भारत में ‘व्हाट्सएप हैकिंग’ के पीछे कौन

punjabkesari.in Monday, Nov 04, 2019 - 12:56 AM (IST)

आइए कुछ तथ्यों पर नजर डालते हैं और भारतीयों का व्हाट्सएप हैक होने के मामले को समझने की कोशिश करते हैं। पहली बात यह है कि जिस कम्पनी पर इस अपराध का आरोप लगा है उसे फेसबुक (जो व्हाट्सएप की मालिक है) ने अमरीका में कोर्ट में घसीट लिया है। आरोपी फर्म, इसराईल के एन.एस.ओ. ग्रुप, ने एक ऐसे प्लेटफार्म का निर्माण कर उसे बेचा है जो इसके ग्राहकों को दुनिया भर में मिस्ड कॉल के द्वारा कम से कम 1400 और संभवतय: इससे अधिक मोबाइल फोन हैक करने की अनुमति देता है। यह इस वर्ष 29 अप्रैल और 10 मई के बीच घटित हुआ। यहां पर महत्वपूर्ण बात यह है कि एन.एस.ओ. ग्रुप के सभी ग्राहक राष्ट्रीय सरकारें हैं। 

कम्पनी का कहना है कि वह ‘सार्वजनिक सुरक्षा कायम रखने में सरकार की मदद करती है।’ इसका दावा है कि इसने ऐसी श्रेष्ठ तकनीक का निर्माण किया है जिसकी सहायता से सरकारी एजैंसियां विस्तृत रेंज के स्थानीय और वैश्विक खतरों की पहचान कर सकती हैं और उनसे बचाव कर सकती हैं। कम्पनी के उत्पाद सरकारी खुफिया और कानून लागू करने वाली एजैंसियों को ऐसी तकनीक के इस्तेमाल में सहायता करते हैं जिससे एनक्रिप्शन की चुनौतियों का सामना करते हुए आतंक और अपराध को रोका जा सके और उसकी जांच की जा सके। 

विशेषज्ञों ने तैयार की है तकनीक
एन.एस.ओ. तकनीक टैली कम्युनिकेशन और खुफिया विशेषज्ञों  द्वारा तैयार की गई है। ये लोग अपने क्षेत्र में माहिर होने के साथ-साथ साइबर वल्र्ड की बदलती हुई दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चलने के प्रति समर्पित होते हैं। दूसरे, भारत में वे लोग इसका निशाना हैं जिन्हें हमारी सरकार राष्ट्र विरोधी कहती है। इन लोगों में भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों के वकील, तथा अल्पसंख्यकों के मामलों और जनजातीय क्षेत्रों के लिए काम करने वाले कार्यकत्र्ता शामिल हैं। इनमें से बहुत से लोगों को पहले भी सरकार परेशान कर चुकी है। इनमें से बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें मैं जानता हूं और जिनके साथ मैंने काम किया है।

मोदी सरकार का पक्ष 
तीसरे, मोदी सरकार ने इस बात से इंकार नहीं किया है कि उसने एन.एस.ओ. प्लेटफार्म हासिल किया है और इस बात से भी इंकार नहीं किया है कि वह फोन हैक कर अपने नागरिकों की जासूसी कर रही है। इसकी बजाय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने अपनी स्टेटमैंट में यह कहा कि भारत ने व्हाट्सएप से यह स्पष्ट करने को कहा है कि उल्लंघन की प्रकृति क्या है और वह भारतीयों की निजता की रक्षा के लिए क्या कर रहे हैं। सरकार के लिए यह उचित होगा कि  वह सीधे तौर पर अपनी संलिप्तता से इंकार करती। हालांकि, संभवतया इसलिए कि मामला अमरीका में कोर्ट में है, जहां जजों को आसानी से वरगलाया नहीं जा सकता, यह संभव है कि सरकार शायद उन विकल्पों पर ध्यान दे रही है कि वह कितनी सूचना उजागर कर सकती है। उधर एन.एस.ओ. ने अपनी स्टेटमैंट में कहा है कि वह यह नहीं बता सकते कि कौन उनका ग्राहक है और कौन नहीं। 

