टीआर से खत्म होगी किसानों की परेशानी: एसोचैम

punjabkesari.in Sunday, Dec 25, 2016 - 02:25 PM (IST)

नई दिल्लीः उद्योग संगठन एसोचैम ने नोटबंदी की वजह से खेती, मुर्गी पालन तथा बागवानी से जुड़े लोगों को नकदी की किल्लत से हो रही समस्या के निदान के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) नैफेड तथा अन्य केंद्रीय एवं राज्य प्रतिष्ठानों को फसल के बदले हस्तांतरणीय रसीद (टीआर) जारी करने की सलाह दी है। 

एसोचैम ने आज जारी वक्तव्य में कहा कि सरकार को एफसीआई तथा नैफेड जैसे अन्य केंद्रीय एजेंसियों को निर्देश देना चाहिए कि वे फसल खरीदकर किसानों को टीआर जारी करें और यह टीआर कृषि उत्पाद संबंधी सभी स्टोरों पर मान्य होने चाहिए। उसका कहना है कि ये टीआरए पेटीएम की तरह भुगतान का एक जरिया बन सकते हैं जिन्हें बाद में किसी एक नोडल एजेंसी द्वारा संकलित किया जाना चाहिए।


एसोचैम ने इस नोडल एजेंसी के रूप में एफसीआई को प्राथमिकता देने की भी वकालत की है। उद्योग संगठन ने कहा है कि राज्य सरकारों की मदद से इन टीआर के माध्यम से बिना किसी परेशानी के व्यापार की अनुमति दी जानी चाहिए। इसकी सीमा 50,000 रुपए तक रखी जा सकती है। यदि टीआर एफसीआई के स्तर से जारी होंगे तो केंद्र सरकार के लिए पुराने नोटों को बदलने में इनके दुरुपयोग को रोकना भी आसान होगा। वैसे भी, अब 500 और एक हजार रुपए के अधिकतर नोट बैंकिंग तंत्र में वापस आ गए हैं और मुख्य परेशानी नए नोटों की कमी की है।  

संगठन के महासचिव डी.एस. रावत ने कहा, 'इसी तरह टी बोर्ड, मत्स्य पालन बोर्ड, जूट बोर्ड तथा रबर बोर्ड जैसी एजेंसियाँ भी टीआर जारी कर सकती हैं और कुछ रिटेल चेन स्टोर से इन टीआर को मान्यता देने के लिए समझौता किया जा सकता है। यह सोडेक्सो लंच कूपन के मॉडल पर काम कर सकता है।'

रावत ने कहा कि स्टेट ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन जैसी कंपनियां भी इसमें जुड़ सकती हैं और एमएमटीसी, जो खाद आयात से भी जुड़ा है, वह सीधे या सहकारी भंडारों के जरिए यूरिया तथा खेती से जुड़े अन्य पोषक तत्त्व किसानों तक पहुंचाने में मददगार साबित हो सकता है। एसोचैम ने प्रधानमंत्री कार्यालय, कृषि मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय और रिजर्व बैंक से अपील की है कि वे इस मॉडल पर जल्द से जल्द राज्यों की एजेंसियों के साथ मिलकर काम करें। 

रावत का कहना है कि नोटबंदी की वजह से छोटे किसानों तथा बागवानी करने वालों को अपने उत्पाद गलत लोगों को बेचने पड़ रहे हैं जो उनकी मजबूरी का नाजायज फायदा उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि विशेष परिस्थितियों निदान भी विशेष होना चाहिए और इसी वजह से टीआर के इस मॉडल को अपनाने की दिशा में काम करना चाहिए।


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