विश्व शक्तियां कर रही हैं भारत को ‘सलाम’

punjabkesari.in Wednesday, Jan 16, 2019 - 04:33 AM (IST)

भारत के पक्ष में समय और परिस्थितियां कैसे बदल रही हैं, दुनिया की शक्तियां भारत के सामने कैसे झुक रही हैं, भारत के विचार को जानने के लिए खुद दस्तक दे रही हैं, इसका एक उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत है। 

अफगानिस्तान में शांति वार्ता में भारत की भूमिका और विचार को जानने के लिए अमरीका के विशेष प्रतिनिधि जाल्माई खलिलजाद ने दिल्ली पहुंच कर भारत सरकार के प्रतिनिधियों से विस्तृत वार्ता की और तालिबान को लेकर बढ़ती आशंकाओं का निराकरण भी किया। अमरीकी प्रतिनिधि ने अपने बयान में दृढ़ता के साथ कहा कि अफगानिस्तान में शांति का कोई भी प्रयास या फिर तालिबान को शांति के मार्ग पर लाने की कोई भी कोशिश भारत की सहायता और हस्तक्षेप के बिना संभव नहीं है। 

इसके पहले रूस ने कहा था कि भारत की आशंकाओं को दूर किए बिना अफगानिस्तान में तालिबान को सत्ता में हिस्सेदारी देने के प्रयास से पहले भारत की भूमिका तय होनी चाहिए और भारत के विचार को भी देखना-समझना होगा। इसके पूर्व अफगानिस्तान-पाकिस्तान के पड़ोसी ईरान ने घोषणा की थी कि तालिबान और भारत जब साथ-साथ बैठेंगे तभी अफगानिस्तान में कोई भी राजनीतिक निर्णय सार्थक होगा और वह तालिबान को भारत के साथ शांति वार्ता में बैठाने की कोशिश करेगा। 

सबसे बड़ी बात यह है कि अफगानिस्तान की वर्तमान सरकार दुनिया की शक्तियों अमरीका और रूस के शांति प्रयासों से सशंकित तो जरूर है पर अफगानिस्तान सरकार भारत की भूमिका और भारत के हस्तक्षेप को अनिवार्य मान रही है। अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद कारजेई ने साफ-साफ कहा है कि जब तक भारत की भूमिका सर्वश्रेष्ठ नहीं होगी, भारत की आशंकाएं निर्णय में शामिल नहीं होंगी, तब तक अफगानिस्तान में शांति के प्रयास सफल नहीं होंगे, हामिद कारजेई ने दुनिया की शक्तियों से अफगानिस्तान में भारत की भूमिका को बढ़ाने की मांग की है। भारत के पक्ष में ये स्थितियां तब भी बनी हैं जब पाकिस्तान और चीन की जुगलबंदी भारत के खिलाफ रही है। पाकिस्तान और चीन नहीं चाहते हैं कि दुनिया की समस्याओं के समाधान में भारत की कोई सार्थक या फिर सर्वश्रेष्ठ भूमिका होनी चाहिए।

उस दौर को याद कीजिए जब भारत को अराजक, हिंसक और विफल राष्ट्र की अवधारणा से ग्रसित पड़ोसियों की शिकायत करने के लिए विश्व शक्तियों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता था, आतंकवाद पर नियंत्रण के लिए विश्व की शक्तियों के सामने हाथ-पैर जोडऩे पड़ते थे। विश्व शक्तियां और विश्व जनमत भारत की खिल्ली उड़ाते थे, कहते थे कि भारत बेवजह आतंकवाद-आतंकवाद चिल्लाता है। तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति से शिकायत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री को देहाती औरत की संज्ञा दी थी। देहाती औरत का वह मुहावरा पूरी दुनिया में ही नहीं बल्कि भारत में भी चॢचत हुआ था और 2014 के लोकसभा चुनाव में भी देहाती औरत का मुहावरा यदा-कदा गर्मी पैदा करता था। भारत को हमेशा पाकिस्तान के साथ जोड़कर देखा जाता था और यह कहा जाता था कि आतंकवाद का प्रश्न दोनों देशों के बीच का है।

सबसे बड़ी बात यह है कि दुनिया का कोई भी शासक भारत आता था तो पहले या फिर बाद में पाकिस्तान जाना नहीं भूलता था और पाकिस्तान के विचारों को भी अपनी यात्रा में प्रमुखता के साथ देखता था। उस काल में विश्व की शक्तियां भारत के स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होती थीं, कश्मीर के प्रश्न पर विश्व की शक्तियां भारत की एकता और अखंडता पर कुठाराघात करती थीं, भारत की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करती थीं। कश्मीर पर कथित मानवाधिकार हनन पर भारत को धमकाने की कोई कोशिश छोड़ी नहीं जाती थी। 

अफगानिस्तान में हिंसा के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार
वही विश्व शक्तियां आज न केवल अपना विचार बदल चुकी हैं, भारत को हमेशा पाकिस्तान के साथ रख कर तुलना करने की अपनी अराजक और एक पक्षीय मानसिकता को आत्मघाती मान रही हैं। खासकर अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने एक बयान में साफ तौर पर कह दिया कि उसके लिए पाकिस्तान किसी काम का नहीं है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को स्वाभाविक दोस्त मान कर विश्व व्यवस्था में भारत की शक्तियां बढ़ाने की बार-बार घोषणा की है। पाकिस्तान बार-बार कहता रहा है कि अफगानिस्तान में कोई भी शांति का प्रयास उसके सहयोग और समर्थन के बिना संभव नहीं हो सकता है। 

