नीट परीक्षा : हंगामा है क्यों बरपा?

punjabkesari.in Monday, Jun 17, 2024 - 05:23 AM (IST)

जब भी कभी हम किसी प्रतियोगी परीक्षा के पेपर लीक होने की खबर सुनते हैं तो सबके मन में व्यवस्था को लेकर काफ़ी सवाल उठते हैं। इससे पूरी व्यवस्था में फैले हुए भारी भ्रष्टाचार का प्रमाण मिलता है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसी खबरें कुछ ज्यादा ही आने लगी हैं। सोचने वाली बात है कि इससे देश के युवाओं पर क्या असर पड़ेगा? महीनों तक परीक्षा के लिए मेहनत करने वाले विद्यार्थियों के मन में इस बात का डर बना रहेगा कि रसूखदार परिवारों के बच्चे पैसे के बल पर उनकी मेहनत पर पानी फेर देंगे? मध्य प्रदेश में हुए व्यापम घोटाले के बाद अब एक बार फिर मैडीकल कॉलेजों में दाखिले के लिए ‘नीट परीक्षा’ में हुए घोटाले पर जो बवाल मचा है उससे तो यही लगता है कि चंद भ्रष्ट लोगों ने लाखों विद्यार्थियों के भविष्य को अंधकार में धकेल दिया है। 

जब से नीट की परीक्षा लागू हुई है ऐसा पहली बार हुआ है कि इस परीक्षा की कटऑफ इतनी हाई गई है। यदि एन.टी.ए. की मानें तो ‘नीट कट ऑफ कैंडिडेट्स की ओवरऑल परफॉर्मैंस पर निर्भर करती है। कटऑफ बढऩे का मतलब है कि परीक्षा कंपीटीटिव थी और बच्चों ने बेहतर परफॉर्म किया’ परंतु क्या यह बात सही है? गौरतलब है कि इस बार की नीट परीक्षा में 67 ऐसे युवा हैं जिन्हें 720 अंकों में से 720 अंक मिलते हैं। इसके साथ ही ऐसे कई युवा भी हैं जिन्हें 718 व 719 अंक प्राप्त हुए हैं, जो कि परीक्षा पद्धति के मुताबिक असंभव है। 720 के टोटल माक्र्स वाली नीट परीक्षा में हर सवाल 4 अंक का होता है। गलत उत्तर के लिए 1 अंक कटता है। अगर किसी स्टूडैंट ने सभी सवाल सही किए तो उसे 720 में से 720 मिलेंगे। अगर एक सवाल का उत्तर नहीं दिया, तो 716 अंक मिलेंगे। अगर एक सवाल गलत हो गया, तो उसे 715 अंक मिलने चाहिएं। लेकिन 718 या 719 किसी भी सूरत में नहीं मिल सकते। जाहिर है तगड़ा घोटाला हुआ है। 

जिन विद्यार्थियों ने इस वर्ष नीट परीक्षा दी उनसे जब यह पूछा गया कि इस बार की परीक्षा कैसी थी? तो उनका जवाब था कि इस बार की परीक्षा काफी कठिन थी, कटऑफ काफी नीचे रहेगी। एन.टी.ए. द्वारा एक और स्पष्टीकरण भी दिया गया है जिसके मुताबिक  इस बार टॉप करने वाले कई बच्चों को ग्रेस माक्र्स भी दिए गए हैं। इसका कारण है कि फिजिक्स के एक प्रश्न के दो सही उत्तर हैं। ऐसा इसलिए है कि फिजिक्स की एक पुरानी किताब जिसे 2018 में हटा दिया गया था, वह अभी भी पढ़ी जा रही थी। परंतु यहां सवाल उठता है कि आजकल के युग में जहां सभी युवा एक-दूसरे के साथ सोशल मीडिया के किसी न किसी माध्यम से जुड़े रहते हैं या फिर जहां कोचिंग लेते हैं वहां पर सबसे संपर्क में रहते हैं फिर ये कैसे संभव है कि 6 साल पुरानी किताब को सही नहीं कराया गया होगा? 

अगला सवाल यह भी उठता है कि एन.टी.ए. द्वारा किस आधार पर ग्रेस माक्र्स दिए गए? जबकि मैडीकल परीक्षाओं में ग्रेस माक्र्स देने का कोई प्रावधान नहीं है। एन.टी.ए. ने ग्रेस माक्र्स देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के 2018 के एक आदेश का संज्ञान लिया है, जिसके अनुसार यदि प्रशासनिक लापरवाही के कारण परीक्षार्थी का समय खराब हो तो किन विद्यार्थियों को किन परिस्थितियों में कितने ग्रेस माक्र्स दिए जा सकते हैं। परंतु गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के जिस फैसले का यहां उल्लेख किया जा रहा है वह कॉमन लॉ एडमिशन टैस्ट (सी.एल.ए.टी.) के लिए था उसी आदेश में यह साफ-साफ लिखा है कि यह आदेश मैडीकल और इंजीनियरिंग की परीक्षाओं पर लागू नहीं होगा। परंतु एन.टी.ए. ने न जाने किस आधार पर इस आदेश को संज्ञान में लिया और ग्रेस माक्र्स दे दिए? नीट परीक्षा का यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है और अदालत ने नीट परीक्षा करवाने वाली एजैंसी एन.टी.ए. को व केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। देखना होगा कि ये दोनों कोर्ट में क्या जवाब दाखिल करते हैं? परंतु जिस तरह इस मामले ने तूल पकड़ा है, इस पर राजनीति भी होने लग गई है। 

सोचने वाली बात है कि देश का भविष्य माने जाने वाले विद्यार्थी, जो आगे चल कर डाक्टर बनेंगे, यदि इस प्रकार भ्रष्ट तंत्र के चलते किसी मैडीकल कॉलेज में दाखिला पा भी लेते हैं तो क्या भविष्य में अच्छे डाक्टर बन पाएंगे या पैसे के बल पर वहां भी पेपर लीक करवा कर ‘मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस.’ की तरह सिर्फ डिग्री ही हासिल करना चाहेंगे चाहे उन्हें कोई ज्ञान हो या न हो? सवाल सिर्फ नीट की परीक्षा का ही नहीं है, पिछले कुछ वर्षों से अनेक प्रांतों में होने वाली सरकारी नौकरियों की प्रतियोगी परीक्षाओं में भी लगातार घोटाले हो रहे हैं। जिनकी खबरें आए दिन मीडिया में प्रकाशित होती रहती हैं। एक मध्यम वर्गीय या निम्न वर्गीय परिवार के पास अगर खुद की जमीन-जायदाद, खेतीबाड़ी या कोई दुकान न हो तो नौकरी ही एकमात्र आय का सहारा होती है। घर के युवा को मिली नौकरी उसके मां-बाप का बुढ़ापा, बहन-भाई की पढ़ाई और शादी, सबकी जिम्मेदारी संभाल लेती है। पर अगर बरसों की मेहनत के बाद घोटालों के कारण देश के करोड़ों युवा इस तरह बार-बार धोखा खाते रहेंगे तो सोचिए कितने परिवारों का जीवन बर्बाद हो जाएगा? यह बहुत गंभीर विषय है जिस पर केंद्र और राज्य सरकारों को फौरन ध्यान देना चाहिए।-विनीत नारायण
 


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