पालतू जानवरों पर इतनी निर्दयता क्यों
punjabkesari.in Tuesday, Sep 24, 2024 - 06:00 AM (IST)
टेमी हरबोल्ट अमरीका के लुइसविले विश्वविद्यालय में जैंडर पढ़ाती हैं। वे पशु-पक्षियों की रक्षा करने वाले आंदोलन की प्रमुख नेत्री भी हैं। उनके अनुसार औरतें हमेशा से पशु-पक्षियों की रक्षा करती आई हैं। उन्हें पालती आई हैं। अमरीका में सन 1800 से पशुओं की रक्षा का आंदोलन चल रहा है। आज भी इसमें 80 प्रतिशत महिलाएं ही काम करती हैं। हरबोल्ट के अनुसार शोध बताते हैं कि महिलाओं ने ही पशुओं को घर में रहना सिखाया, उन्हें पालतू बनाया। उन्होंने ही पेड़-पौधों को घर में उगाया। सदियों से घरों में गाय, भैंस, बैल, बकरियां, भेड़ें, कुत्ते, खरगोश, बत्तखें आदि जानवर पाले जाते रहे हैं। इनकी देखभाल औरतें ही करती आई हैं। हरबोल्ट की बात सही है।
भारत के ग्रामीण इलाकों में आज भी अधिकांश महिलाएं ही पशुओं की देखभाल करती हैं। वे ही उनका दूध निकालती हैं। चारा-पानी से लेकर नहलाती-धुलाती हैं। भारत में शहरी क्षेत्रों में भी यही देखने को मिलता है। यहां तक कि बहुत-सी औरतें तो अपने पालतू जानवरों को भी अपने साथ ले जाती हैं। इस लेखिका ने भी देखा है कि कई नौकरीशुदा महिलाएं अपनी बिल्लियों, कुत्तों, खरगोशों आदि को दफ्तर साथ ले जाती हैं। अब भारत में बहुत सी कम्पनियां अपने कर्मचारियों को अपने पालतुओं को दफ्तर साथ लाने की अनुमति भी दे रही हैं। कुछ इन शर्तों के साथ कि वे किसी को नुकसान न पहुंचाएं और काम में व्यवधान पैदा न करें। चाहे पश्चिमी देश हो या भारत, यहां बहुत सी अकेली रहने वाली लड़कियां अपने साथ के लिए कोई जानवर पालती हैं। वे उनकी देखभाल बच्चों की तरह करती हैं। बहुत से लड़के भी ऐसा करते हैं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि पालतू जानवर तनाव से मुक्त करते हैं। वे बेहतर साथी भी होते हैं। बिना कहे भी बात समझ जाते हैं।
हरबोल्ट के अनुसार अमरीका में ऐसे लोग भी देखने में आते हैं, जो पहले तो जानवरों को पालते हैं, लेकिन जब उनकी देखभाल नहीं कर पाते, तो उन्हें अनाथ छोड़ देते हैं। यदि ये बीमार हो जाएं, तो भी इन्हें छोड़ दिया जाता है। क्योंकि इन दिनों अमरीका के अधिकांश वैटर्नरी क्लीनिक, बड़ी कम्पनियों के कब्जे में हैं और वहां इलाज बहुत महंगा भी है। वहां और अपने यहां भी जानवरों के प्रति ऐसी क्रूरता रोकने के लिए कठोर कानून नहीं हैं। अपने यहां तो अगर कानून हों भी, तो कौन इनका पालन करता है। अपने यहां का एक और उदाहरण देखें।
इन दिनों यह बहुत कहा जाता है कि आवारा पशु खेती-बाड़ी को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं। आवारा जानवर चुनावों में हार-जीत का मुद्दा भी बन रहे हैं। ऐसे वीडियोज भी देखने में आ रहे हैं, जहां खेतों के किनारे सैंकड़ों की संख्या में पशु खड़े हैं। न उनके खाने के लिए कुछ है, न पीने के लिए पानी है। सच तो यह है कि इनमें से अधिकांश पशु आवारा नहीं, किसी न किसी के पालतू रहे होंगे। मगर ये मनुष्य के लालच के शिकार हैं। अब जब वे दूध नहीं देते, बूढ़े हो गए, किसी काम के नहीं रहे, तो भला कोई क्यों उनकी देखभाल करे। खिलाए, पिलाए। ये बेचारे कहां जाएं। क्या करें , क्या खाएं। इसलिए ये खेतों में घुसते हैं। फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इनके जीवन की रक्षा के बारे में कोई सोचता ही नहीं है। इन दिनों ट्रैक्टर के रहते, जब बैलों की जरूरत खत्म हो गई है, तो बहुत से लोग जन्मते ही बछड़ों को खदेड़ देते हैं, ये नन्हे शिशु भूखे-प्यासे मर भी जाएं, तो किसी को क्या फर्क पड़ता है।
दिल्ली और अन्य नगरों में भी ऐसा देखा गया है कि बहुत से पालतू जानवर जिनमें कुत्ते अधिक हैं, उन्हें लावारिस छोड़ दिया जाता है। पशुओं की रक्षा करने वाले संगठन आखिर कितनी जिम्मेदारी उठा सकते हैं, जब वे ही लोग अपने पशुओं से निजात पा लेते हैं, जिन्होंने उन्हें पाला था। आखिर यह धरती तो जानवरों की भी उतनी ही है, जितनी कि मनुष्य की, मगर मनुष्य ने इसे अपने अलावा और किसी के लिए नहीं छोड़ा है। इसीलिए पशु-पक्षी, नदियां, पहाड़ सब बर्बाद हैं। हालांकि कभी-कभी बहुत मानवीय दृश्य भी देखने को मिलते हैं। एक वीडियो में हिरण के एक अनाथ बच्चे को एक महिला ने अपना दूध पिलाकर पाला था। यह हिरण का बच्चा इस महिला को ही अपनी मां समझता था।
दूसरे वीडियो में कार से जाते एक लड़के ने गाय के एक बच्चे के पांव को दो मोटी लोहे की तारों के बीच फंसे देखा। वह कार से उतरा और उसे निकालने लगा। लेकिन असफल रहा। तब कई और कारें उसके पास आकर रुकीं और सबने मिलकर उस बच्चे के पैर को बाहर निकाला। इतनी देर उसकी मां पास ही खड़ी थी। बच्चा निकलते ही अपनी मां के पास दौड़ा और दूध पीने लगा। एक लड़के ने कुएं में गिरी बिल्ली को रस्सी के सहारे उतरकर, बाहर निकाला था। ऐसे मानवीय उदाहरण वाकई अनुकरणीय हैं। लेकिन जानवरों के प्रति बरती जाने वाली निर्दयता कैसे कम हो, यह सोचने की बात है। हमारे ईकोसिस्टम में हर जानवर, कीट-पतंग यहां तक कि शैवाल, हर एक की जरूरत है। किसी एक को नुकसान पहुंचता है, तो पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का नुकसान होता है। वैसे भी जानवर सिर्फ अकेले रहने वालों के ही दोस्त नहीं होते। वे बच्चों के भी खूब मित्र होते हैं। बच्चे भी उन्हें खूब चाहते हैं।-क्षमा शर्मा