चीन के साथ संबंध भारत के लिए सबसे बड़ी सुरक्षा चुनौती

punjabkesari.in Wednesday, Nov 10, 2021 - 03:48 AM (IST)

चीन के बारे में अमरीकी कांग्रेस को पेंटागन द्वारा हाल में सौंपी गई रिपोर्ट चिंताजनक है। इस रिपोर्ट में न केवल अरुणाचल प्रदेश के उच्च सुबानसिरी क्षेत्र में चीन द्वारा एक छोटे गांव के निर्माण का उल्लेख किया गया है, अपितु इस बात को भी रेखांकित किया गया है कि चीन एकमात्र ऐसा देश है जो अपनी सेना के आधुनिकीकरण और वर्ष 2030 तक अपने परमाणु शस्त्रों की संख्या 1000 तक बढ़ा कर विश्व के लोकतंत्रों को अपनी आर्थिक, सैनिक, कूटनीतिक और प्रौद्योगिकी शक्ति को मिलाकर निरंतर चुनौती देने में सक्षम है। 

दूसरी ओर भारत-चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में 11 माह से गतिरोध चल रहा है और अब इसमें एक नया तनाव जुड़ गया है और वह है भूटान। भूटान ने चीन के साथ अपने पुराने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए हस्ताक्षरित रूपरेखा में भारत को विश्वास में लेना आवश्यक नहीं समझा। ऐसा कर भूटान ने स्पष्ट किया कि वह भारत और चीन के बीच भूराजनीतिक प्रतिस्पर्धा में नहीं उलझना चाहता। यह रूपरेखा भारत और चीन के कोर कमांडरों के बीच 13वें दौर की वार्ता से चार दिन बाद हस्ताक्षरित की गई। 

भारत इससे हैरान है। जून 2017 में चीनी सैनिकों ने डोकलाम पठार के नजदीक एक सड़क के निर्माण का प्रयास किया जिस पर भूटान और चीन दोनों ही दावा करते हैं। भारतीय सैनिकों ने हस्तक्षेप किया क्योंकि यह भूभाग भारत के राजमार्ग के निकट है। 73 दिन तक चले गतिरोध के बाद दोनों पक्षों ने अपनी सेनाएं वापस बुलाईं किंतु उसके बाद भी सैटेलाइट तस्वीरें दर्शाती हैं कि चीन ने इस क्षेत्र में सैनिक अवसंरचना का निर्माण किया और भारत ने इसे नजरअंदाज किया। 

नि:संदेह अनेक सैन्य और कूटनयिक वार्ताओं के बावजूद चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपने दावे को पुख्ता करने के लिए क्रमिक और रणनीतिक कदम उठा रहा है और इस क्रम में उसने अरुणाचल प्रदेश में एक छोटे गांव या पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिक शिविर का निर्माण भी किया है। 

भारत के बारे में चीन में 2 प्रकार की सोच है। पहली, वह भारत की आॢथक, वैज्ञानिक और सैनिक क्षमता को पहचानता है हालांकि इस क्षमता में इस गति से वृद्धि नहीं हो रही जिस गति से चीन की क्षमताओं में हो रही है। दूसरी, अनेक चीनी नेता भारत के इस दावे को नकारते हैं कि वह एक प्रमुख शक्ति है और इसे अवास्तविक और झूठा मानते हैं। तथापि दोनों पक्ष एक-दूसरे की सफलता को स्वीकार करते हैं और एक-दूसरे की महत्वाकांक्षाओं से चिंतित हैं। एक कूटनयिक के अनुसार चीन वेन शुइ झू किंगवा अर्थात मेंढक को मारने के लिए धीरे-धीरे पानी गरम करने की नीति अपना रहा है। जिसके अंतर्गत भारत में धीरे-धीरे अविश्वास बढ़ रहा है और यह चीन के हित में है। 

