मंदिर दर्शन के बाद न करें यह गलती, वरना कम हो सकती है पुण्य की शक्ति
punjabkesari.in Wednesday, Dec 10, 2025 - 09:16 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Mandir Rules: मंदिर भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था का केंद्र होते हैं। हम वहां पूजा-अर्चना के लिए जाते हैं लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि मंदिर से वापस आने के तुरंत बाद हाथ-पैर धोने की मनाही क्यों होती है? यह एक ऐसा रिवाज है जिसके पीछे गहरे धार्मिक और आध्यात्मिक कारण छिपे हैं, जो अक्सर लोगों को पता नहीं होते। शास्त्रों और प्राचीन मान्यताओं में इस नियम का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। यह केवल एक अंधविश्वास नहीं, बल्कि पूजा के दौरान अर्जित की गई सकारात्मक ऊर्जा और दैवीय तरंगों को धारण करने का एक तरीका है।
जब हम किसी मंदिर में प्रवेश करते हैं, तो हम एक ऐसे वातावरण में कदम रखते हैं जहां ईश्वर की उपस्थिति, मंत्रों का जाप, आरती की सुगंध, और भक्तों की श्रद्धा से एक विशेष प्रकार की सात्विक ऊर्जा का संचार होता है। शास्त्रों के अनुसार, पूजा-अर्चना और दर्शन के दौरान, मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर, विशेषकर हाथों और पैरों के माध्यम से, हमारे सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करती है। यह ऊर्जा शरीर में कुछ देर तक बनी रहती है, जो हमें शांति, सकारात्मकता और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करती है। तुरंत हाथ-पैर धोने की मनाही का मुख्य कारण यही है कि ऐसा करने से यह पवित्र और सात्विक ऊर्जा जल के साथ बह जाती है और हमें मंदिर जाने का पूर्ण आध्यात्मिक लाभ प्राप्त नहीं हो पाता।

मंदिरों का निर्माण विशेष वास्तु कला और मंत्रों के साथ किया जाता है ताकि वे ब्रह्मांडीय ऊर्जा और दैवीय स्पंदनों को अवशोषित कर सकें। जब भक्त इन स्पंदनों के बीच कुछ समय बिताते हैं, तो उनके शरीर में भी इन तरंगों का संचार होता है।
हाथों पर: दर्शन, घंटी बजाने, या प्रसाद लेने से हाथों पर दैवीय ऊर्जा का संचार होता है।
पैरों पर: मंदिर की पवित्र भूमि, जिसे देव स्थान माना जाता है, पर चलने से पैरों के माध्यम से ऊर्जा शरीर में प्रवेश करती है।
यदि आप तुरंत हाथ-पैर धोते हैं, तो ये स्पंदन और सूक्ष्म ऊर्जा आपके शरीर में स्थापित होने से पहले ही समाप्त हो जाते हैं।

शारीरिक शुद्धि और आध्यात्मिक शुद्धि में अंतर
बाहरी तौर पर, हमें लग सकता है कि मंदिर से लौटने पर हमारे हाथ-पैर गंदे हो गए हैं, इसलिए उन्हें धोना जरूरी है। लेकिन शास्त्रों में इस समय आध्यात्मिक शुद्धि को प्राथमिकता दी गई है। मंदिर में जाने का उद्देश्य ही आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करना है। शरीर की बाहरी शुद्धि से पहले, अर्जित की गई आंतरिक ऊर्जा को धारण करना अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
पूजा के प्रभाव का सेट होना
जैसे किसी रंग को कपड़े पर पक्का होने में समय लगता है, उसी तरह पूजा और दर्शन के प्रभाव को हमारे मन और शरीर पर 'सेट' होने में कुछ समय लगता है। यह अवधि आम तौर पर 15 मिनट से 30 मिनट तक मानी जाती है। इस दौरान, व्यक्ति को शांत बैठकर या भगवान का स्मरण करते हुए मंदिर के अनुभवों को आत्मसात करना चाहिए।

