प्रभु भक्त कैसे बनें, धार्मिक व प्रेरक प्रसंग से जानिए

punjabkesari.in Monday, Aug 08, 2022 - 10:48 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
दिल्ली के तेजस्वी सम्राट पृथ्वीराज चौहान रणक्षेत्र में शत्रुओं के तीक्ष्ण शस्त्रों से आहत होकर भूमि पर गिर पड़े थे। सम्राट का विशेष अंगरक्षक सामन्त संयमराय भी बुरी तरह से घायल था। तन में प्राण तो थे पर उठने की तनिक मात्र भी शक्ति नहीं थी। युद्ध बंद हो चुका था। स्थान-स्थान पर सैनिक मूर्छित अवस्था में गिरे पड़े थे। अत: गिद्धों के झुंड आकाश में मंडराने लगे और वे अर्धमूर्छित स्थिति में पड़े हुए सैनिकों को नोच-नोच कर खाने लगे।
PunjabKesari सम्राट पृथ्वीराज चौहान, Samrat Prithviraj Chauhan, Dharm
कुछ गिद्ध पृथ्वीराज की ओर बढऩे लगे। संयमराय ने देखा तो उसके रौंगटे खड़े हो गए। वह सोचने लगा-मैं महाराज का अंग रक्षक हूं, मेरे नेत्रों के सामने गिद्ध स्वामी के तन को नोच-नोच कर खाएं और मैं देखता रहूं यह अनुचित है। मेरे शरीर में सामथ्र्य ही नहीं है जिससे मैं गिद्धों से अपने स्वामी को बचा सकूं। उसे अपनी असमर्थता पर आंसू आ गए। उसने बहुत प्रयास किया पर वह अपने स्थान से उठ नहीं सका।

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खूब सोचने पर उसे एक उपाय सूझ गया। वह मन ही मन अत्यंत खुश हुआ। उसने अपने निकट  पड़ी चमचमाती हुई तलवार उठाई और अपने शरीर का मांस काट-काट कर फैंकने लगा, जिससे मांस-लोलुप गिद्ध उन बोटियों को लेने लगे। वे मानवों के तन को नोचना भूलकर सीधे प्राप्त मांस खाने लगे। संयमराय ने अपने तन को अपने स्वामी के लिए समर्पित कर दिया और अपने मालिक को बचा लिया। यदि हमारी प्रभु के प्रति भक्ति भी इतनी समर्पण भाव से हो तो भक्त से भगवान बनने में देरी नहीं लगे। —आचार्य ज्ञानचंद्र

PunjabKesari, गिद्ध


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Content Writer

Jyoti

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