Happy Navratri 2019: अध्यात्म पथ की प्रथम सीढ़ी मानी जाती है शारदीय नवरात्रि

punjabkesari.in Monday, Sep 30, 2019 - 12:23 PM (IST)

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नवरात्रि पर्व की सनातन धर्म संस्कृति में अनुपम महिमा है, धार्मिक और सात्विक व्यक्तियों के लिए यह एक धार्मिक यात्रा के समान है। श्रावण मास में देवों के देव महादेव को प्रसन्न कर साधक प्रसन्न होते हैं, इसके बाद माता सती, पार्वती और शिव की शक्ति को प्रसन्न करने के लिए शारदीय नवरात्रि में पूजन कार्य किए जाते हैं। उत्सव की यह नौ रात्रियां, प्रकृति की मनुष्य को वह भेंट है, जब मनुष्य अपने भीतर की मलिनता को पहचान कर हटाने का उद्यम करता है। परिणामस्वरूप मनुष्य के भीतर इन नवरात्रियों में नवनिर्माण का आध्यात्मिक कार्य गतिशील होता है। 29 सितम्बर 2019 से शरद नवरात्र आरम्भ हो चुके हैं और 7 अक्तूबर 2019 को इनका समापन हो जाएगा। नवरात्रि में व्रत, उपवास, साधना और पूजा-पाठ करने का धार्मिक महत्व है।
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नवरात्रि उत्सव की प्रासंगिकता 
वैदिक विज्ञान के अनुसार यह सृष्टि एक चक्रीय धारा में चल रही है, किसी सीधी रेखा में नहीं। प्रकृति के द्वारा हर वस्तु का नवीनीकरण हो रहा है। हर रात्रि के बाद दिवस है तो दिवस के बाद रात्रि। हर पतझड़ के बाद बसंत आती है तो बसंत के बाद पतझड़ निश्चित है। यहां जन्म और मृत्यु भी चक्राकार में है और सुख के बाद दुख तो दुख के पश्चात सुख भी निश्चित चल रहा है। प्रकृति की स्थूल से सूक्ष्म तक की सभी रचनाएं पुरातन से नवीन और नवीन से पुरातन के चक्रीय मार्ग का ही अनुसरण कर रही है। नवरात्रि का त्यौहार भी मनुष्य के मन व बुद्धि को संसार की दौड़ में से लौट कर स्वयं की खोज का एक सुअवसर है।

मौन, प्रार्थना, सत्संग और ध्यान 
संसार में भटकते चित्त को स्वयं के स्रोत तक वापस लौटने के लिए मौन, प्रार्थना, सत्संग और ध्यान के मूलभूत आधार चाहिए। मौन हमारे मन की भटकन को दूर करता है तो प्रार्थना से यही मन ईश्वर में एकाग्र होने की चेष्टा करता है। सत्संग में ईश्वर के स्वरूप का सही निर्णय होता है और साधना का सम्पूर्ण मार्ग श्री गुरु सत्संग के माध्यम से ही उजागर करते हैं। तत्पश्चात ध्यान की सम्यक विधियों के द्वारा मनुष्य अपने मूल स्रोत (सत् चित्त आनंद) की ओर गमन करते हुए परम रहस्य का साक्षात्कार करता है।
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एक आंतरिक यात्रा 
नवरात्रि का यह उत्सव मनुष्य के भीतर आतंरिक यात्रा करके नवीनीकरण को प्रकट करने का उत्सव है। यह समस्त ब्रह्मांड एक ही शक्ति से उत्पन्न हुआ है, संचालित हो रहा है और उस एक ही शक्ति में विलय को प्राप्त होगा। इसी शक्ति को हम आद्य शक्ति कहते हैं। इस शक्ति को असंख्य नाम रूपों से गाया और पूजा गया है। कोई इसे मात्र देवी कहता है और कोई शक्ति। कोई देवी और शक्ति को दुर्गा, काली, सरस्वती, लक्ष्मी, गौरी आदि के नाम और विविध रूप से पूजता है परंतु हर मान्यता देवी को मां मानती है क्योंकि समस्त जड़ व चेतन पदार्थों की उत्पत्ति इस एक ही शक्ति में से हुई है और महा-विलय के पश्चात सब कुछ इस एक शक्ति में ही खो जाता है। नवरात्रि का उत्सव इस एक शक्ति, आद्य शक्ति को उजागर करने का सुअवसर है। वैसे तो यह शक्ति इस ब्रह्मांड के कण-कण में सक्रिय है परंतु मनुष्य इस महा-रहस्य से अपरिचित है क्योंकि तमस-रजस-सत्व गुणों की त्रिगुणात्मकता में ही मनुष्य का मन उलझा हुआ है।

