अमृतपाल का पंजाब में न कोई सैद्धांतिक और न ही सियासी आधार

punjabkesari.in Wednesday, May 01, 2024 - 04:05 AM (IST)

18वीं लोकसभा के लिए पंजाब की 13 सीटों के लिए मतदान का अंतिम 7वां पड़ाव 1 जून 2024 को सम्पन्न होगा। पंजाब में इस बार करीब 21271246 मतदाता संभावित उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे, जिनमें  11192959 पुरुष, 10077543 महिलाएं तथा 744 ट्रांसजैंडर मतदाता हैं। राज्य में चुनावों को शांतिपूर्वक और नियमित तौर पर सम्पन्न करने के लिए 24433 पोङ्क्षलग स्टेशन स्थापित किए गए हैं। इस बार पंजाब में राजनीतिक समीकरण बिल्कुल बदले दिखाई देते हैं। राज्य में आम आदमी पार्टी सत्ता में है। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में इसने 117 में से 92 सीटों पर जीत हासिल कर भगवंत सिंह मान के नेतृत्व में सरकार का गठन किया था।

वर्ष 2022 में संगरूर लोकसभा उपचुनाव में करारी हार के बाद 2024 में जालंधर के लोकसभा उपचुनाव में जीत प्राप्त कर ली थी। इस बार राज्य में शिरोमणि अकाली दल-भाजपा का गठबंधन किसानों के मुद्दे को लेकर टूटने के कारण बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा। ‘इंडिया’ गठबंधन के राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख दल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पंजाब में प्रमुख विरोधी दल और सत्ताधारी होने के कारण अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे। बसपा प्रमुख मायावती का शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन टूटने के कारण वह पंजाब में अकेले ही चुनाव लड़ेंगी। सिमरनजीत सिंह मान जोकि वर्ष 2022 में संगरूर लोकसभा उपचुनाव जीत गए थे, के नेतृत्व वाला  अकाली दल अमृतसर अन्य कट्टर सिख संगठनों के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहा है। इसके अलावा अन्य कई छोटे दल और आजाद उम्मीदवार भी मैदान में हैं।

दिलचस्प मोड़ : इस दौरान पंजाब लोकसभा चुनाव में एक अत्यंत दिलचस्प मोड़ अस्तित्व में आया है। ‘वारिस पंजाब दे’ संस्था का प्रमुख अमृतपाल सिंह जो एन.एस.ए. सहित 7 केसों में अपने 57 सहयोगियों के साथ डिब्रूगढ़ (असम) जेल में वर्ष 2023 से बंद है, ने पंथक क्षेत्र के तौर पर मशहूर खडूर साहिब से चुनाव लडऩे का बिगुल फूंक दिया है। इसने पूरे पंजाब के चुनावी दंगल में हलचल मचा दी है। अमृतपाल सिंह वह व्यक्ति है जो पंजाब के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक मंच पर सितम्बर 2022 को एक आंधी की तरह आया और 20 अप्रैल 2024 को रोडे गांव (मोगा) के गुरुद्वारा साहिब के बाहर पंजाब पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण के नाटक द्वारा पकड़े जाने से तूफान की तरह गायब भी हो गया। 

पंजाब के भीतर कुछ कट्टर सिख शक्तियों ने अपने अस्तित्व को जीवंत रखने के लिए अमृतपाल को लोकसभा चुनाव में खडूर साहिब इलाके से उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। वैसे तो पंजाब में इनका राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक आधार नहीं है। यह पत्ता भी तब खेला गया जब देश-विदेश में किसी राजनीतिक और कूटनीतिक दबाव में कानूनी प्रयासों के बावजूद अमृतपाल सिंह को जमानत पर रिहा करने या पंजाब में किसी जेल में शिफ्ट करने संबंधी सफलता हासिल न हुई बल्कि इसके विपरीत एन.एस.ए. की सीमा अवधि बढ़ा दी गई। 

