इस मंदिर में सुहागिनों की नहीं है Entry, सिर्फ विधवाएं ही कर सकती हैं यहां पूजा
punjabkesari.in Monday, Jun 10, 2019 - 12:54 PM (IST)
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जैसे कि आप सब जानते हैं कि आज धूमावती जयंती का पर्व मनाया जा रहा है। इसी खास मौके पर आज हम आपको देवी धूमावती के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं इन्हें पकौड़ी और कचौड़ी का भोग लगाया जाता है। बता दें ये मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित है, जिसे एक अनोखा मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां सुहागिनों को मंदिर में एंट्री नहीं दी जाती बल्कि यहां केवल विधवाएं ही पूजन कर सकती है। सुहागिन स्त्रियां पति और पुत्र की दीर्घायु के लिए दूर से प्रार्थना कर सकती हैं। बता दें इस मंदिर को पीतांबरा मंदिर के नाम से जाना जाता है।
कहा जाता है मध्यप्रदेश के दतिया जिले में धूमावती माता का यह अनोखे मंदिर की स्थापना स्वामी जी महाराज नामक संत ने किया था। बताया जाता है कि यहां पर मां धूमावती की स्थापना नहीं करने के लिए कई विद्वानों ने स्वामी जी महाराज से आग्रह किया था। तब स्वामी जी ने कहा था कि मां का भयंकर रूप तो दुष्टों के लिए हैं, परंतु भक्तों के प्रति ये अति दयालु हैं। लोक मान्यता के अनुसार जिस दिन पीतांबरा पीठ में मां धूमावती की स्थापना हुई थी, उसी दिन स्वामी महाराज ने अपने ब्रह्मलीन होने की तैयारी शुरू कर दी थी। कहा जाता है ठीक 1 साल बाद मां धूमावती जयंती के दिन स्वामी महाराज ब्रह्मलीन हो गए थे।
बता दें अन्य मंदिरों की तरह ही यहां पर मां धूमावती की आरती सुबह-शाम होती है, लेकिन भक्तों के लिए मां धूमावती का मंदिर शनिवार को सुबह-शाम 2 घंटे के लिए खुलता है। बाकी समय मंदिर के पट बंद रहते हैं। यहां आने वाले भक्तों का मानना है धूमावती देवी के दर्शन सिर्फ़ आरती के दौरान ही करना संभव है।
10 महाविद्याओं में उग्र मां धूमावती का स्वरूप विधवा का है और इनका वाहन कौआ है। माता श्वेत मलिन वस्त्र धारण करती हैं और उनके केश खुले हुए हैं। इनसे अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भक्त इन पर शनिवार के दिन काले कपड़े में काले तिल इन्हें भेंट करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मां धूमावती तांत्रिक बाधाओं की काट मानी जाती हैं।
पौराणिक ग्रंथों में इनके बारे में जो वर्णन है उसके अनुसार ऋषि दुर्वासा, भृगु, परशुराम आदि की मूल शक्ति मां धूमावती हैं। चूंकि ये सृष्टि कलह की देवी हैं इसलिए इन्हें कलहप्रिय भी कहा जाता है।