जब चुनाव सर्वेक्षण गलत साबित हो जाए

punjabkesari.in Sunday, Jun 09, 2024 - 05:08 AM (IST)

भारत  के आम चुनाव में कई हफ्तों के गहन प्रचार के बाद मतदान 1 जून को समाप्त हो गया। इसके तुरंत बाद मीडिया कई सर्वेक्षणकत्र्ताओं के परिणामों का विश्लेषण करने के लिए दौड़ पड़ा। सभी सर्वेक्षणों ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बड़ी जीत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल का संकेत दिया। सर्वेक्षणों के अनुसार, साजिश यह थी कि भाजपा की जीत कितनी महत्वपूर्ण होगी, 543 सीटों वाली संसद में 281 से 401 सीटों तक की भविष्यवाणी की गई थी।

यह विस्तृत शृंखला दर्शाती है कि हमारे जैसे बड़े और विविधतापूर्ण देश में सीटों की संख्या का अनुमान लगाना कितना मुश्किल है। इसके अलावा, सीटों की संख्या पर ध्यान अक्सर मतदाता के व्यवहार और भविष्यवाणियों के पीछे के कारणों की गहरी अंतर्दृष्टि पर हावी हो जाता है। 2024 दुनिया भर में एक महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष होने के कारण चुनावों को गहन जांच का सामना करना पड़ता है। ऐसे युग में जहां डाटा सार्वजनिक भावना को मापने और चुनावी परिणामों की भविष्यवाणी करने के लिए महत्वपूर्ण है। यहां तक कि सबसे परिष्कृत एल्गोरिदम और पद्धतियां भी कभी-कभी अप्रत्याशित गलत अनुमान लगा सकती हैं जो विश्लेषकों और जनता को समान रूप से चकित कर देती हैं।

उदाहरण के लिए 2016 और 2020 में अमरीकी चुनाव और 2016 के ब्रैग्जिट जनमत संग्रह ने चुनावों की विश्वसनीयता और प्रभाव के बारे में संदेह पैदा कर दिया है। आइए हम हाल के इतिहास के कुछ उल्लेखनीय सर्वेक्षणों पर नजर डालें जहां सर्वेक्षणकत्र्ताओं ने इसे गलत पाया और इन चूकों के पीछे के कारण बताए।

2016 अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव : अधिकांश प्रमुख सर्वेक्षणों ने डोनाल्ड ट्रम्प पर हिलेरी क्लिंटन की जीत की भविष्यवाणी की। हकीकत तो यह थी कि डोनाल्ड ट्रंप चुनाव जीत गए थे। सर्वेक्षणों में स्विंग राज्यों में ट्रम्प के समर्थन को कम करके आंका गया और उन जनसांख्यिकीय समूहों को ध्यान में रखने में विफल रहे जो ट्रम्प के लिए उम्मीद से अधिक बड़ी संख्या में आए थे।

2016 ब्रैग्जिट जनमत संग्रह : सर्वेक्षणों से पता चला कि ‘बचा हुआ’ खेमा जीतेगा। हालांकि ‘छोड़ें’ पक्ष को 52 प्रतिशत वोट मिले। सर्वेक्षणकत्र्ता वृद्ध मतदाताओं और आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में ‘छोडऩे’ के लिए अधिक इच्छुक लोगों के बीच भारी मतदान से चूक गए थे।

2015 यू.के. आम चुनाव : सर्वेक्षणों में कंजर्वेटिव पार्टी और लेबर पार्टी के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा का सुझाव दिया गया, लेकिन कंजर्वेटिव पार्टी ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया। कार्यप्रणाली संबंधी मुद्दों और ‘शर्मीले टोरी’ मतदाताओं को कम आंकने के कारण यह गलत आंकलन हुआ।

2019 ऑस्ट्रेलियाई संघीय चुनाव : सर्वेक्षणों ने लिबरल-नैशनल गठबंधन पर ऑस्ट्रेलियाई लेबर पार्टी की जीत की भविष्यवाणी की। हालांकि, लिबरल-नैशनल गठबंधन ने बहुमत हासिल किया। चुनाव, विशेष रूप से क्वींसलैंड और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में मतदाताओं के समर्थन को सटीक रूप से हासिल करने में विफल रहे।

2019 इसराईली चुनाव : सर्वेक्षणों ने संकेत दिया कि ब्लू एंड व्हाइट पार्टी प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की लिकुड पार्टी पर जीत हासिल करेगी। दरअसल, लिकुड  और उसके सहयोगियों ने एक गठबंधन बनाया, जिससे नेतन्याहू सत्ता में बने रह सके। सर्वेक्षणकत्र्ताओं ने नेतन्याहू के आधार के बीच मतदान प्रतिशत और उनके अंतिम समय के प्रचार अभियान के प्रभाव को कम करके आंका। ये उदाहरण मतदान की जटिलताओं और अंतर्निहित अनिश्चितताओं को उजागर करते हैं। वे मानव व्यवहार की अप्रत्याशित प्रकृति को बेहतर ढंग से पकडऩे के लिए मतदान पद्धतियों में निरंतर सुधार की आवश्यकता की याद दिलाते हैं।

भारत में, पिछले अढ़ाई दशकों में इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के तेजी से विकास के साथ एग्जिट पोल व्यापक हो गए हैं। हालांकि, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126ए, मतदान समाप्त होने तक एग्जिट पोल के परिणामों को आयोजित करने और प्रसारित करने पर रोक लगाती है। इसलिए कोई यह पूछ सकता है कि क्या वे वास्तव में महत्वपूर्ण हैं? यह देखते हुए कि आधिकारिक चुनाव परिणाम कुछ ही दिनों में घोषित किए जाते हैं? वे क्या मूल्य प्रदान करते हैं? इस बात पर चर्चा हुई है कि क्या उन पर प्रतिबंध भी लगाया जाना चाहिए।

यद्यपि अक्सर अशुद्धियों के लिए आलोचना की जाती है लेकिन मतदाता व्यवहार में डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि प्रदान करके, अनुमान के स्थान पर सूचित विश्लेषण की पेशकश करके सर्वेक्षण लोकतांत्रिक समाजों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 2004 में वाजपेयी की वापसी की भविष्यवाणी, ब्रैग्जिट के ‘शेष’ वोट और हिलेरी क्लिंटन की जीत जैसी त्रुटियों के बावजूद अच्छे सर्वेक्षण आम तौर पर नुकसान की तुलना में अधिक अच्छा करते हैं।

एक्सिस माई इंडिया और टुडेज चाणक्य जैसे भारतीय सर्वेक्षणकत्र्ताओं ने अपने अनुमानों में सराहनीय सटीकता दिखाई है जिससे अक्सर विजेता सही साबित होता है। फिर भी कार्यप्रणाली संबंधी खामियों और मीडिया की संपूर्ण खुलासों को रोकने की प्रवृत्ति के कारण जनता में अविश्वास बना रहता है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर मतदान डाटा का भ्रामक चित्रण होता है। जबकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार को बरकरार रखा जाना चाहिए, मीडिया पर पूर्ण खुलासे और त्रुटि की संभावनाओं सहित स्थिति की वास्तविकता को ईमानदारी से प्रस्तुत करने की एक बड़ी जिम्मेदारी है। यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार रिपोॄटग आवश्यक है कि चुनाव भ्रम के स्रोत के बजाय एक मूल्यवान उपकरण के रूप में काम करें।-हरि जयसिंह


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Related News