Chandra Grahan 2025: कब और क्यों लगता है चंद्र ग्रहण ? जानिए इसके पीछे की रोचक कहानी
punjabkesari.in Saturday, Sep 06, 2025 - 02:00 PM (IST)
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Grahan 2025: इस साल यानी 2025 में 07 सितंबर को साल का आखिरी चंद्र ग्रहण लगने वाला है और खास बात यह है कि यह ग्रहण भारत में दिखाई देगा और पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा। जिसकी वजह से इसका असर भी बेहद गहरा माना जाता है। यही वजह है कि इस दौरान सूतक काल मान्य होता है। सूतक काल में कई सावधानियों का पालन करने की सलाह दी जाती है जैसे भोजन न करना, बाहर न निकलना, और धारदार वस्तुओं का इस्तेमाल न करना। लेकिन दोस्तों, क्या आप जानते हैं कि ग्रहण का असर सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं है, मान्यताओं के अनुसार देवताओं पर भी ग्रहण का प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि ग्रहण के दौरान मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ग्रहण लगता क्यों है ? क्या है इसके पीछे का धार्मिक कारण ? आज हम आपको बताएंगे ग्रहण लगने के पीछे की धार्मिक और पौराणिक कारण।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है, कहते हैं कि इन्ही दो ग्रहों को प्रभाव से ही ग्रहण लगता है। माना जाता है कि जब इन दो ग्रहों की छाया चंद्र और सूर्य पर पड़ती है तो ग्रहण लगता है।
बता दें कि ग्रहण लगने के पीछे एक धार्मिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार जब समुद्र मंथन किया गया। मंथन में कई तरह के रत्नों और कीमती वस्तुओं की प्राप्ति हुई, जिसमें से एक अमृत कलश भी था। अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों के मध्य विवाद होने लगा। देवताओं को इस बात का भय था कि अगर राक्षसों ने अमृत पी लिया तो वे अमर हो जाएंगे, जिसके बाद सारे संसार में विनाश की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। अपनी इसी चिंता को लेकर सभी देवी-देवताओं ने जगत के पालनहार भगवान विष्णु से मदद की गुहार लगाई। देवताओं की चिंता का निवारण करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया। कहा जाता है कि श्री हरि का मोहिनी रूप इतना ज्यादा सुंदर था कि हर देवी-देवता उनकी खूबसूरती से मंत्रमुग्ध हो चुका था।

मोहिनी में दैत्यों और देवगणों को अलग अलग बिठा दिया और अपने हाथों से सभी को अमृत पान कराने की इच्छा जताई। जिसके बाद मोहिनी ने सभी देवताओं के अमृत पिलाना शुरू किया। मोहिनी बने भगवान विष्णु की इस चाल को कोई नहीं जान सका लेकिन एक असुर था जो उनकी इस चाल को जान गया था। वे असुर भी उठकर देवताओं के साथ आकर बैठ गया। चंद्रदेव और सूर्यदेव ने उस असुर का पहचान लिया और विष्णु जी को इसके बारे में बताया। जिससे क्रोधित हो श्री हरि ने अपने सुदर्शन से उस दानव का सिर धड़ से काट अलग कर दिया लेकिन वे मरा नहीं क्योंकि जब तक विष्णु ने जी ने सिर काटा तब तक वे दानव अमृत पान कर चुका जिसके कारण वे अमर हो चुका था तथा उसकी मृत्यु नहीं थी। कहते हैं जो उस असुर का सिर वाला हिस्सा था वे राहू कहलाया और धड़ वाला हिस्सा केतु के नाम से जाना गया। कहते हैं कि इसी घटना के बाद से ही राहु-केतु चंद्र और सूर्य को अपना शत्रु मानते हैं और ग्रहण लगाते हैं। माना जाता है कि ग्रहण के समय देवी देवता कष्ट में होते हैं। कहते हैं कि ग्रहण के समय राहु ब्रह्मांड में अपना ज़ोर लगा रहा होता है और इसलिए इस समय के दौरान देवी देवताओं के छुना मना होता है। इसी वजह से ही ग्रहण से पहले ही मंदिर के कपाट भी बंद कर दिए जाते हैं।

