शनि देव के भाई-बहन से जुड़ा है होली भाई दूज पर्व का रहस्य
punjabkesari.in Tuesday, Mar 30, 2021 - 05:10 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जैसे कि सब जानते हैं बीते दो दिन देश के लगभग हर कोने में होली का पर्व पूरी धूम धाम से मनाया गया। जिसके बाद अब आज यानि 30 मार्च को भगवाान चित्रगुप्त की पूजा का विधाना है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन को होली भाई दूज के नाम से जाानाा जाता है। शास्त्रों में वर्णन है पुराणों के मुताबिक चित्रगुप्त की पूजा करने से व्यक्ति को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। साथ ही साथ इनकी आराधना से व्यक्ति को साहस, शौर्य, बल और ज्ञान की भी प्राप्ति होती है। इस दिन भातृ द्वितीया-भैया दूज के दिन इनकी आराधना के अलावा लेखनी, दवात तथा पुस्तकों की भी पूजा की जाती है, जिससे विद्या की प्राप्ति होती है। जो लोग इस दिन किसी प्रकार का नया काम शुरू करते हैं, उन्हें 'श्री' लिखकर कार्य प्रारंभ करने चाहिए। कहा जाता है इससे व्यापार में उन्नति होती तथा बरकत बनी रहती है।
इसके अलावा इससे जुड़ी एक धार्मिक कथा, जो अधिक प्रचलित हैं। आइए जानते हैं ये पौराणिक कथा-
धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान सूर्य की पत्नी का नाम छाया था, जिनकी तीन संताने थी। शनिदेव, यमराज तथा यमुना। कथाएं हैं कि यमुना अपने भाई यमराज से अधिक स्नेह करती थी। एक बार युमना ने उनसे निवेदन किया कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। परंतु अपने कार्य में व्यस्ता के कारण यमराज समय नहीं निकाल पाते थे।
भाईदूज के दिन यमुना ने भैय्या यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। इस पर यमराज ने सोचा कि, "मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। मेरी बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है।"
ये विचार करते हुए यमराज बहन के गए, उनके घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। अपने भाई यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। और उन्होंने स्नान व पूजन कर भाई को पकवानों का भोजन करवाया।
अपनी बहन यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज अधिक प्रसन्न हो गए और मांगो जो वर मांगना चाहो। तब यमुना ने कहा कि भ्राताश्री आप इसी प्रकार प्रति वर्ष इस दिन मेरे घर भोजन करने आया करना। जिसके बाद यमराज ने बहन को तथास्तु कहा और यमुना को अमूल्य वस्त्र-आभूषण आदि देकर यमलोक की ओर चले गए।
ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यमराज का भय नहीं रहता है, यह दिन भ्रातृ द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है।