यहां देवी की प्रतिमा की नहीं बल्कि होती है इनकी पूजा, वजह ऐसी कि हो जाएंगे दंग

punjabkesari.in Sunday, Jun 23, 2019 - 02:57 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
मासिक धर्म जिसे हम आम भाषा में पीरियड्स कहते हैं। ये एक विषय है जिसके बारे में जानते तो हैं लेकिन इस पर बात करना किसी को गवारा नहीं है। यहां तक कि हर महीने मासिक धर्म से गुज़रने वाली महिलाएं तक इस विषय पर किसी के आगे बात करने में कतराती हैं। कई जगहों पर इसके दौरान लड़कियों और औरतों पर कई तरह की बंदिशें लगाई जाती है। यहां तक कि उन्हें पूजा-पाठ से दूर रखने के साथ-साथ रसोई तक में जाने की अनुमति नही होती। 

Periods में औरतों को क्यों माना जाता है अछूता ? (VIDEO)

इन सब बातों से यही साबित होता है कि मासिक धर्म को अपवित्र माना जाता है। मगर क्या आपको पता है कि इसी अपवित्रता को हमारे देश के एक मंदिर में पूजा जाता है। जी हां, भारत के गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर स्थित कामाख्या माता मंदिर में मां खुद रजस्वला अवस्था से गुज़र जाती हैं। मान्यताओं के अनुसार यहां हर साल 3 दिन के लिए मां कामाख्या रजस्वला होती हैं। मंदिर के पुजारियों का कहना है कि इस दौरान इस शक्ति पीठ की शक्ति और अधिक बढ़ जाती है।
PunjabKesari, कामाख्या माता मंदिर, कामाख्या वेवी मंदिर, कामाख्या मंदिर, Kamakhya Temple

आइए जानतें हैं इस मंदिर के बारे में-
बता दें कि 3 दिन की महावारी के दौरान इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। दोस्तों हम जानते हैं इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है लेकिन ये बात बिल्कुल सच है। कहते हैं माता रानी की शक्ति में जो लोग विश्वास करते हैं वे यहां आकर अपने आप को धन्य मानते हैं।  वहीं जो लोग इस बात पर यकीन नहीं करते वो ये चमत्कार देख माता के चरणों में शीश झुका देते हैं और देवी के भक्त बन जाते हैं।
PunjabKesari, कामाख्या माता मंदिर, कामाख्या वेवी मंदिर, कामाख्या मंदिर, Kamakhya Temple
बताते चलें कि असम के नीलांचल पर्वत पर समुद्र तल से करीब 800 फीट की ऊंचाई पर स्थित ये चमत्कारी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से भी एक है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव जब देवी सती के शव को लेकर पूरे ब्रह्मांड में भ्रमण करने लगे थे। तब इस स्थान पर देवी सती की योनि गिरी थी। जिसे अब मां कामाख्या मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा यहां विराजित देवी को रक्त की देवी भी कहा जाता है। लेकिन दोस्तों इस मंदिर के बारे में अब जो हम बताने जा रहे हैं वो आपको हैरान कर देगा। वो है कि इस स्थान पर काम्ख्या मां की प्रतिमा की पूजा नहीं की जाती बल्कि एक योनि के रूप में माता रानी की पूजा होती है। कहते हैं कि हर साल जून के महीने में 3 दिन मां को मासिक धर्म के चक्र में होती है। उनके शरीर से रक्त निकलता है। इस बात की सबूत देती है ब्रह्मपुत्र नदी। इस नदी के पानी का रंग मां के रक्त श्राव से लाल हो जाता है।

कहीं आपका बार बार गर्भपात तो नहीं हो रहा ? (VIDEO)

इसी वजह से हर साल तीन दिनों के लिए ये मंदिर पूरी तरह से बंद कर दिया जाता है। ऐसे में माना जाता है कि इन तीन दिनों के दौरान इस शक्तिपीठ की अध्यात्मिक शक्ति काफी बढ़ जाती है। जिस वजह से देश के विभिन्न भागों से तंत्रिक इन दिनों में आस-पास की गुफाओं में रहकर साधना करते हैं। इसके बाद चौथे दिन माता के मंदिर का द्वार खुलता है। और द्वार खुलते ही यहां भक्तों का मेला लग जाता है। माता के भक्त और साधक दिव्य प्रसाद पाने के लिए बेचैन हो उठते हैं। आपको बता दें ये दिव्य प्रसाद लाल रंग का वस्त्र होता है जिसे मां राजस्वला होने के दौरान धारण करती हैं। माना जाता है वस्त्र का टुकड़ा जिसे मिल जाता है उसके सारे कष्ट और विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं।
PunjabKesari, कामाख्या माता मंदिर, कामाख्या वेवी मंदिर, कामाख्या मंदिर, Kamakhya Temple


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Jyoti

Recommended News

Related News