चौथे, भारत सरकार आई.टी. जांचों में सहयोग के लिए प्राइवेट कम्पनियों का इस्तेमाल करती है। जब पिछले वर्ष मेरे संगठन पर ‘छापा’ (मैं इस शब्द को कोट्स में इसलिए इस्तेमाल कर रहा हूं क्योंकि हमारे खिलाफ कोई भी आरोप नहीं था और न ही है अथवा  कोई शिकायत भी नहीं) मारा गया तो हमारा सर्वर क्लोन करने के लिए एक प्राइवेट कम्पनी के दो लोगों को सौंप दिया गया। अर्थात इसे कापी किया जाना था। इस छापे के दौरान मुझसे मेरा मोबाइल फोन ले लिया गया और मुझे इसे अनलॉक करने के लिए तथा उन्हें सौंपने के लिए मजबूर किया गया।  जब मैंने पूछा कि क्या यह कार्रवाई वैध है, मुझे कोई उत्तर नहीं मिला। मेरा फोन कई हाथों में सौंपा गया जिन्होंने इसके साथ छेड़छाड़ की और मुझे यह नहीं बताया गया कि  वापस करने से पहले इसके साथ क्या किया गया। ऐसा ही अन्य ‘छापों’ के दौरान भी हुआ जिनमें नैटवर्क 18 के संस्थापक राघव बहल की कम्पनी पर पड़ा छापा भी शामिल है। 

भारत में जिम्मेदारी तय नहीं
पांचवां, अमरीका के विपरीत भारत सरकार की ओर से की जाने वाली निगरानी पर न्यायिक निगाह नहीं रखी जाती है। अमरीका में टैपिंग के लिए जज से अनुमति लेनी पड़ती है। भारत में इसकी जरूरत नहीं होती।  कुछ समय पहले एक समाचारपत्र द्वारा दायर एक आर.टी.आई. से यह खुलासा हुआ कि केन्द्रीय गृह सचिव  ने प्रति वर्ष 10,000 फोन टैप करने की अनुमति दी। इसका अर्थ हुआ कि 300 अनुमतियां प्रतिदिन। इससे पता चलता है कि वह विवरण में जाए बिना प्रत्येक  चीज को स्वीकृत कर रहे हैं। अमरीका के विपरीत भारत में  इकट्ठी की गई सामग्री की अनधिकृत  और अवैध लीकेज के प्रति कोई जिम्मेदारी तय नहीं है। यहां इसके लिए अधिकारियों और मंत्रियों को दंडित नहीं किया जाता। 

छठा,इतने बड़े पैमाने पर इकट्ठी की गई सामग्री के बावजूद सजाएं नहीं होतीं। आतंक के आरोपियों को जिन कानूनों के तहत सजा दी जाती है उनमें सजा की दर एक प्रतिशत है। 99 फीसदी मामलों में सरकार गलत तरीके से आरोपी बनाए गए व्यक्तियों पर केस साबित करने में असफल रहती है। इस असफलता में यू.ए.पी.ए. (जिसके तहत भीमा कोरेगांव कार्यकत्र्ताओं पर केस दर्ज किया गया है) भी शामिल है। सरकार में इस असफलता अथवा दुरुपयोग के लिए कोई जिम्मेदारी तय नहीं की गई है। हमें इस तथ्य पर विचार करने से पहले कि किसी ने उन भारतीयों के फोन्स को हैक करने के लिए इसराईली कम्पनी को अदायगी की है जिनसे सरकार सहमत नहीं है, इस पृष्ठभूमि को जानने की जरूरत है। 

भारत में क्या है स्थिति
आमतौर पर भारत में इस तरह के मामले किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचते क्योंकि समय के साथ मीडिया की रुचि समाप्त हो जाती है और सरकार को कभी भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता। कुछ साल पहले, एक समाचारपत्र जिसका मैं सम्पादन करता था, ने सलमान खान और प्रिटी जिंटा के बीच टैप हुई बातचीत को प्रकाशित किया था। उस अभिनेत्री ने मेरे ऊपर मानहानि का केस किया और कोर्ट में यह बात सामने आई कि मुम्बई पुलिस ने बिना अनुमति के सलमान के फोन को टैप किया था लेकिन कोई सजा नहीं दी गई और मामले को शांत कर दिया गया। 

लेकिन इस बार अमरीकियों के फोन भी हैक हुए हैं और उनकी न्यायिक प्रणाली में समय आने पर सच्चाई सामने आने की उम्मीद है और जब इस बात का खुलासा हो जाएगा कि हैकिंग के पीछे कौन है और हम हमेशा यह कह सकते हैं कि किसी भी मामले में ‘राष्ट्र विरोधियों’ को निजता का कोई अधिकार नहीं है और उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई, चाहे वह अवैध ही क्यों न हो, स्वीकार्य है।-आकार पटेल


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