चुनावी समर में अब कौन कहां

punjabkesari.in Saturday, May 25, 2024 - 05:51 AM (IST)

5वें चरण में 62.20 प्रतिशत  मतदान हुआ। वहीं पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने ज्यादा वोट डाला। चुनाव आयोग की यह सूचना निश्चय ही उत्साहित करने वाली थी कि चौथे चरण में मतदान करने वालों की संख्या 2019 के मुकाबले ज्यादा रही। इस चरण में मतदान 69.56 प्रतिशत हुआ जो 2019 के इसी चरण की तुलना में 3.65 प्रतिशत अधिक है। तीसरे चरण में मतदान का आंकड़ा 65.68 प्रतिशत रहा जबकि 2019 में 68.4 प्रतिशत था। 26 अप्रैल को दूसरे चरण में 66.71 प्रतिशत मतदान हुआ जबकि 2019 में 69.64 प्रतिशत हुआ था। पहले चरण में 66.5 प्रतिशत मतदान हुआ जो 2019 के 69.43 प्रतिशत से कम था। हालांकि अभी 4 चरणों के मतदान को मिला दें तो यह 2019 से करीब 2.5 प्रतिशत के आसपास कम होगा। 

उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाले दो चरणों में जहां 114 सीटों पर मतदान होना है,आंकड़ा और बढ़ेगा। किंतु अगर आंकड़ा न भी बढ़ा तो राष्ट्रीय स्तर पर मतदान में इतनी कमी को ज्यादा ङ्क्षचताजनक गिरावट के रूप में नहीं देखा जा सकता। अभी इसमें पडऩे की आवश्यकता नहीं है कि मतदान करने वालों में भाजपा और राजग के मतदाता अधिक निकल रहे हैं या विरोधियों के। इस चुनाव ने फिर एक बार साबित किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं अपने व्यवहार से कार्यकत्र्ताओं समर्थकों के लिए उदाहरण स्थापित करते हैं और राजनीति एवं चुनाव का एजैंडा भी सैट करते हैं। हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को चुनाव प्रचार के लिए उच्च न्यायालय द्वारा दी गई  सशर्त जमानत को आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन के लिए बड़ी घटना के रूप में प्रचारित किया गया। 

उन्होंने अपने चरित्र के अनुरूप निकलने के साथ ही ऐसे बयान देना शुरू किया जो अभी तक आई.एन.डी.आई.ए. के एजैंडे में नहीं था। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही अपनी पार्टी में पदों के लिए 75 वर्ष की उम्र सीमा बनाई थी और चूंकि वे 17 सितंबर, 2025 को 75 वर्ष के हो रहे हैं, इसलिए रिटायरमैंट ले लेंगे। रिटायरमैंट लेंगे तो अपने करीबी अमित शाह को ही प्रधानमंत्री बनाएंगे। उन्होंने यह भी कह दिया कि वह योगी आदित्यनाथ को उनके पद से हटा देंगे। इस पर आगे चर्चा करेंगे। दो दौर में मतदान प्रतिशत की गिरावट के बाद जो संकेत सामने आया उसके बाद प्रधानमंत्री ने ऐसा लगा जैसे नए सिरे से करवट लिया हो और चुनाव प्रचार शुरू किया हो। वे अयोध्या गए ,योगी आदित्यनाथ के साथ रामलला के दर्शन किए, रोड शो किए और वहां से संदेश दिया कि चुनाव भाजपा के नियंत्रण में है। उसके बाद से चाहे वाराणसी में चौथे चरण के चुनाव के दिन नामांकन दाखिल करना हो या अन्य कार्यक्रम, वे लगातार देश के सामने रहे। 

वाराणसी में कार्यकत्र्ताओं से संवाद करते हुए पूरे देश के भाजपा कार्यकत्र्ताओं और नेताओं को संदेश दिया कि मतदान बढ़ाना आपकी भूमिका है इसके लिए उन्होंने जिस तरह के भावनात्मक शब्दों का इस्तेमाल किया उससे कार्यकत्र्ता प्रेरित हुए होंगे। समाचार आ रहा था कि भाजपा के कार्यकत्र्ताओं-नेताओं का एक वर्ग स्थानीय स्तर पर उदासीन है। इसे ही कहते हैं नेतृत्व, जो जीत या हार की संभावना वाली किसी भी परिस्थिति में लोगों को प्रेरित करने के लिए जान लगा दे। प्रधानमंत्री ने यही दिखाया। उसके साथ उन्होंने दोबारा सभी टैलीविजन चैनलों, कई समाचार पत्रों को इंटरव्यू  दिया। आप देखेंगे कि प्रधानमंत्री जहां भी थे वहीं से उन्होंने इंटरव्यू दिया और पूरी बातचीत की। 

इन सब में नए सिरे से चुनाव का एजैंडा तथा जीतने के विश्वास के साथ भावी सरकार की कार्य योजनाओं का विवरण था। इसके समानांतर राहुल गांधी  दृश्य से एक सप्ताह के आसपास लगभग ओझल रहे। रायबरेली से नामांकन के बाद वहीं दिखे और उसके बाद लगभग 10 दिन बाद उड़ीसा की रैली में सामने आए। उन्होंने टी.वी. चैनलों को चुनाव में एक साक्षात्कार भी नहीं दिया है। अरविंद केजरीवाल की ओर लौटें तो कहने की आवश्यकता नहीं कि 75 वर्ष में रिटायरमैंट एक शगूफा था। उन्हें भी पता है कि ऐसा होने वाला नहीं है। भाजपा में 2014 से कुछ समय तक 75 वर्ष की उम्र सीमा का अघोषित बंधन दिखाई पड़ता था। आगे ऐसा बंधन नहीं रहा। वी.एस. येदियुरप्पा को कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाया गया तो ई. श्रीधरन को केरल के मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया। 

