आश्चर्यचकित रह जाएंगे बरगद के धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व को जानकर

punjabkesari.in Thursday, Jan 05, 2017 - 03:26 PM (IST)

हिंदू धर्म इतना सहिष्णु माना गया है कि वह प्रकृति तक से कृतज्ञता ज्ञापित करता है। सूर्य, चंद्र, वायु, जल, पृथ्वी जो भी कुछ देता है उसे देवता तुल्य माना गया है। इसी प्रकार कई पौधे-वृक्ष ऐसे हैं जिनका धार्मिक महत्व तो है ही, साथ ही उसका वैज्ञानिक आधार भी है। 


हिंदू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु, महेश की त्रिमूर्ति की तरह ही वट (बरगद), पीपल और नीम को माना जाता है। इनमें बरगद को ब्रह्म समान माना जाता है। कई व्रत व त्यौहारों में वटवृक्ष की पूजा की जाती है। इसी प्रकार वट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व सौभाग्य की वृद्धि और  पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करने का पर्व बन चुका है। हालांकि विष्णु उपासक इस व्रत को पूर्णिमा को करना ज्यादा हितकर मानते हैं।


इस व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है। पाराशर मुनि के अनुसार ‘वट मूले तोपवासा’ ऐसा कहा गया है। पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठ कर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है, ऐसी मान्यता है। वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व बोध के प्रतीक के नाते भी स्वीकार किया जाता है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। 

 

ऑक्सीजन देता है बरगद
कुछ विशेष पेड़ों की पत्तियां ऑक्सीजन बनाने का काम करती हैं। बताया जाता है कि पत्तियां एक घंटे में 5 मिलीलीटर ऑक्सीजन बनाती हैं इसलिए जिस पेड़ में ज्यादा पत्तियां होती हैं वह पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन बनाता है। बरगद, बांस, नीम और तुलसी के पेड़ अधिक मात्रा में ऑक्सीजन देते हैं। बरगद, नीम, तुलसी के पेड़ एक दिन में 20 घंटों से ज्यादा समय तक ऑक्सीजन का निर्माण करते हैं।

 

कहां-कहां है वटवृक्ष
पुराणों में वर्णन आता है कि कल्पांत या प्रलय में जब समस्त पृथ्वी जल में डूब जाती है उस समय भी वट का एक वृक्ष बच जाता है। अक्षय वट कहलाने वाले इस वृक्ष के एक पत्ते पर ईश्वर बालरूप में विद्यमान रह कर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं। अक्षय वट के संदर्भ कालिदास के ‘रघुवंश’ तथा चीनी यात्री ‘ह्वेन त्सांग’ के यात्रा विवरणों में मिलते हैं। अक्षय वट प्रयाग में त्रिवेणी के तट पर आज भी अवस्थित कहा जाता है। जैन और बौद्ध भी इसे पवित्र मानते हैं। कहा जाता है कि बुद्ध ने कैलाश पर्वत के निकट प्रयाग के अक्षय वट का एक बीज बोया था।


जैनों का मानना है कि उनके तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी। प्रयाग में इस स्थान को ऋषभदेव तपस्थली (या तपोवन) के नाम से जाना जाता है। वाराणसी और गया में भी ऐसे वट वृक्ष हैं जिन्हें अक्षय वट मान कर पूजा जाता है। कुरुक्षेत्र के निकट ज्योतिसर नामक स्थान पर भी एक वटवृक्ष है जिसके बारे में ऐसा माना जाता है कि यह भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता के उपदेश का साक्षी है।

 

मघा नक्षत्र का प्रतीक है बरगद
ज्योतीषीय दृष्टि में बरगद के पेड़ को मघा नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है। मघा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बरगद की पूजा करते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने घर में बरगद के पेड़ लगाते हैं। अग्निपुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है इसीलिए संतान के इच्छित लोग इसकी पूजा करते हैं। इस कारण बरगद काटा नहीं जाता। अकाल में इसके पत्ते जानवरों को खिलाए जाते हैं। अपनी विशेषताओं और लम्बे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्वर माना जाता है। इसीलिए इस वृक्ष को अक्षय वट भी कहा जाता है। वामनपुराण में वनस्पतियों की व्युत्पत्ति को लेकर एक कथा भी आती है। आश्विन मास में विष्णु की नाभि से जब कमल प्रकट हुआ तब अन्य देवों से भी विभिन्न वृक्ष उत्पन्न हुए। उसी समय यक्षों के राजा ‘मणिभद्र’ से वट का वृक्ष उत्पन्न हुआ था। यक्ष से निकट संबंध के कारण ही वटवृक्ष को ‘यक्षवास’, ‘यक्षतरु’, ‘यक्षवारूक’ आदि नामों से भी पुकारा जाता है।

 

रामायण में है उल्लेख
‘सुभद्रवट’ नाम से एक और वट वृक्ष का भी वर्णन मिलता है जिसकी डाली गरुड़ ने तोड़ दी थी। रामायण के अक्षय वट की कथा तो लोक प्रचलित है ही लेकिन वाल्मीकि रामायण में इसे ‘श्यामन्यग्रोध’ कहा गया है। यमुना के तट पर वह वट अत्यंत विशाल था। उसकी छाया इतनी ठंडी थी कि उसे ‘श्यामन्योग्राध’ नाम दिया गया। श्याम शब्द कदाचित वृक्ष की विशाल छाया के नीचे के घने अथाह अंधकार की ओर संकेत करता है और गहरे रंग की पत्रावलि की ओर। रामायण के परावर्ती साहित्य में इसका अक्षयवट के नाम से उल्लेख मिलता है। राम, लक्ष्मण और सीता अपने वन प्रवास के समय जब यमुना पार कर दूसरे तट पर उतरते हैं तो तट पर स्थित इस विशाल वट वृक्ष को सीता प्रणाम करती है।  


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