पंजाब विधानसभा चुनाव में मतदाता दुविधा में रहा

punjabkesari.in Saturday, Feb 26, 2022 - 05:30 AM (IST)

चुनाव  के अंतिम दिन तक मतदाता दुविधा में रहा कि वह इधर जाए या उधर? पहले पंजाब में जब भी चुनाव आता था एक तरफ शिरोमणि अकाली भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन तो दूसरी तरफ कांग्रेस में सीधा मुकाबला होता। कभी एक जीत जाता, कभी दूसरा। परन्तु इस बार चार कोणीय मुकाबले का पंजाब के लोगों को सामना करना पड़ा। विशेषकर ‘आप’ पार्टी ने एक प्रिसैप्शन फैलाने में भयानक सफलता प्राप्त कर दी कि वह पंजाब में अब की बार सरकार बनाएगी। 

ट्रैडीशनल पार्टियों पर मतदाता उंगली उठाने लगा। कांग्रेस वाले आपस में ही उलझे हुए हैं-एक नेता दूसरे को और दूसरा कांग्रेसी नेता तीसरे को नीचा दिखाने में लगा है अत: छोड़़ो उसे। अकाली-भाजपा गठबंधन ने ड्रग और रेत माफिया को जन्म दिया अत: इसे भी मजा चखाओ। ‘आप’ पार्टी ने पंजाब के मतदाताओं से मर्सी अपील की कि एक मौका ‘झाड़ू’ को भी देकर पंजाब के लोग देख लें। ‘दिल्ली-मॉडल’ पंजाब को देंगे। पर मुझे पता नहीं वह दिल्ली मॉडल क्या है? पर  ऐसे नाजुक नारों ने मतदाताओं को भ्रमित जरूर कर दिया है। लोग कहते मिले कि आप नेता केजरीवाल ने मोदी जैसे नेता के सामने ‘आप’ के रूप में एक विकल्प तो मतदाताओं के सामने रखा है न? चलो आजमाते हैं। परन्तु अनुमान लगाना कठिन है कि यह प्रिसैप्शन वास्तविकता दिखाती है या नहीं? लोग कंफ्यूज्ड जरूर हुए। 

मेरी बात को कोई भी राजनीतिक दल अन्यथा न ले। भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर शिरोमणि-अकाली दल ने तुरन्त बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन कर पंजाब के मतदाताओं के सामने एक ‘मास्टर स्ट्रोक’ जरूर मारी। पता नहीं यह गठबंधन शिरोमणि अकाली दल को सत्ता तक पहुंचा पाता है या नहीं? परन्तु अपने चुनाव अभियान को सुखबीर बादल ने अंतिम क्षण तक व्यवस्थित रखा। जो मिला उसे छ: महीने पहले ही अपना उम्मीदवार घोषित करता गया। ऐसा नहीं कि उसने अपने पुराने साथी भारतीय जनता पार्टी का भी लिहाज किया हो?

सुजानपुर से राज कुमार गुप्ता, अमृतसर से अनिल जोशी और आनंदपुर साहिब से मदन मोहन मित्तल को भी अपने साथ लेकर उड़ गया। मैं तो सुखबीर को अनाड़ी समझता था परन्तु 2022 के पंजाब विधानसभा के चुनाव में तो वह अपने पिता स. प्रकाश सिंह बादल को भी मात दे गया। स्मरण रहे 2017 के पंजाब विधानसभा में शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी गठबंधन को मात्र 18 (15+3) सीटें ही प्राप्त हुई थीं परन्तु इस चुनावी अभियान को देखकर लगता है वह इस आंकड़े को दोगुना कर जाएगा। चाहे ‘बरगाड़ी कांड’ और ‘श्री गुरुग्रंथ साहिब’ की बेअदबी मामले को लेकर सिखों का एक वर्ग बादल परिवार को घेरे हुए है। मतदाता शिरोमणि अकाली दल को लेकर भी कंफ्यूज्ड दिखाई देता है। शायद एक तीसरा विकल्प मतदाता तलाश कर रहा हो? 

