केवल एक दिन में प्राप्त करें पांच हजार वर्षों की तपस्या का पुण्य

punjabkesari.in Saturday, Dec 24, 2016 - 09:54 AM (IST)

सफला एकादशी पौष महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी है। ब्रह्माण्ड पुराण में वर्णन है कि जैसे  नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, यज्ञों में अश्वमेघ यज्ञ, नदियों में गंगोत्री, देवकाअों में विष्णु उसी प्रकार समस्त व्रतों में एकादशी व्रत सर्वश्रेष्ठ है। पांच हजार वर्षों की तपस्या का पुण्य केवल एक एकादशी व्रत से मिल जाता है। 

 

चंपावती नामक नगर में महिष्मत नामक एक राजा था। उनके बड़े पुत्र का नाम लुम्पक था। वह बहुत दुष्ट अौर पापी था। वह सभी की निंदा करने में ही लगा रहता था। एक दिन राजा ने उसे राज्य से निकाल दिया। वह मजबूरी में जंगल में चला गया व राहगीरों की लूटपाट करने लगा। मांस व फल खाकर वह अपना पेट भरने लगा। उस वन में एक पीपल का वृक्ष था जो सबका पूजनीय था। लुम्पक उस पेड़ के नीचे भी रहा। एक दिन उसकी तबीयत खराब हो गई। वह बेहोश हो गया। उस दिन एकादशी तिथि थी। अगले दिन दोपहर तक वह ऐसे ही पड़ा रहा। दोपहर को किसी प्रकार उठा कुछ फल इकट्ठे किए, मन ही मन भगवान विष्णु को अर्पण कर खा लिया। बीमारी व भूख से उसे सारी रात नींद भी नई आई। लुम्पक के साथ जब ये घट रहा था तो उस दिन सफला एकादशी थी। निराहार व्रत एवं रात्रि जागरण करके व्रत करने से भगवान मधुसूदन उस पर बहुत प्रसन्न हुए। 

 

द्वादशी के दिन प्रात: काल एक दिव्य अश्व उसके पास आया व आकाशवाणी हुई- हे राजकुमार! इस सफला एकादशी के प्रभाव से आपको राज्य प्राप्त होगा। आप घर जाअों अौर राजसुख भोगो। वह राज्य लौटा अौर पिता को सारी बात बताई। पिता जी ने उसका स्वागत किया। कालक्रम से वह वहां का राजा बना। समय पर उसका सुंदर कन्या से विवाह हुआ अौर उसके घर आज्ञाकारी पुत्र ने जन्म लिया। धार्मिक पुत्र प्राप्त करके लुम्पक ने राज्य का सुख भोगा। 

 

सफला एकादशी व्रत के फल से मानव इस लोक में यश तथा परलोक में मोक्ष की भी प्राप्ति कर सकता है। इस व्रत द्वारा अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।

श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News