क्या आप जानते हैं शिवालिक पर्वत पर स्थित शिवखोड़ी का रहस्य
punjabkesari.in Tuesday, Jun 18, 2019 - 11:40 AM (IST)
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देश में ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं जहां शिव जी अपने विभिन्न रूपों में विराजमान हैं। आज हम आपको शिव जी की एक ऐसी ही गुफ़ा के बारे में बताने जा रह हैं जो बहुत ही प्राचीन और प्रसिद्ध है। बता दें जिस गुफ़ा की हम बात कर रहे हैं वो शिवालिक पर्वत की श्रृंखलाओं में स्थित है, जहां प्रकृति-निर्मित शिवलिंग और अन्य दुर्लभ प्रतिमाएं स्थापित हैं। कहा जाता है ये प्राकृतिक गुफ़ा हर शिवभक्त के लिए बहुत मायने रखती हैं।
जम्मू-कश्मीर राज्य के जम्मू से कुछ दूरी पर स्थित है रयासी में ही भगवान शिव का घर कही जानेवाली शिवखोड़ी गुफा स्थित है। इससे जुड़ी सबसे हैरानी वाली बात ये है कि इसी गुफा का दूसरा छोर अमरनाथ गुफा में खुलता है। यही कारण है कि शिवखोड़ी शिव भक्तों की आस्था का केंद्र बिंदु माना जाता है।
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इस चमत्कारी गुफ़ा में देवों के देव महादेव भोलेनाथ अपने परिवार के साथ विराजते हैं। कहा जाता है कि शिवखोड़ी गुफ़ा के दर्शन करने जाने के लिए अप्रैल से लेकर जून तक का मौसम सबसे अच्छा माना जाता है। क्योंकि इस दौरान यहां का मौसम बेहद सुहावना और ठंडा रहता है। इसके बारे में कहा जाता है कि प्रकृति की गोद में बसी हुई यह एक ऐसी दुर्लभ जगह है, जहां अपने आप ही आदिकाल से ही लेकर अब तक भगवान शिव की महिमा बनी हुई है।
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दूध सा सफ़ेद जल
माना जाता है कि शिवखोड़ी गुफ़ा में समस्त 33 कोटि देवी-देवता निवास करते हैं। बता दें कि यह स्थान जम्मू से करीब 140 कि.मी. एवं कटरा से 85 कि.मी. दूर उधमपुर ज़िले में स्थित है। रनसू (रणसू) से शिवखोड़ी की गुफ़ा करीब 3.5 कि.मी. दूर रह जाती है। यहां से पैदल व खच्चर के द्वारा बाबा भोलेनाथ की यात्रा प्रारंभ हो जाती है। इसके अलावा रनसू से थोड़ा आगे चलने पर लोहे का एक छोटा सा पुल आता है, जो नदी पर बना हुआ है। लोक मान्यता के अनुसार इस नदी को दूध गंगा कहते हैं। इससे जुड़ी किंवदंति के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन इस नदी का जल स्वतः ही दूध के समान सफ़ेद हो जाता है।
इससे आगे एक कुंड आता है, जिसे अंजनी कुंड के नाम से जाना जाता हैं। इसी कुंड के पास नीलकंठ की सवारी ‘नंदी’ यानि ‘बैल’ के पैरों के निशान हैं। मान्यता है कि नंदी इस कुंड में पानी पीने आते था।
1,2,3,4 भोले तेरी जय-जयकार, हर-हर महादेव, बम-बम भोले, भोले तेरा रूप निराला शिवखोड़ी में डेरा डाला आदि जैसे जयकारों के साथ भक्त काफ़िले में आगे बढ़ते हैं। करीब एक किलोमीटर आगे चलने पर 'लक्ष्मी-गणेश' का मंदिर आता है। जिसके अंदर छोटी सी एक गुफ़ा में प्राचीन लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति है। इसके अलावा नीचे से बहती हुई दूध गंगा की कल-कल ध्वनि मंदिर की शोभा में और चार चांद लगाती है।
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