तीन गुणों का शुद्धिकरण 
नवरात्रि के ये नौ दिन हमारे मन में रहे इन तीन गुणों का शुद्धिकरण करने के दिन हैं। तमस-रजस-सत्व से गुंथी हुई मनुष्य की प्रकृति अज्ञानता और मोह के कारण परिभ्रमण में उलझी हुई है। इन नौ-दिनों में क्रमश: इन तीन प्रकृतियों में शुद्धिकरण करके मनुष्य के भीतर नव-निर्माण की संभावना को दृढ़ करना है। नवरात्रि उत्सव के संबंध में कुछ कथाएं भी प्रचलित हैं। राम और रावण के बीच जब युद्ध होने वाला था। उससे पहले ब्रह्मा जी ने देवों के माध्यम से श्री राम से रावण वध के लिए देवी चंडी की एक सौ आठ ‘नीलकलम’ के द्वारा पूजा करके प्रसन्न करने को कहा। परामर्श के अनुसार श्री राम ने पूजा के लिए हवन सामग्री और 108 नीलकमल की व्यवस्था की परंतु रावण ने अपनी मायावी शक्ति से हवन सामग्री और 108 नीलकमल गायब कर दिए और श्री राम को जब अपना संकल्प टूटता नजर आने लगा तो उसी समय उन्हें स्मरण आया कि लोग मुझे ‘कमल नयन-नवकंच-लोचन’ भी कहते हैं। उसके बाद श्री राम ने अपने संकल्प को पूर्ण करने के लिए नेत्र अर्पित करने का निर्णय लिया और जैसे तीर को आंख के पास ले गए वैसे ही देवी चंडी प्रसन्न होकर प्रकट हुई और विजयी होने का आशीर्वाद दे दिया।
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दूसरी ओर रावण ने भी चंडी देवी की पूजा का आयोजन किया था और ब्राह्मणों को बुलाया था। हनुमान जी ने भी बालक ब्राह्मण का रूप रख कर अन्य ब्राह्मणों की खूब सेवा की और ब्राह्मणों ने खुश होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा। तब हनुमान जी ने पूजा में होने वाले मंत्र में एक अक्षर बदलने का वरदान मांग लिया जिससे पूजा कार्य अच्छे से सम्पन्न नहीं हो पाया और रावण को विजयश्री का आशीर्वाद नहीं मिला। इससे शक्ति देवी रुष्ट हो गई और रावण का सर्वनाश करवा दिया। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की घोर तपस्या करके और उनसे वरदान मांग कर महिषासुर बड़ा ही ताकतवर हो गया। उसके बाद वह स्वर्ग पर आक्रमण करके वहां का स्वामी बन बैठा और देवराज इंद्र सहित सारे देवताओं को वहां से निकाल दिया। वह देवताओं, मनुष्यों और अन्य जीवों पर अत्याचार करने लगा। वह इतना ताकतवर था कि उसका सामना करना संभव नहीं था।

सभी देवताओं ने इससे दुखी होकर भगवान विष्णु से इसका उपाय पूछा। तब विष्णु जी के सुझाव से सभी देवताओं ने अपनी शक्ति और अस्त्र देवी दुर्गा को दिए जिससे वह दुष्ट महिषासुर का वध कर सकी, इससे देवी दुर्गा बहुत शक्तिशाली हो गई। नौ दिन तक देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अंत में महिषासुर का वध कर दिया। इसलिए शक्ति रूप मां दुर्गा की पूजा और अर्चना बड़े धूमधाम से की जाती है।    


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