Holi 2022: ये है होली से जुड़ा इतिहास, जानें कब और कैसे हुआ इस पंरपरा का आरंभ

punjabkesari.in Friday, Mar 18, 2022 - 08:59 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
 

प्रह्लाद और होलिका
होली के पर्व से अनेक कहानियां जुड़ी हुई हैं। प्रह्लाद और होलिका की कहानी सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के दम पर वह खुद को भगवान समझने लग गया था। उसने भगवान विष्णु की भक्ति पर रोक लगा दी, लेकिन उसका अपना पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से आग-बबूला होकर हिरण्यकश्यप ने उसे अनेक दंड दिए लेकिन वह भगवान की कृपा से हर बार सुरक्षित रहता। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में बिठाकर आग में बैठ जाए। होलिका आग में प्रह्लाद को लेकर जैसे ही बैठी, वह जल गई परंतु प्रह्लाद बच गया। तभी से विष्णु भक्त प्रह्लाद की याद मेें इस दिन होली जलाई जाती है।

PunjabKesari Holi
इसके अलावा यह त्यौहार राक्षसी ढुंढी, राधा-कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। लोगों का मानना है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था और उसी खुशी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था इसलिए होली में एक-दूसरे पर रंग फैंका जाता है। 

पूतनावध की कथा
राजा कंस ने वासुदेव और अपनी बहन देवकी के आठवें पुत्र श्रीकृष्ण का वध करने के लिए गोकुल में पूतना नाम की राक्षसी को भेजा ताकि वह अपना स्तनपान करवा कर  वहां के सभी शिशुओं को मार दे। वह सुंदर स्त्री का रूप धारण कर नवजात शिशुओं को विष वाला स्तनपान कराने गई लेकिन श्रीकृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध कर दिया। यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था अत: पूतनावध की खुशी में होली मनाई जाने लगी।
 
PunjabKesari Holi
 
राधा और श्रीकृष्ण की कथा
यह त्यौहार राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा है। बसंत में एक-दूसरे पर रंग डालाना श्रीकृष्ण की रासलीला का ही एक हिस्सा है। मथुरा और वृन्दावन की होली राधा और श्रीकृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है। बरसाने और नंदगांव की लठमार होली पूरी दुनिया में मशहूर है। होली पर अहंकार, अहम्, वैर-द्वेष तथा ईष्र्या की होली जलाई जाती है। 
 
PunjabKesari Holi
शिव-पार्वती और कामदेव की कथा
शिव पुराण के अनुसार, हिमालय पुत्री पार्वती शिव से विवाह हेतु कठोर तपस्या कर रही थी और शिव भी तपस्या में लीन थे। शिव और पार्वती के विवाह के पीछे इंद्र का स्वार्थ छिपा था कि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था। इसी वजह से इंद्र ने कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने के लिए भेजा, परंतु शिव ने क्रोधित हो कामदेव को भस्म कर दिया। शिव की तपस्या भंग होने के बाद देवताओं ने शिव को पार्वती से विवाह को राजी कर लिया। इस कथा के आधार पर होली में काम की भावना को प्रतीकात्मक रूप से जलाकर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
 
PunjabKesari Holi
राक्षसी ढुंढी की मृत्यु कथा
पुराने समय में पृथु नाम का एक राजा था। राजा के समय में  ढुंढी नाम की एक राक्षसी थी जो नवजात शिशुओं को खा जाती थी। राक्षसी को वर प्राप्त था कि उसे कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र नहीं मार सकेगा, न ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा लेकिन वह शिव के एक श्राप के कारण बच्चों की शरारतों से मुक्त नहीं थी।
 
राजपुरोहित ने राजा पृथु को एक उपाय बताया कि जब फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और न गर्मी तो  सभी बच्चे एक-एक लकड़ी एक जगह पर रखकर जलाएं, मंत्र पढ़ें और अग्नि की परिक्रमा करें तो राक्षसी मर जाएगी। बहुत सारे बच्चों को एक साथ देखकर राक्षसी ढुंढी अग्नि के नजदीक आई तो उसका मंत्रों के प्रभाव से वहीं विनाश हो गया। तब से इसी तरह मौज-मस्ती के साथ होली मनाई जाने लगी।
 
 

सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Recommended News

Related News