विशाल पत्थर को काटकर बनाया गया था ये मंदिर, देखकर वैज्ञानिक भी रह गए दंग
punjabkesari.in Sunday, Sep 20, 2020 - 04:06 PM (IST)
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औरंगाबाद में एक ऐसा मंदिर स्थित जो अपने आप में बेहद रहस्यमयी माना जााता है। इसकी खासियत ये है कि ये मंदिर अपने किसी चमत्कार के लिए नहीं बल्कि अपने निर्माण की वजह से प्रसिद्ध है। जी हां, अगर वैज्ञानिकों की मानें तो ये मंदिर करीब 1900 साल पुराना तो कुछ इसे 6 हज़ार साल पुराना मानते हैं। सिर्फ यही नहीं। कहा ये भी जाता है कि अगर कोई हूबहू ऐसा मंदिर बनाना चाहेगा तो उसे कम से कम 200 साल से भी ज्यादा वक्त लगेगा। पर इस मंदिर में ऐसा क्या ख़ास पहले ये बताते हैं। कैलाश मंदिर की खास बात ये है कि इस विशालकाय मंदिर को तैयार करने में करीब 150 साल लगे तो वहीं कुछ लोगों का कहना है कि ये मंदिर सिर्फ 18 साल में बनकर तैयार हो गया था। जो आज के समय में संभव नहीं है। आपको बता दें कि मंदिर के निर्माण में करीब 7000 मजदूरों ने लगातार इस पर काम किया।
कैलाश मंदिर एलोरा का कैलाश मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में प्रसिद्ध एलोरा की गुफाओं में स्थित है। यह एलोरा के 16 वीं गुफा की शोभा बढ़ा रही है। इसका काम कृष्णा प्रथम के शासनकाल में पूरा हुआ। कैलाश मंदिर में अति विशाल शिवलिंग देखा जा सकता है। भगवान शिव को समर्पित है मंदिर कैलाश मंदिर को हिमालय के कैलाश का रूप देने का भरपूर प्रयास किया गया है। शिव का ये दो मंजिला मंदिर पर्वत चट्टानों को काटकर बनाया है। यह मंदिर दुनिया भर में एक ही पत्थर की शिला से बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। इसी के साथ बता दें कि ये मंदिर 90 फीट है इस अनूठे मंदिर की ऊंचाई, 276 फीट लम्बा, 154 फीट चौड़ा है। और आजतक इस मंदिर में कभी पूजा किए जाने का प्रमाण नहीं मिलता। आज भी इस मंदिर में कोई पुजारी नहीं है। कोई नियमित पूजा पाठ का कोई सिलसिला नहीं चलता।
पत्थर को काटकर बनाया था मंदिर इसके निर्माण में करीब 40 हज़ार टन वजनी पत्थरों को काटकर 90 फुट ऊंचा मंदिर बनाया गया। इस मंदिर के आंगन के तीनों ओर कोठरियां हैं और सामने खुले मंडप में नंदी विराजमान है और उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी और स्तंभ बने हैं। वहीं अगर मंदिर के इतिहास पर गौर करें तो। ये शिव मंदिर मालखेड स्थित राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण प्रथम ने 760-753 ई में निमित्त कराया था। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को बनाने वाले शिल्पकारों ने एक विशालकाय शिला को ऊपर से तराशना शुरू किया था। आमतौर पर पत्थरों को सामने से तराशा जाता है, लेकिन इस मंदिर के लिए वर्टिकल यानि ऊपर से नीचे की तरफ तराशा गया।