Kakori conspiracy: काकोरी कांड के अमर शहीदों को नमन, पढ़ें वीर सपूतों की अमर कथा

punjabkesari.in Friday, Dec 19, 2025 - 12:10 PM (IST)

Kakori Kand: देश को आजाद कराने के लिए हजारों युवाओं ने क्रांति का मार्ग अपनाया और अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के महायज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दी। उन्हीं बलिदानों के कारण आज हम स्वतंत्र देश की खुली हवा में सांस ले रहे हैं। इनकी गौरवशाली परम्परा में युवा क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी और अशफाकुल्लाह खां ऐसे अमर नाम हैं, जिनका स्मरण मात्र ही शरीर की रगों में देशभक्ति का ज्वार भर देता है। युवाओं में राष्ट्रप्रेम की अलख जगाने वाले इन क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता के लिए 17 और 19 दिसम्बर, 1927 को हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया। 

Kakori Kand

अपने आंदोलन को आगे बढ़ाने, हथियार खरीदने और आवश्यक गोला-बारूद जुटाने के उद्देश्य से हिंदुस्तानी सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के क्रांतिकारियों ने शाहजहांपुर में एक बैठक की। लंबे विचार-विमर्श के बाद रेलगाड़ी से ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनी।

9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, अशफाकुल्लाह खां, शचींद्रनाथ बख्शी, चंद्रशेखर आजाद, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुरारी शर्मा, मुकुंदी लाल और मन्मथनाथ गुप्त ने लखनऊ के निकट काकोरी में सरकारी खजाने से भरी रेलगाड़ी को लूट लिया। यह घटना इतिहास में ‘काकोरी कांड’ के नाम से प्रसिद्ध हुई।

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लूट के एक महीने बाद तक किसी भी क्रांतिकारी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी, हालांकि ब्रिटिश सरकार ने व्यापक जांच अभियान शुरू कर दिया था। 26 सितम्बर 1925 को ठाकुर रोशन सिंह को गिरफ्तार किया गया। 26 अक्तूबर, 1925 की रात देशभर में एक साथ गिरफ्तारियां हुईं और राम प्रसाद बिस्मिल भी पकड़ लिए गए। एक मित्र की गद्दारी के कारण 7 दिसम्बर, 1926 को अशफाकुल्लाह खां की भी गिरफ्तारी हो गई।

काकोरी कांड में मात्र 4601 रुपए की राशि लूटी गई थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसकी जांच में लगभग 10 लाख रुपए खर्च कर दिए। अंग्रेजी हुकूमत ने झूठी गवाहियों और मनगढ़ंत सबूतों के आधार पर क्रांतिकारियों पर सशस्त्र विद्रोह और खजाना लूटने का मुकदमा चलाया और अंतत: चारों को फांसी की सजा सुनाई।

राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को 17 दिसंबर, 1927 को फैजाबाद जेल में फांसी दी गई, जबकि 19 दिसंबर, 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद और अशफाकुल्लाह खां को गोंडा जेल में फांसी देकर शहीद कर दिया गया।       
    
आज भी इन वीर क्रांतिकारियों की शहादत हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। उनका बलिदान यह बताता है कि स्वतंत्रता की कीमत कितनी बड़ी होती है। हमें उनके संघर्षों और वीरता को हमेशा याद रखते हुए, उनके सपनों को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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