चीन के साथ भारत के संबंध अच्छे नहीं रहे, जो भारत के लिए सबसे बड़ी सामरिक सुरक्षा चुनौती है। दोनों देशोंं के संबंधों में न केवल ठंडापन है अपितु गहरा अविश्वास भी है किंतु दोनों ने बातचीत नहीं छोड़ी है। हालांकि यह बातचीत केवल अपने-अपने रुख को दोहराने के लिए हो रही है। भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक हितों को किसी तरह नजरअंदाज नहीं कर सकता और इसलिए वह उसी दिशा में कार्य कर रहा है। 

चीन द्वारा एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत के उदय को रोकने की इच्छा को भारत द्वारा शी जिनपिंग की बैल्ट एंड रोड पहल की आलोचना ने और बढ़ाया। मोदी की अति सक्रिय विदेश नीति के चलते भारत और अमरीका तथा हिन्द प्रशान्त क्षेत्र के अन्य देशों के साथ सांझीदारी बढ़ रही है। इसके अलावा मोदी सरकार ‘एक्ट ईस्ट’ पॉलिसी की दिशा में भी आगे बढ़ रही है। 

मोदी समझते हैं कि आज की भू-सामरिक राजनीतिक वास्तविकता में व्यावहारिकता महत्वपूर्ण है और शॉर्ट-कट से काम नहीं चलेगा, इसलिए भारत को चीन से निपटने के लिए एक समग्र और बहुकोणीय रणनीति अपनानी होगी। यद्यपि वह चीन के साथ दीर्घकालीन शांति स्थापना चाहता है किंतु केवल इससे इस बात की गारंटी नहीं मिल जाती कि दोनों देशों के बीच तनाव नहीं बढ़ेगा। एक ऐसी निरंकुश शक्ति के साथ व्यवहार करना आसान नहीं, जो अपने हितों के लिए वैश्विक व्यवस्था को बदलना चाहती है। 

भारत को चीन पर पूरा ध्यान देना व अमरीका और क्वाड देशों के साथ सांझीदारी को बढ़ाना होगा तथा चीन के खतरे का सामना करने के लिए एक समग्र रणनीति अपनानी होगी। भारत को इस संबंध में सजग रहना होगा क्योंकि दोनों देश अपने राजनीतिक, सैन्य और रणनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के उपाय कर रहे हैं। भारत-चीन संबंध एक नई, अधिक खतरनाक और अप्रत्याशित दिशा में बढ़ रहे हैं, जो चिंताजनक है। मोदी और शी जिनपिंग के व्यक्तिगत संबंध अच्छे हैं और दोनों एक दूसरे का सम्मान करते हैं। दोनों को पहचान की व्याख्या और अपने-अपने दृष्टिकोण में सुधार के संभावित उपायों के बारे में बात करनी चाहिए। 

दोनों देशों के संबंधों में सुधार की संभावना इस बात पर निर्भर करेगी कि लद्दाख संकट से भारत और  चीन दोनों देशों ने क्या सबक लिए हैं। यदि चीन मानता है कि वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में भारत-चीन संबंधों का भविष्य उज्जवल नहीं है और भारत पहले ही अमरीका का सहयोगी बन गया है तो फिर द्विपक्षीय मतभेदों का समाधान कठिन है और यदि भारत मानता है कि चीन का उद्देश्य उस पर दादागिरी करना या उसका अपमान करना है और यदि वह अपनी सैन्य शक्ति द्वारा सीमा बदलने के लिए निरंतर अति सक्रिय रहता है या भारत के वैश्विक या क्षेत्रीय हितों को नुक्सान पहुंचाने का प्रयास करता रहेगा तो स्थिति और अधिक चुनौतीपूर्ण बन जाएगी। 

सीमा द्विपक्षीय संबंधों का मूल है और इसका पारस्परिक स्वीकार्य समाधान ढूंढना आवश्यक है। अन्यथा दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा का एक नया दौर शुरू होगा। चीन नए नियम बनाना चाहता है, हालंाकि उसके उकसावे की कार्रवाई के विरुद्ध कड़ी प्रतिक्रिया और एक स्पष्ट लक्ष्मण रेखा इस उपमहाद्वीप में शांति की गारंटी है। भारत ने इस खेल के नियम स्पष्ट कर दिए हैं और ताली एक हाथ से नहीं बजती।-पूनम आई. कौशिश
 


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