क्या ई-कॉमर्स किराना कारोबार को कुचल देगा?
punjabkesari.in Wednesday, Sep 25, 2024 - 06:01 AM (IST)
ई -कॉमर्स का एक छोर पूरी तरह से इलैक्ट्रॉनिक माध्यमों से की जाने वाली सेवाओं की बिक्री है, जिसमें आपके मोबाइल फोन पर बस कुछ ही क्लिक होते हैं। आप अपने स्मार्टफोन के जरिए बीमा पॉलिसी खरीद सकते हैं और उसका पूरा भुगतान कर सकते हैं। यही बात एयरलाइन टिकट, मूवी टिकट या होटल के कमरों के लिए भी कही जा सकती है। फिर ई-कॉमर्स का इस्तेमाल ऐसे ब्रांड करते हैं जो उत्पाद बेचते हैं। उदाहरण के लिए, ओला ई-बाइक पूरी तरह से ऑनलाइन बेची जाती है। आप ऑर्डर देते हैं और बाइक आपके घर पर डिलीवर हो जाती है (ओला अब अपने खुद के उपभोक्ता संपर्क केंद्र भी स्थापित कर रही है)। और फिर ऐसे उत्पाद हैं, जो ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से बेचे जाते हैं और यहां भी कई तरह के बदलाव हैं। नाइकी जैसे ब्रांड अपने स्टोर के साथ-साथ अपनी वैबसाइट और अन्य ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से भी जूते बेचते हैं।
छोटे ब्रांड भी ई-कॉमर्स माध्यम से पूरे देश में बिक्री करने में सक्षम हैं। उनके पास नाइकी जैसा ब्रांड आकर्षण नहीं है और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म की मदद के बिना बहुत से लोग उनके उत्पादों को नहीं देख पाते। ये प्लेटफॉर्म छोटे निर्माताओं को दुनिया की एक झलक प्रदान करते हैं। मेरे कई परिचित लोग स्पष्ट रूप से कहते हैं कि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म एक बड़ा वरदान है। यहां तक कि जब मैंने उनसे ग्राहक डाटा के नुकसान के बारे में पूछा (चूंकि प्लेटफॉर्म के पास डेटा है), तो एक व्यक्ति ने यहां तक कहा कि बड़े ब्रांड इस दृष्टिकोण को सांझा नहीं करते। लेकिन कुर्ती या अगरबत्ती बनाने वाली एक छोटी कंपनी ग्राहक डाटा के नुकसान के बारे में कम चिंतित है। फिर किराना व्यापारी आता है, जो कई खतरों का सामना कर रहा है। दो दशक पहले, ये आधुनिक व्यापार आऊटलैट थे। भारतीय किराना अस्तित्व के मामले में माहिर है। उन्होंने डिजिटल तकनीक, यू.पी.आई. भुगतान इंटरफेस, त्वरित डिलीवरी और बहुत कुछ अपनाया है।
जैसा कि एक विशेषज्ञ ने मुझे बताया, स्थानीय किराना अपनी स्थानीय सुविधा के कारण दुर्जेय आधुनिक व्यापार से बच गया। किराना तक चलकर जाना और अपनी जरूरत की चीजें खरीदना आसान था, जबकि कष्ट करके सुपरमार्केट तक जाने के लिए पर्याप्त धन खर्च करना, दी जाने वाली छूट को उचित नहीं ठहराता। अमरीकी खरीदारों के विपरीत, जो कॉस्टको/वॉलमार्ट से हर महीने छूट वाली किराने की वस्तुएं खरीदते हैं और उन्हें अपने बड़े घरों/गैरेजों में रखते हैं, शहरी भारतीयों के घर छोटे होते हैं।
फिर लगभग 10 साल पहले, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और मार्केटप्लेस आए। उन्होंने बहुत ज्यादा छूट दी, लेकिन उनकी सीमाएं थीं। आपको यह सुनिश्चित करने की जरूरत थी कि डिलीवरी कब होगी। और अगर आप अगली बिल्डिंग में किसी दोस्त से बात कर रहे थे, जैसा कि ज्यादातर भारतीय करते हैं, तो आप डिलीवरी से चूक जाएंगे। इस आखिरी मील या आखिरी मिनट की समस्या को क्विक कॉमर्स (क्यू-कॉम) व्यापारियों ने हल कर दिया है। वे सीमित रेंज में सामान देते हैं। छूट कॉस्टको के स्तर पर नहीं है, लेकिन वे 10 या 15 मिनट के भीतर डिलीवरी का वादा करते हैं। यह मॉडल घनी आबादी वाले शहरों के लिए एक विजयी प्रस्ताव है। जबकि सभी क्यू-कॉम व्यापारी अभी भी पैसे खो रहे हैं, लेकिन वे प्रभाव डालते दिख रहे हैं।
जैसा कि इस क्षेत्र के एक विशेषज्ञ ने बताया, किराना व्यापारी स्वाभाविक रूप से अक्षम हैं। वे जीवित रहते हैं क्योंकि वे अक्सर अचल संपत्ति के मालिक होते हैं (या पुरानी दरों पर किराया देते हैं) और परिवार दुकान चलाता है, इसलिए कोई या न्यूनतम वेतन लागत नहीं होती। यह उन्हें अक्षमताओं के बावजूद कम माॢजन के साथ काम करने की अनुमति देता है। अपने स्थानीय किराना से लिक्विड डिटर्जैंट का एक बड़ा पैक खरीदने की कोशिश करें और आपको इस तरह के बहाने सुनने को मिल सकते हैं, ‘‘कंपनी का आदमी अभी तक नहीं आया।’’ या ‘‘आखिरी पैकेट कल ही बिक गया था।’’
ऐसा कहने के बावजूद, मेरा मानना है कि विनम्र भारतीय किराना व्यापारी बिना संघर्ष के हार नहीं मानेंगे। वे अपने उद्देश्य के लिए सरकार से समर्थन मांग रहे हैं। कुछ समझदार किराना व्यापारी पहले से ही विशेषज्ञ खाद्य दुकानें, मिनी-सुपरमार्केट बन रहे हैं, या अपनी खुद की कुशल डिलीवरी प्रणाली स्थापित कर रहे हैं। कुछ तो अपनी ‘खाता’ प्रणाली का विस्तार भी कर रहे हैं। यह एक कठिन लड़ाई होने जा रही है।-अंबी परमेश्वरन