इस मंदिर में मां करती है आग से स्नान, वैज्ञानिक भी सुलझा नहीं पाए ये रहस्य
punjabkesari.in Friday, Jan 07, 2022 - 04:29 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हमारे देश के हर कोने में हिंदू धर्म से जुड़े धार्मिक स्थल पाए जाते हैं। अपनी वेबसाइट के माध्यम से माध्यम से हम इनमें से कई मंदिरों के बारे में बताते आ रहे हैं। इसी कड़ी में आज एक बार फिर हम हाजिर है आपके लिए एक ऐसे ही मंदिर की जानकारी लेकर। दरअसल हम बात कर रहे हैं राजस्थान के ईडाणा माता मंदिर की, जिसकी कहानी बेहद दिलचस्प है। जी हां, बताया जाता है कि मां के इस चमत्कारिक दरबार की महिमा बहुत ही निराली है। जिसे देखने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। वैसे तो आपने बहुत सारे चमत्कारिक स्थलों के बारें में सुना होगा। लेकिन इसकी दास्तां बिल्कुल ही अलग और चौंकाने वाली है। उदयपुर शहर से 60 कि.मी. दूर अरावली की पहाड़ियों के बीच। मां का ये दरबार बिल्कुल खुले एक चौक में स्थित है। आपको बता दें इस मंदिर का नाम इडामा उदयपुर मेवल की महारानी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इस मंदिर में भक्तों की खास आस्था है। लकवा से ग्रसित रोगी यहां मां के दरबार में आकर ठीक होकर जाते हैं। इस मंदिर की हैरान करने वाली बात है ये है कि। यहां स्थित देवी मां की प्रतिमा से माह में दो से तीन बार अग्नि प्रजवल्लित होती है। इस अग्नि स्नान से मां की सम्पूर्ण चढ़ाई गयी चुनरियाँ, धागे भस्म हो जाते हैं। इसे देखने के लिए मां के दरबार में भक्तों का मेला लगा रहता है। लेकिन अगर बात करें इस अग्नि की तो आज तक कोई भी इस बात का पता नहीं लगा पाया कि ये अग्नि कैसे जलती है।
मेवल की महारानी के नाम से प्रसिद्ध ईडाणा माता मंदिर में अग्नि स्नान का पता लगते ही आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है। मंदिर के पुजारी के अनुसार ईडाणा माता पर अधिक भार होने पर माता स्वयं ज्वालादेवी का रूप धारण कर लेती हैं। ये अग्नि धीरे-धीरे विकराल रूप धारण कर इसकी लपटें 10 से 20 फीट तक पहुंच जाती है। मगर आज तक श्रृंगार के अलावा किसी अन्य चीज को कोर्इ आंच तक नहीं आती।. भक्त इसे देवी का अग्नि स्नान कहते हैं। इसी अग्नि स्नान के कारण यहां मां का मंदिर नहीं बन पाया।. जो भी भक्त इस अग्नि के दर्शन करता है। उसकी हर इच्छा पूरी होती है।
यहां भक्त अपनी मिन्नत पूर्ण होने पर त्रिशूल चढ़ाने आते है। और साथ ही जिन लोगों के संतान नहीं होती। वो दम्पत्ति यहां झुला चढ़ाने आते हैं। खासकर इस मंदिर के प्रति लोगों का विश्वास है कि लकवा से ग्रसित रोगी मां के दरबार में आकर स्वस्थ हो जाते हैं। प्रतिमा स्थापना का कोई इतिहास यहां के पुजारियों को ज्ञात नहीं है। मंदिर को लेकर केवल इतना बताया जाता है कि बहुत साल पहले यहां कोई तपस्वी बाबा तपस्या किया करते थे। बाद में धीरे धीरे स्थानीय पड़ोसी गांव के लोग यहां आने लगे।