Gita Jayanti ke Upay: श्रीकृष्ण का आशीर्वाद चाहते हैं तो गीता जयंती पर यह करना न भूलें
punjabkesari.in Monday, Dec 02, 2024 - 09:37 AM (IST)
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Gita Jayanti ke Upay 2024: गीता जयंती का दिन हिंदू धर्म के ग्रंथ श्रीमद भगवद गीता के जन्मोत्सव का प्रतीक है। इस रोज भगवान श्रीकृष्णचन्द्र और वेद व्यास जी की पूजा करके इस पर्व को मनाया जाता है। गीता में लिखे श्लोक स्वंय भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मुखारविंद से जगत कल्याण हेतु अर्जुन से कहे हैं। इस महान ग्रंथ में वेदों और उपनिषदों का सार है। संसार के लगभग हर ग्रंथ की आलोचना हुई है लेकिन श्री गीता जी एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसे हर किसी ने खुली बांहों से स्वीकार किया है। गीता जयंती पर गीता का पाठ अवश्य करें। उसके बाद आरती करें।
भगवद गीता के पाठ से मिलेंगे ये अद्भुत लाभ
ज्ञान के साथ मन की शांति
जीवन की हर समस्या का हल
गंभार से गंभीर कष्टों से मुक्ति
मनचाही सफलता
कठिन से कठिन परिस्थितियों से लड़ने की काबिलियत
नवग्रह और घर की शांति
कुंडली का अशुभता से राहत
मोक्ष की प्राप्ति
रोगें से छुटकारा
दुश्मनों पर विजय
घर में धन के देवी-देवता का वास
नकारात्मक शक्तियों के सायं से मुक्ति
ऊपरी बाधाएं अपना प्रभाव नहीं डाल पाती
गीता पाठ के साथ घर में यज्ञ करवाने से वास्तु दोष समाप्त होता है।
गीता का नियमित पाठ करने वाला व्यक्ति कभी भी मृत्यु के बाद पिशाच योनी प्राप्त नहीं करता।
Srimad Bhagavad Geeta Aarti श्रीमद भगवद गीता आरती
जय भगवद् गीते,
जय भगवद् गीते ।
हरि-हिय-कमल-विहारिणि,
सुन्दर सुपुनीते ॥
कर्म-सुमर्म-प्रकाशिनि,
कामासक्तिहरा ।
तत्त्वज्ञान-विकाशिनि,
विद्या ब्रह्म परा ॥
जय भगवद् गीते...॥
निश्चल-भक्ति-विधायिनि,
निर्मल मलहारी ।
शरण-सहस्य-प्रदायिनि,
सब विधि सुखकारी ॥
जय भगवद् गीते...॥
राग-द्वेष-विदारिणि,
कारिणि मोद सदा ।
भव-भय-हारिणि,
तारिणि परमानन्दप्रदा ॥
जय भगवद् गीते...॥
आसुर-भाव-विनाशिनि,
नाशिनि तम रजनी ।
दैवी सद् गुणदायिनि,
हरि-रसिका सजनी ॥
जय भगवद् गीते...॥
समता, त्याग सिखावनि,
हरि-मुख की बानी ।
सकल शास्त्र की स्वामिनी,
श्रुतियों की रानी ॥
जय भगवद् गीते...॥
दया-सुधा बरसावनि,
मातु! कृपा कीजै ।
हरिपद-प्रेम दान कर,
अपनो कर लीजै ॥
जय भगवद् गीते...॥
जय भगवद् गीते,
जय भगवद् गीते ।
हरि-हिय-कमल-विहारिणि,
सुन्दर सुपुनीते ॥
Gita Shlok गीता का प्रमुख श्लोक
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अर्थात - कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म को फल की इच्छा के लिए मत करो।