Kalighat Kali mandir: रायपुर में स्थित मां काली का ऐसा मंदिर जहां दोपहर में पुरुषों का आना है वर्जित
punjabkesari.in Friday, Sep 15, 2023 - 06:45 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Kalighat Kali mandir: कालीघाट मंदिर देश के 51 शक्ति पीठों में से एक है। यह मंदिर पूरी दुनिया में बहुत मशहूर है। कहते हैं की कभी ये मंदिर गंगा घाट से बिल्कुल जुड़ा हुआ था लेकिन अब यह दूर हो गया है। इस मंदिर को 17वीं शताब्दी का माना जाता है। माता सती जब अग्नि में भस्म हुई थी, तब त्रास्त हुए भोलेनाथ ने उन्हें पूरी धरती का चक्कर लगवाया था। जहां-जहां पर मां के मृत शरीर के अंग गिरे थे, उन स्थानों को शक्तिपीठ कहा जाता है। इन्हीं में से एक है शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर
Specialty of Kalighat Kali Temple कालीघाट काली मंदिर की खासियत: कहते हैं की कालीघाट में मां सती के दाहिने पांव की अंगुली गिरी थी। अन्य मान्ताओं के अनुसार यहां मां के दाहिने पांव का अंगुठा गिरा था। पुराणों में मां काली को रौद्रावतार माना जाता है। उनकी प्रतिमा में देवी को विकराल रूप में दर्शाया जाता है लेकिन कालीघाट मंदिर में देवी मस्तक और चार हाथों के साथ नजर आती हैं। इस मंदिर में काली माता की जीभ बहुत लम्बी है और उनके दांत व जीभ सोने से बने हुए हैं।
Tradition of Kalighat Kali Temple कालीघाट काली मंदिर की परंपरा: इतिहास के साथ-साथ इसकी परंपरा भी बहुत अनोखी है। दुर्गा पूजन के लिए इस मंदिर में भक्तों की बहुत भीड़ लगती है। दुर्गोत्सव में दशमी को सिंदूर खेला जाता है। इस मंदिर में 2 से शाम 5 बजे तक सिर्फ महिलाएं प्रवेश करती हैं। इस समय में पुरुषों का प्रवेश करना वर्जित है। इस मंदिर में रोज मां काली को 56 भोग परोसे जाते हैं।
Temple Architecture मंदिर की बनावट: महाकाली के इस अनोखे मंदिर में 12 गुंबद हैं। इस मंदिर के चारों और भोलेनाथ के 12 मंदिर हैं। यह मंदिर इमारत के रूप में चबूतरे पर स्थित है। इस गुंबद की छत के ऊपर बहुत ही सुन्दर-सुन्दर आकृतियां बनाई गई हैं। इस मंदिर की बनावट इतनी सुन्दर है की इसे जितना भी देखो उतना कम लगता है। दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं और नवरात्रियों में तो इसकी बात ही कुछ और होती है।
A story related to the temple मंदिर से जुड़ी एक कथा: एक समय में रासमणि नाम की एक रानी हुआ करती थी। वो काली माता की बहुत बड़ी भक्त थी। वह दिन-रात उनकी सेवा में अपना समय व्यतीत करती थी। रानी समुद्र के रास्ते से काशी के काली मंदिर में माता की पूजा करने जाया करती थी। एक बार रानी मंदिर जाने की तैयारी कर रही थी, तभी उसके सपने में काली मां ने दर्शन दिए और इसी जगह पर मंदिर बनवाने का आदेश दिया। माता के आदेश से रानी ने वर्ष 1847 में यहां मंदिर बनवाना शुरु किया।