Akshaya tritiya jain: दान की दीक्षा का दिन है अक्षय तृतीया, जब आदिनाथ ने रचा अक्षय पुण्य का इतिहास
punjabkesari.in Tuesday, Apr 29, 2025 - 03:49 PM (IST)

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Akshaya tritiya jain 2025: वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया का नाम लेते ही एक अलौकिक दृश्य आंखों के सामने तैरता है। तपस्या से तेजस्वी भगवान आदिनाथ गहन मौन में, गजपुर (वर्तमान हस्तिनापुर) की पावन धरा पर विचरण करते हुए और समर्पण भाव से सिर झुकाए राजा श्रेयांस, जिनके हाथों में था एक पात्र गन्ने के रस से भरा हुआ। यह वही क्षण था जब दान की परम्परा ने सांस ली, जब मौन ने संवाद रचा और जब पुण्य ने ‘अक्षय’ स्वरूप धारण किया। वैदिक पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया मनाई जाती है। यह दिन अबूझ मुहूर्त के रूप में जाना जाता है अर्थात इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना मुहूर्त देखे किया जा सकता है।
जैन दर्शन में अक्षय तृतीया का आदिकालीन महत्व
जैन ग्रंथों के अनुसार, यह दिन केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक युग प्रवर्तन का प्रतीक है। भगवान ऋषभदेव ने जब अपनी राजसी जीवनशैली का त्याग कर दीक्षा ली, तो उन्होंने 6 महीने की गहन मौन तपस्या की। इस तप के बाद जब वह समाज में ‘दान की दीक्षा’ देने निकले, तो कोई उन्हें आहार न दे सका क्योंकि दान का शास्त्र ही अनजाना था।
हस्तिनापुर में हुआ इतिहास
जब भगवान आदिनाथ हस्तिनापुर पहुंचे, वहां के राजा श्रेयांस को पूर्वजन्म की स्मृति जागृत हुई। उन्होंने आदिनाथ को न केवल पहचान लिया बल्कि नवधा भक्ति के साथ गन्ने के रस से आहार दान देकर ‘दानतीर्थ’ की परंपरा का शुभारंभ किया। वह दिन था अक्षय तृतीया। इसी कारण यह तिथि जैन समाज में ‘इक्षु तृतीया’ (गन्ने के रस से जुड़ी तृतीया) के रूप में प्रतिष्ठित हुई।
पांच अद्भुत घटनाएं
जैसे ही भगवान ने आहार ग्रहण किया, श्रेयांस के महल में प्रकट हुए पांच अलौकिक चमत्कार :
1. रत्नों की वर्षा, 2. पुष्पों की वर्षा, 3. दिव्य दुन्दुभि की ध्वनि, 4. सुगंधित मंद वायु का प्रवाह, 5. ‘अहो दानम्!’ की आकाशवाणी।
ये घटनाएं न केवल देवताओं का अनुमोदन थीं, बल्कि उस कर्मभूमि की पहली दान विधि की अमरता की उद्घोषणा भी।
अक्षय पुण्य की भावना
इस दिन जैन अनुयायी आहार दान, ज्ञान दान, औषधि दान और अभय दान के माध्यम से पुण्य अर्जित करते हैं। यह विश्वास है कि इस दिन किया गया पुण्य कभी क्षीण नहीं होता अर्थात ‘अक्षय’ रहता है।
तप, संयम और साधना का पर्व वर्षीतप जैसे महान व्रतों का पारायण भी इसी दिन किया जाता है। करीब 13 महीने लंबी इस तपस्या का समापन अक्षय तृतीया को होता है, जिसमें तपस्वी केवल गर्म जल पर जीवन निर्वाह करते हैं।
गन्ने के रस का प्रतीकात्मक महत्व
आज भी जैन समाज इस दिन गन्ने के रस का दान करता है और श्रद्धा से स्मरण करता है उस क्षण का, जब एक राजा ने मुनि को पहला आहार देकर ‘मोक्ष की ओर पहला कदम’ रखा था।
अक्षय तृतीया- दान, धर्म और आत्मकल्याण की अमर धरोहर
अक्षय तृतीया जैन धर्म के अनुयायियों के लिए मात्र पर्व नहीं, बल्कि एक जीवन-दर्शन है। यह वह दिन है, जब दान की परम्परा ने आकार लिया, जब मौन ने दिशा दी और जब एक राजा के हाथों ‘अक्षय पुण्य’ का बीजारोपण हुआ।
यह दिन हमें न केवल पुण्य करने की प्रेरणा देता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि सच्चा दान, श्रद्धा और समर्पण से ही सिद्ध होता है।
अक्षय तृतीया केवल धार्मिक महत्व की तिथि नहीं है, बल्कि इसे वैज्ञानिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन की ऊर्जा का स्रोत अधिक शक्तिशाली होता है, जिससे व्यक्ति के मन और बुद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा इस दिन व्रत और नियम-संयम का पालन करने से स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं।
ब्रिटिश सरकार ने जारी किया था सिक्का
ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी (ब्रिटिश भारतीय सरकार) ने वर्ष 1818 में जैन त्यौहार अक्षय तृतीया के अवसर पर एक आने का सिक्का जारी किया था। इस सिक्के में तीर्थंकर ऋषभदेव को राजा श्रेयांस से गन्ने का रस स्वीकार करते और अपना एक वर्ष का उपवास (वर्षीतप) तोड़ते हुए दिखाया गया है।