सपने : वर्ष 1989 में लोकसभा चुनावों में आतंकी शक्तियों की हिमायत प्राप्त भागलपुर (बिहार) में बंद पूर्व आई.जी. और आई.पी.एस. अधिकारी सिमरनजीत सिंह मान ने पूरे देश में राम विलास पासवान के बाद दूसरे नम्बर पर सबसे अधिक वोट हासिल कर तरनतारन में जीत प्राप्त की थी। छ: अन्य क्षेत्रों से भी उग्रवाद समर्थक लोगों ने जीत हासिल की थी। इनके मुकाबले शिरोमणि अकाली दल उम्मीदवारों की जमानतें भी जब्त हो गई थीं। बाद में उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया था। सिमरनजीत सिंह मान एक जागीरदार परिवार से संबंध रखते हैं। उनके पिता स्वतंत्रता के बाद पंजाब के कैबिनेट मंत्री और विधानसभा स्पीकर रहे। वह पटियाला राजशाही से संबंधित कैप्टन अमरेन्द्र सिंह (पूर्व मुख्यमंत्री पंजाब) के सगे सांडू हैं। 

बीत गए दिन : धार्मिक हमदर्दी, भावनात्मक ब्लैकमेङ्क्षलग और आतंकवादी दबदबे के दिन लद गए हैं। वर्ष 2019 में इसी पंथक क्षेत्र के तौर पर पहचाने जाते खडूर साहिब से पंजाब में 25,000 के करीब झूठे पुलिस मुकाबलों में मारे जाने वाले युवकों की जानकारी प्रदान करने वाले और खुद ही पुलिस उत्पीडऩ का शिकार होने वाले जसवंत सिंह खालड़ा की पत्नी परमजीत कौर खालड़ा इस सीट से बुरी तरह हारी थी। शिरोमणि अकाली दल (बादल) उम्मीदवार बीबी जगीर कौर भी हारी और सीट कांग्रेस पार्टी के जसबीर सिंह डिम्पा जीत गए थे। 

2022 में संगरूर उपचुनाव में बंदी सिखों और अन्य सिख मुद्दों तथा बलवंत सिंह राजोआणा की मुंह बोली बहन कुलदीप कौर को शिरोमणि अकाली दल (बा) प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने चुनाव में खड़ा किया जो शर्मनाक तरीके से पांचवें स्थान पर आई। उसके विपरीत भाजपा उम्मीदवार को अधिक वोट मिले थे। मौकापरस्त पंथक नेता, आतंकवादी, केन्द्रीय एजैंसियां और विदेशों में बैठे सिख नौजवानों को गुमराह करने वाले खालिस्तानियों ने बिना सिख सिद्धांतों और सिख मर्यादाओं से अलग हट कर भारत सरकार के साथ टकराव में हजारों बेगुनाह नौजवानों की बलि दे दी। जून 1984 में आप्रेशन ब्ल्यू स्टार तथा 30 अक्तूबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद नवम्बर 84 में दिल्ली तथा अन्य स्थानों पर सिख कत्लेआम में भारत सरकार, कांग्रेस पार्टी तथा कुछ कानून विरोधी लोगों ने गुनाह किया। यह देश हकीकत में सबसे पहले सिखों का ही है जिसकी आजादी के लिए उन्होंने 85 प्रतिशत कुर्बानियां दीं। इस देश में कौन-सी ऐसी जगह है जहां पर सिख गुरुओं ने पूरे विश्व के भले के लिए मानवीय एकता, सद्भावना का प्रचार नहीं किया। 

अमृतपाल सिंह गुरबाणी, कीर्तन, कथा और भाषण कला में शून्य जरनैल सिंह भिंडरांवाला की नकल करता था। वह हथियारबंद युवकों को साथ रखता था। सिख कौम की गुलामी की जंजीरों को तोडऩे, सिख साम्राज्य स्थापित करने का दम भरता था। शिरोमणि अकाली दल ने पूर्व आतंकी, विरसा सिंह वलटोहा, जिसने पंजाब विधानसभा में गरज कर यह कहा था कि मैं आतंकवादी था, हूं और रहूंगा, को उम्मीदवार बनाया था। यह वही व्यक्ति है जो आप्रेशन ब्ल्यू स्टार के समय सेना के आगे हाथ बांध कर बाहर आया था। क्या इसे खडूर साहिब के मतदाता मुंह लगाएंगे। यह तो वक्त ही बताएगा। आम आदमी पार्टी मंत्री लालजीत भुल्लर भी रामगढिय़ा और स्वर्णकार भाईचारे को गलत शब्द बोलने के कारण फंसा हुआ है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने खुद माफी मांगी है। यह 100 प्रतिशत स्पष्ट है कि अमृतपाल सिंह जैसे सिद्धांतों और सियासत में शून्य उम्मीदवार को सिख पंथ और लोग नकार देंगे। -दरबारा सिंह काहलों


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