अंगूठियों से जुड़े दिलचस्प मिथक, महिला-पुरुष के संबंधों की पड़ताल

punjabkesari.in Sunday, Sep 10, 2017 - 11:10 AM (IST)

अमेरिकन इंडोलॉजिस्ट और हिदुत्व व हिंदू पौराणिक कथाओं पर कई पुस्तकों की लेखिका वेंडी डोनिगर ने अपनी ताजा पुस्तक ‘द रिंग ऑफ ट्रुथ : मिथ्स ऑफ सैक्स एंड ज्यूलरी’ में गहनों और महिला-पुरुष के संबंधों की पड़ताल की है। 


दुनिया भर के मिथकों और कहानियों में अंगूठियां
प्राचीन भारत और यूनान से लेकर मध्ययुगीन जर्मनी तथा आधुनिक सिनेमा तक में अंगूठियों ने वफादारी और यौन संबंधों से जुड़ी कहानियों व मिथकों में अहम भूमिका निभाई है। अक्सर, अंगूठी वह साधन थी जिसके द्वारा एक महिला खुद पर संदेह करने वाले पुरुष के सामने अपनी पहचान तथा उसके प्रति अपनी वफादारी साबित करती। वेंडी बताती हैं, ‘‘जैसे-जैसे मैंने इन कहानियों पर काम किया, एक रुझान सामने आने लगा कि किस तरह से पुरुषों ने गहनों के जरिए महिलाओं को नियंत्रित किया और बदले में महिलाओं ने भी गहनों के ही माध्यम से चुपके से पुरुषों को प्रभावित किया। पुस्तक में मैं इसी के बारे में लिखना चाहती थी।’’ 


प्राचीन भारत में अंगूठियां
भारत में गहनों से जुड़ी कहानियों की कोई कमी नहीं रही है। रामायण से लेकर कालिदास और तमिल महाकाव्यों तक में विभिन्न घटनाओं के केंद्र में अक्सर किसी न किसी गहने का उपयोग या उसका प्रदर्शन किया गया है। वेंडी के अनुसार शकुंतला की कहानी ‘एक अंगूठी और एक महिला की कामुकता की सबसे बड़ी और सबसे प्रसिद्ध कहानियों में से एक’ है। इस कहानी के दो संस्करण हैं। पहला महाभारत में मिलता है जिसमें कोई अंगूठी नहीं है। इस संस्करण में राजा दुष्यंत शकुंतला को आकर्षित करता है तथा उसे गर्भवती करके उससे दूर चला जाता है। बाद में जब वह अपने बेटे को उसके पास ले जाती है, तो वह कुछ याद नहीं होने का दिखावा करता है। 


कालिदास ने इसी कहानी में एक जादुई अंगूठी जोड़ दी जो दुष्यंत शकुंतला को देता है। अपने बच्चे के साथ पति के पास जा रही शकुंतला अनजाने में उसे एक नदी में गुम कर देती है जिसके कारण राजा सच में उसे भूल जाता है। इस प्रकार राजा दुष्यंत (सम्राट भरत के पिता तथा महान भारतीय राजाओं के वंश के पूर्वज) एक महिला से संबंध बना कर उसे बेसहारा छोड़ देने के दोष से मुक्त हो जाता है। 


शकुंतला की अंगूठी को नदी में एक मछली निगल लेती है जो एक मछुआरे के जाल में फंस जाती है। मछली के पेट से मिली अंगूठी को मछुआरा राजा को भेंट करता है। इस तरह अंगूठी को देखते ही दुष्यंत की खोई हुई याद्दाश्त वापस आ जाती है तथा शकुंतला और उसका पुनर्मिलन हो जाता है। 


मछली की भूमिका
ऐसी अनेक कहानियां हैं जिनमें मछली द्वारा अंगूठी को निगलने का जिक्र मिलता है। यह जिक्र तो यूनानी कहानियों तक में पढऩे को मिलता है। राजा सुलेमान की अंगूठी, से लेकर पॉलिक्रेट्स की अंगूठी तक यूनानी कहानियां हैं जिनमें अंगूठी और मछली का जिक्र है। 


मछलियों ने इन कहानियों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं शायद इसलिए भी निभाईं क्योंकि अधिकतर कहानियों में नदियों, तालाबों आदि का इस्तेमाल भी खूब किया जाता था। शकुंतला जैसी कहानियों में मुख्य किरदार नदियों, तालाबों या सागरों में अपनी अंगूठियां खो देते, जहां से उन्हें वापस पाने की संभावना न के बराबर हो। ऐसे में खोई अंगूठी को खोजने की कुंजी एक मछली ही हो सकती थी। मछली में पाई गई अंगूठियों की कहानियों की बदौलत मछलियों को खोई चीजों को वापस पाने तथा स्मृति न खोने का प्रतीक माना जाने लगा था। मछली की कभी न झपकने वाली आंखें ऐसी चेतना का संकेत करती हैं जो एक पल के लिए भी झूठ नहीं बोलती हैं और इसीलिए उनकी स्मृति नष्ट नहीं होती है।


अंगूठियों में हीरे कहां से आए
बहुत पहले अंगूठी में हीरा जडऩे की कोई परम्परा नहीं थी। भारत में तो हीरे गोलकुंडा की खान में ही मिलते थे, इसलिए दुर्लभ थे। जिन्हें केवल अत्यधिक धनाढ्य ही खरीद सकते थे। प्राचीन कालीन भारत में महिलाओं की बजाय पुरुष (राजा) ही आमतौर पर हीरे पहनते थे लेकिन जब अफ्रीका की विशाल हीरे की खदानों का पता चला, तो हीरे पहले से सस्ते हो गए।

 
एक वक्त डी-बियर्स कम्पनी का विश्व भर में हीरा कारोबार पर आधिपत्य था। उसने बिक्री बढ़ाने के लिए मार्कीटिंग के तहत प्रचार शुरू किया, कि सगाई के लिए हीरा जडि़त अंगूठी ही उपयुक्त है। यह प्रचार कम्पनी की अपेक्षा से भी कहीं ज्यादा काम कर गया और सगाई के लिए हीरे की अंगूठी विश्व भर में आज भी लोकप्रिय है। उस प्रचार में भी अंगूठियों से जुड़े प्राचीन मिथकों की ही तरह इस झूठ का इस्तेमाल किया गया कि सगाई की अंगूठियों में हमेशा से हीरे जड़े होते थे।


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