संसदीय बोर्ड एवं चुनाव समिति में ऐसे सदस्य हैं जो इस उम्र की सीमा के बंधन से आगे निकल चुके हैं। केजरीवाल ने सोचा कि भाजपा के अंदर यह प्रश्न उठेगा और समर्थक भी सोचेंगे कि भाई मोदी जी अगर रिटायर ही हो जाएंगे तो हम उनके नाम पर वोट क्यों दें? योगी आदित्यनाथ के समर्थकों की भाजपा और संगठन परिवार में सबसे बहुत बड़ी संख्या है। यानी भाजपा के समर्थकों को पहले मोदी के नाम पर और योगी समर्थकों को उनके नाम पर भ्रम और विरोध पैदा करना। वैसे आम आदमी पार्टी केवल 22 स्थान पर लड़ रही है जो  मुख्यत: दिल्ली एवं पंजाब तक सीमित है। गुजरात में कांग्रेस ने उसे एक सीट दी है। इसमें उनके बयान या उनकी यात्राएं दूसरी पार्टी को बहुत लाभ पहुंचाएंगे ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है। 

मुख्यमंत्री आवास पर अरविंद केजरीवाल के सहायक द्वारा राज्यसभा सदस्य स्वाति मालीवाल की बुरी तरह पिटाई एवं दुराचार सबसे बड़ा राजनीतिक बवंडर का विषय है जिनका जवाब उनके लिए देना कठिन हो गया। स्वाति मालीवाल की घटना ने आई.एन.डी.आई.ए. के नेताओं को संदेशखाली के बाद दूसरी बार ऐसी स्थिति में ला दिया है जहां सच जानते हुए भी स्टैंड नहीं ले रहे हैं। इसका संदेश आम मतदाताओं तक जा रहा है। शेष बचे मतदान में कांग्रेस का महाराष्ट्र, हरियाणा हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों के अलावा बहुत ज्यादा दांव पर नहीं है। उत्तर प्रदेश के रायबरेली से राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं, पूरी पार्टी वहां लगी रही, लेकिन प्रदेश में सपा मुख्य ताकत है और कांग्रेस को केवल 17 सीटें लडऩे के लिए मिली हैं। बिहार में पार्टी लालू प्रसाद यादव के राजद के सहारे है और उड़ीसा में इसकी कोई ताकत नहीं। 

दिल्ली में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के बाद दूसरी ताकत होना स्वीकार किया। पंजाब में आम आदमी पार्टी से भी इसे टकराना पड़ेगा और हरियाणा में भी पार्टी काफी कलह और गुटबंदी का शिकार है। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का कोई वरिष्ठ नेता चुनाव प्रचार करने नहीं गया। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी के प्रचार में केवल शशि थरूर गए। राहुल गांधी ने वहां झांकना तक जरूरी नहीं समझा। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक हरियाणा और पंजाब के पार्टी नेतृत्व की भी यही शिकायत थी कि केंद्रीय नेता अभी तक रैली करने नहीं आए। भाजपा हर चुनाव में पूरी ताकत लगाती है और रायबरेली में फिर इस बार राहुल की घेराबंदी की कोशिश थी। रायबरेली में स्थानीय नेताओं के बीच एकजुटता न देख केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह स्वयं सपा और भाजपा में आए विधायक मनोज पांडे के घर गए और उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह के साथ मिलकर काम करने का वायुमंडल बनाया। 

पिछले चुनाव में भाजपा अपनी रणनीति से अमेठी से राहुल गांधी को पराजित कर चुकी है। राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के इन दोनों स्थानों से लडऩे के अनिच्छुक थे इसका प्रमाण अंतिम समय तक दोनों स्थानों के लिए उम्मीदवारी की घोषणा नहीं होना था। उनका नाम नामांकन के कुछ समय पहले घोषित किया गया। स्वयं प्रधानमंत्री ने इसे मुद्दा बनाया। निश्चय ही शेष तीन चरणों में रायबरेली, अमेठी और वाराणसी सर्वाधिक चर्चा में रहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी पहले भी रैलियां कर रहे थे लेकिन पिछले 10 दिनों में जितना उन्होंने परिश्रम किया है वह सब रोड शो, रैलियां, कार्यकत्र्ताओं के साथ संवाद और टीवी इंटरव्यू में लगातार दिख रहे हैं। निश्चय ही इसका असर है और विपक्ष के नेताओं के लिए इसके समानांतर उसी रूप में संपूर्ण देश या अपने राज्यों में मतदाताओं को आकर्षित करना कठिन चुनौती है। अगर राहुल गांधी कुछ क्षेत्रों तक सीमित रहते हैं तथा अरविंद केजरीवाल को स्वाति मालीवाल के प्रश्नों पर झेंपना पड़ता है तो इसका असर चुनाव में नहीं होगा ऐसा कौन कह सकता है।-अवधेश कुमार
 


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