पितृ पक्ष 2019: भटक रही है आपके पूर्वजों की आत्मा तो सर्वपितृ अमावस्या पर करें ये काम
punjabkesari.in Saturday, Sep 21, 2019 - 11:30 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
पितृ पक्ष में पितरों का पिंडदान व श्राद्ध करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। मगर कुछ लोग इस दौरान किसी न किसी कारण वश पितृ तर्पण करने से वंचित रह जाते हैं। जिस कारण उन्हें लगता है कि उनके अतृप्त रह जाते हैं। मगर ऐसा नहीं है शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान अगर पितृ तर्पण न किया जा सके तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जा सकता है। मान्यताओं के अनुसार जिन लोंगो को अपने पूर्वजों की मृत्यु की तिथि याद न हो तो उन्हें इस अमावस्या के दिन अपने पूर्वजों का पिंडदान व श्राद्ध करना चाहिए।
यहां जानें पिंडदान व सर्वपितृ अमावस्या से जुड़ी कुछ खास बातें-
अपने पूर्वजों का पिंडदान करना हर व्यक्ति के लिए आवश्यक होता है। इसलिए इससे जुड़ी बातें जानना भी ज़रूरी है। पितृ पक्ष में किए जाने वाले पिंड दान के विभिन्न अर्थ होते हैं परंतु श्राद्ध के संदर्भ में इसका अर्थ मनुष्य के शरीर, देह या लिंगदेह से होता है। कहा जाता है ये पिंड शरीर का प्रतीक होते हैं, जो गोलाकार होते हैं। ज्योतिष विद्वानों के अनुसार कुल 13 पिण्ड होते हैं जिनमें से एक सबसे बड़ा पिंड होता है और 12 छोटे पिंड होते हैं जिन्हें एक पत्ते पर रखा जाता है। बता दें पिंड अर्थात पके हुए चावल का हाथ से बांधा हुआ गोल लोंदा जो श्राद्ध में पितरों को अर्पित किया जाता है। इसके अलावा पिंडदान में से 'दान' का अर्थ है मृतक के पाथेयार्थ एवं भस्मीभूत शरीरांगों का पुनर्निर्माण करना।
श्राद्द कर्म कांड क्रिया करने व पिंड बनाने के लिए पके हुए चावलों को आटे जैसा गूंथने के लिए उसमें दूध और घी मिलाया जाता है फिर जौ और तील मिलाकर उसके गोल-गोल पिण्ड बनाए जाते हैं। एक बड़े से पिण्ड के पहले चार भाग, फिर एक भाग को छोड़कर बाकि तीन भागों के 12 पिण्ड बनाए जाते हैं। इन पिंडों को पितर, ऋषि और देवताओं के अर्पित किया जाता है। धार्मिक व पौराणिक मान्यता के अनुसार संतों और बच्चों का पिंडदान नहीं किया जाता क्योंकि इन्हें सांसारिक मोह-माया से अलग माना जाता है। वहीं पितरों का पिंडदान इसलिए किया जाता है ताकि उनके पिंड की आसक्ति छूटे और वे अपनी आगे की यात्रा प्रारंभ करें तथा दूसरा शरीर, दूसरा पिंड या मोक्ष पा सके।
कैसे व किसे करें पिंड अर्पित-
ज्योतिष विद्वानों के अनुसार पहला पिंड जल को अर्पित किया जाता है जो चंद्रमा को तृप्त करता है। जिसके बाद चंद्रमा स्वयं देवता और पितरों को संतुष्ट करते हैं।
गुरुजनों की आज्ञा से दूसरा पिंड श्राद्धकर्ता की पत्नी खाती है। मान्यता है इससे प्रसन्न होकर पितर पुत्र की कामना वाले पुरुष को पुत्र प्रदान करते हैं।
तीसरा पिंड अग्नि में समर्पित किया जाता जिससे जुड़ी मान्यता है कि इससे तृप्त होकर पितर मनुष्य की संपूर्ण कामनाएं पूर्ण करते हैं।
बताया जाता है इसी तरह सभी पिंडों का अलग-अलग विधान होता है। लेकिन बाद में सभी को जल को ही अर्पित कर दिया जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध की क्रिया से जिन मृतकों को दूसरी देह नहीं मिली होती उन्हें दूसरी देह मिल जाती है या वे पितृलोक चले जाते हैं। तर्पण करने और अन्य क्रिया करने से पूर्वज कहीं भी हो, किसी भी रूप में जन्म ले चुके हो तब भी उनकी आत्मा तृप्त हो जाती है।