शास्त्रों से जानें अंतिम संस्कार करने का उत्तम समय, प्रभु के चरणों में मिलेगी जगह
punjabkesari.in Friday, Dec 20, 2019 - 02:14 PM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
मौत जिसका ज़िक्र करना किसी को पसंद नहीं है। परंतु जैसे कि सब जानते हैं ये ऐसा सच्चाई है जिसे झुठलाना किसी के बस की बात नहीं है। आज हम इसी से जुड़ी कुछ बातें बताने वाले हैं। इतना तो सबको पता होगा हर धर्म में मौत के बाद निभाए जाने वाले रस्म रिवाज़ विभिन्न हैं। हिंदू धर्म में की भी व्यक्ति की मौत हो जाने पर उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है यानि उसके शव को दला दिया जाता है। इसे करने के लिए पंडित को बुलाया जाता है जो पूरी विधि-पूर्वक इसे संपन्न करते हैं।
आप में से कुछ लोगों ने देखा होगा कि कुछ लोग घर की किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर उसके अंतिम संस्कार में बहुत जल्दबाजी करने लगते हैं। अगर आप के घर में कभी ऐसा हुआ है तो बता दें भविष्य में ऐसी किसी दुर्घटना के बाद एक बार हमारे द्वारा बताई जाने वाली जानकारी को दिमाग में ज़रूर ले आईएगा।
क्योंकि हिंदू धर्म के शास्त्रों में कहा गया है कि ऐसा करना ठीक नहीं होता। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके शव का जल्दबाज़ी में अंतिम संस्कार करना बिलकुल उत्तम नही होता। कहा जाता है जो भी व्यक्ति शास्त्रों में अंतिम संस्कारों से जुड़े नियमों का पालन नहीं करता तो मृतक की आत्मा को शांति और सद्गति प्राप्त नही होती।
बता दें धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज अगर गलती से किसी के प्राण हर लेते हैं तो वे उसे पुनः वापस लौटा भी देते हैं। इसलिए कहा जाता है कि किसी भी मतृक का अंतिम संस्कार करने में बहुत जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए।
जिस व्यक्ति की मृत्यु सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के 2 घंटे पहले हो, अर्थात दिन में तो उनके शव का अंतिम संस्कार 9 घंटे के अदंर करने से आत्मा को मुक्ति मिलती है।
जिस व्यक्ति की मौत सूर्य के दक्षिणायन होने पर, कृष्ण पक्ष, पंचक या रात्रि में होती है तो ऐसे में इसे एक दोष माना जाता है। इसलिए शव को जलाने से पहले किसी रिश्तेदार के द्वारा मृतक के निमित्त बटुक ब्राह्मणों को भोजन कराना या भोजन सामग्री का दान करके, व उस दिन उपवास रहकर इस दोष का निवारण करना पड़ता है। ये विधि संपन्न करने के बाद ही शव के अंतिम संस्कार की क्रिया समपन्न करनी चाहिए ताकि आत्मा को मुक्ति मिल सके।
यदि मृतक की पत्नी या घर परिवार की कोई अन्य महिला गर्भवती है तो उसे अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होना चाहिए।
संस्कार के समय शव का सिर दक्षिण दिशा की तरफ़ रखना चाहिए, क्योंकि दक्षिण की दिशा मृत्यु के देवता यमराज की मानी गई है, इस दिशा में शव का सिर रख हम उसे मृत्यु के देवता को समर्पित कर देते हैं।