वह विकल्प है भारतीय जनता पार्टी, प्लस कैप्टन अमरेन्द्र सिंह भूतपूर्व मुख्यमंत्री पंजाब की पार्टी ‘पंजाब लोक कांग्रेस’ प्लस ढींडसा का ‘संयुक्त अकाली दल’ का गठबंधन। यद्यपि भारतीय जनता पार्टी ने एक नया विकल्प मतदाताओं के सामने रखा है परन्तु देखना होगा कि यह विकल्प विधानसभा चुनावों की कसौटी पर कितना खरा उतरता है। पंजाब की एकता, भाईचारे और सुरक्षा का यह विकल्प कितना सफल होगा इसका पता 10 मार्च को पंजाब के लोगों को देखने को मिलेगा परन्तु इस गठबंधन ने चुनावी अभियान में तहलका जरूर मचा दिया है। हर छोटा-बड़ा नेता धड़ाधड़ भारतीय जनता पार्टी का दामन थामता इस चुनाव में नजर आया। विशेषकर आई.पी.एस., आई.ए.एस., पी.सी.एस., रिटायर्ड सैनिक और सिख बंधु दौड़-दौड़ कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। शायद यह भाजपा की नीति का हिस्सा हो परन्तु प्रयोग को तो चुनावी तराजू पर तोल कर ही परखा जाएगा। मेरा अनुमान था कि सिर्फ काडर विहीन ‘आप’ पार्टी ने ही अन्य पार्टियों के नेताओं को अपने साथ मिला अपना कुनबा खड़ा किया है। 

कांग्रेस का कोई दुश्मन नहीं। उसे तो अपने ही मार रहे हैं। चुनावों से ठीक पहले जिस तरह अपने ही मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को बेइज्जत कर पार्टी से रुखसत किया, ऐसा कांग्रेस ही कर सकती है। कांग्रेस हाईकमान मुख्यमंत्री बनाना तो चाहती कैप्टन के स्थान पर नवजोत सिद्धू को थी परन्तु परिस्थितियों ने ऐसी करवट ली कि एक साधारण परिवार के एक साधारण से नेता चरणजीत चन्नी के सिर पर मुख्यमंत्री का ताज सज गया। नवजोत सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का प्रधान बना दिया। बेचारा कांग्रेस अध्यक्ष होकर भी मुख्यमंत्री बनने की तमन्ना लेकर भी विषवमन करता रहा। 

चुनाव का चौथा कोण साल भर आंदोलन चलाने वाले किसान नेताओं का है। बेहतर होता किसान नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने और देश से माफी मांगने के बाद अपनी-अपनी खेती को संभालते परन्तु किसान नेताओं को पता नहीं क्या सूझी कि उन्होंने ‘किसान-समाज मोर्चे’ के नाम पर पंजाब विधानसभा का चुनाव लडऩे की योजना बना डाली। इससे उनकी मंशा पर प्रश्रचिन्ह लग गया। अंतिम बात कह कर पाठकों से क्षमा मांगूंगा। कनाडा एक धनी देश है। पंजाबी वहां भरपूर हैं। बेचारे वहां मेहनत-मजदूरी करके अपना परिवार पाल हे हैं। खालिस्तानी नेता पन्नु वहीं है। आतंकियों को फंडिंग भी भरपूर करता है। 

जब भारत में किसान आंदोलन जोरों पर था तो कनाडा पहला देश था जिसने विश्व भर में भारत की बदनामी करते हुए बार-बार कहा था कि भारत सरकार किसानों के आंदोलन को कुचल रही है, लोकतंत्र की हत्या कर रही है। वही कनाडा सरकार आज  पंजाब के ट्रक-आप्रेटरों पर लाठी चला रही है, उन्हें गिरफ्तार कर रही है। वहां का प्रधानमंत्री गुप्त स्थान पर छिपा बैठा है। अब कनाडा बताए हमने तो भारत में किसान आंदोलन भी खत्म कर दिया, यहां के किसान नेता चुनाव भी लड़ रहे हैं परन्तु कनाडा के पंजाबी ट्रक चालक लम्बे समय से हड़ताल पर क्यों हैं? लोकतंत्र, भारत में है या कनाडा में?-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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