरा स्नान ऋणमोचन- पौराणिक इतिहास के आधार पर व जनश्रुतियों के अनुभव के आधार पर कहा जाता है कि - ऋण मोचन सरोवर में स्नान करने से मनुष्य सभी प्रकार के ऋणों से मुक्त हो जाता है चाहे वह धन का ऋण, माता-पिता ऋण, भ्राता व भगनी, मित्र या गुरू ऋण ही क्यों न हो। इसी ही सरोवर पर भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों सहित पिंडदान करवाया था व पितृऋण से मुक्त हुए थे। पितृ ऋण से मुक्त होने के कारण ही इसी सरोवर का नाम ऋणमोचन नाम से मशहूर हुआ।
तीसरा स्नान सूरज कुंड - पौराणिक इतिहास के आधार पर व जनश्रुतियों के अनुभव के आधार पर कहा जाता है कि - सिंधु वन के इस पवित्र स्थान पर माता कुंती ने सूर्यदेव की उपासना की थी, जिसके कारण पुत्र के रूप में कर्ण की प्राप्ति हुई थी। सूरजकुंड सरोवर में स्नान करने से आत्मिक शांति व शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है व ज्ञान में वृद्धि होती है।
Sanjay Dara Singh
AstroGem Scientists
LLB., Graduate Gemologist GIA (Gemological Institute of America), Astrology, Numerology and Vastu (SSM).