दुनिया अब यह समझ गई है कि अफगानिस्तान की अशांति, अफगानिस्तान में हिंसा का राज सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान के पाप की गठरी है। पाकिस्तान ने ही अफगानिस्तान में ङ्क्षहसा का स्थायीकरण किया है। जिस तालिबान के कारण अफगानिस्तान में अशांति है, ङ्क्षहसा है उस तालिबान को पाकिस्तान ने खाद और पानी दिया है। तालिबान को पाकिस्तान आज भी समर्थन और संरक्षण देता है। तालिबान का नेता मुल्ला उमर पाकिस्तान में ही मरा था। 

मुल्ला उमर की जब पाकिस्तान में मौत हुई थी तब यह स्वीकार कर लिया जाना चाहिए था कि मुल्ला उमर पाकिस्तान की निगरानी और उसके संरक्षण में रह रहा था। आज भी पाकिस्तान गुड तालिबान के नाम पर हिंसा और आतंकवाद को संरक्षण दे रहा है। इस कारण विश्व की शक्तियां पाकिस्तान को नजरअंदाज कर रही हैं। फिर भी पाकिस्तान नहीं माना तो फिर उसे दंड मिलना तय है। आज पाकिस्तान कंगाल हो चुका है पर आतंकवाद को हथियार बना कर विश्व शक्तियां पाकिस्तान को कर्ज देने के खिलाफ रही हैं। विश्व शक्तियों के विरोध के कारण कंगाल पाकिस्तान को दुनिया के नियामकों से कर्ज नहीं मिल रहे हैं। 

अफगानिस्तान में भारत की छवि ‘मददगार राष्ट्र’ की
अफगानिस्तान के अंदर भारत की भूमिका निर्णायक और सर्वश्रेष्ठ क्यों मानी जा रही है। इसके पीछे कई कारण हैं। कभी अमरीका चाहता था कि भारत भी अफगानिस्तान में अपनी सेना खड़ी करे और तालिबान के खिलाफ  युद्ध में शामिल रहे। इसके पीछे कारण यह था कि आतंकवाद से  लडऩे में भारतीय सेना को महारत हासिल थी। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में शांति सेना के रूप में भारतीय सेना ने अपना प्रभुत्व कायम किया था। पर भारत ने तालिबान के साथ युद्ध में उलझने से इंकार कर दिया। अफगानिस्तान के रचनात्मक विकास को भारत ने प्रमुखता दी है। अफगानिस्तान के संसद से लेकर, सामरिक रूप से अति महत्वपूर्ण सड़कों का निर्माण भी भारत ने किया है। 

सबसे बड़ी बात यह है कि अफगानिस्तान में पुलिस और सेना की व्यवस्था को प्रशिक्षित करने और दक्ष बनाने में भारत ने बड़ी भूमिका निभाई है। आज भारत अफगानिस्तान को सर्वाधिक सहायता देने वाले देशों में अग्रणी है। इस कारण अफगानिस्तान की सरकार और जनता के बीच में भारत की छवि एक मददगार और पालनहार की है। भारत की इस छवि को पाकिस्तान और चीन नहीं तोड़ सकते हैं। विश्व की शक्तियां भी भारत की इस छवि को सलाम करने में ही अपनी भलाई समझेंगी।

ईरान भी भारत के साथ
सबसे बड़ी बात यह है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान का पड़ोसी देश ईरान भी भारत के साथ कई प्रश्नों पर गहरी दोस्ती रखता है। ईरान की कई परियोजनाओं में भारत की भूमिका बढ़ी है। अफगानिस्तान की अशांति से ईरान भी प्रभावित होता है। पाकिस्तान और चीन पर ईरान कभी भी विश्वास नहीं कर सकता है। पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन भी ईरान के लिए भस्मासुर हैं इसलिए ईरान भी भारत के साथ खड़ा होकर तालिबान की अशांति और ङ्क्षहसा को दूर करना चाहता है। 

भारत को सतर्क रहने की जरूरत
रूस ने इधर अफगानिस्तान में नए ढंग से हस्तक्षेप किया है, तालिबान को वह सत्ता का हिस्सेदार बनाना चाहता है। अमरीका भी तालिबान को सत्ता का हिस्सेदार बना कर अफगानिस्तान से सम्मान के साथ निकलना चाहता है। पर भारत की समस्या यह है कि तालिबान का रुख पाकिस्तान के साथ है। तालिबान भारत विरोधी भी है। जब तक तालिबान भारत की संप्रभुत्ता के खिलाफ कदम नहीं उठाने का वायदा करता तब तक भारत की आशंकाएं कैसे दूर होंगी। जब तक तालिबान की कसौटी पर भारत की आशंकाएं दूर नहीं होंगी तब तक भारत तालिबान का समर्थन कैसे और क्यों करेगा? विश्व शक्तियों को अपना हित प्यारा हो सकता है पर भारत को भी अपने हित की ङ्क्षचता है। भारत ने सिर्फ अफगानिस्तान में ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य प्रश्नों पर भी अपनी वीरता दिखाई है। निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि अफगानिस्तान में तालिबान को लेकर भारत को सतर्क रहने की जरूरत है।-विष्णु गुप्त


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