बच्चों की यौन शोषण सामग्री सोशल मीडिया पर क्यों परोसी जा रही?

punjabkesari.in Saturday, Sep 28, 2024 - 05:24 AM (IST)

माननीय उच्चतम न्यायालय ने पिछले दिनों एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर अपना निर्णय सुनाया है। बच्चों की यौन शोषण सामग्री सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों से दिखाकर कुछ लोगों के लिए पैसा कमाने का साधन है। असल में आज भद्दी और अश्लीलता से भरी कोई भी चीज दिखाने से मालामाल हुआ जा सकता है। इससे चिंता तो होती है लेकिन क्या इसे कानूनन रोकना संभव है या कहें कि कितना उचित है? 

चाइल्ड पोर्नोग्राफी या बाल यौन शोषण : असली मुद्दा यह है कि बच्चों के साथ गलत काम करते हुए, उनके कोमल अंगों के साथ खिलवाड़ और उन्हें एक ऑब्जैक्ट यानी वस्तु की तरह इस्तेमाल कर उनके शोषण की फिल्म बनाने पर रोक लगनी चाहिए या नहीं और क्या यह संभव है? आज इंटरनैट पर दुनिया भर से सभी तरह के वीडियो देखने को मिल जाएंगे। सामान्य उपभोक्ता के फोन या मेल पर इस तरह की अनचाही सामग्री की भरमार रहती है। कौन भेज रहा है, इसका स्रोत तक पता नहीं चल पाता। यह हजारों, लाखों लोगों को एक साथ भेजी जाती है। जिसे यह मिली है, वह यह सोचकर कि शायद उसके काम का कोई संदेश तो नहीं है परंतु जैसे ही खोलता है तो अश्लीलता से भरा वीडियो दिखाई देता है। आम तौर पर भेजने वाले का संदेश यह होता है कि यह उपभोक्ता के लिए बहुत ही उपयोगी है और साथ में बहुत से लालच भी दिए जाते हैं। एक तरह से काम या बिजनैस में मदद के नाम पर कुछ टिप्स देने की बात कही जाती है। 

प्रश्न यह है कि जिसने उत्सुकतावश या मुनाफा कमाने के नजरिए से भेजे गए संदेश पढऩे के बाद वह लिंक खोला और देख लिया तो वह अपराधी कैसे हो गया? यदि उसने देख लिया और फिर उसे डिलीट यानी हटा दिया क्योंकि इस तरह की चीजों को देखने में कोई रुचि नहीं है तो उसकी यह जिम्मेदारी कैसे हो गई कि वह इसकी रिपोर्ट पुलिस थाने में करे? वह अपना काम-धंधा, नौकरी या व्यवसाय छोड़कर थाने में हाजिरी दे या ऑनलाइन शिकायत करने में अपना समय लगाए। यदि वह ऐसा नहीं करता है या कर पाता है तो उस पर जुर्माना या उसे जेल की सजा क्यों मिलनी चाहिए? जो लोग बाल यौन शोषण की सामग्री तैयार करते हैं, उन पर सख्त कार्रवाई करने के लिए पहले से ही हमारे यहां कानून हैं। पॉक्सो एक्ट की अगर धाराओं को पढ़ें तो देश में बच्चों के साथ किसी भी तरह का अपराध या उनका शोषण बिल्कुल बंद हो जाना चाहिए था। चाइल्ड पोर्नोग्राफी एक्ट तो बहुत ही कड़ा है। इन दोनों कानूनों के हिसाब से तो बच्चों के साथ कुकर्म करने का तो छोडि़ए, कोई उनकी तरफ आंख उठाकर भी नहीं देख सकता। कानून की मानो तो उसकी आंखें ही निकाल ली जाएं। 

कानून और समाज : यह एक वास्तविकता है कि हमारे यहां कानून तो एक से एक बढिय़ा बन जाते हैं लेकिन उनकी व्यावहारिकता की जांच-परख और इन्हें लागू करने की मंशा अक्सर नहीं होती। सरकार हो या समाज अथवा हमारी न्याय व्यवस्था ही क्यों न हो, गंभीरता से सोचा नहीं जाता, आवश्यक प्रबंध नहीं होते, योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति नहीं होती और फैसलों पर अमल नहीं होते। ऐसी एक नहीं अनेक मिसालें हैं कि जिस बाल्यावस्था में किसी का शोषण हुआ, वह युवावस्था पार कर अधेड़ बन चुके हैं। ऐसे भी किस्से हैं कि बचपन की छेड़छाड़ के मामले की सुनवाई और फैसला तब हुआ हो जब दोनों बूढ़े हो चुके हों। इंटरनैट, सोशल मीडिया और आई.टी. सैक्टर द्वारा सब कुछ आनन-फानन में हर चीज उपलब्ध हो जाने और गूगल महाराज द्वारा ज्ञान की भारी बरसात तो अब हो रही है। जहां तक इस बात का प्रश्न है कि बच्चों द्वारा कोई अपराध किए जाने या उन्हें कोई अपराधी अपने साथ शामिल कर ले तब कानून क्या कहता है। ऐसे बाल अपराधियों के लिए सुधार गृह स्थापित किए जाने की व्यवस्था है। यह एक सच्चाई है कि ये सभी संस्थान जेल की परिकल्पना पर ही आधारित हैं। कुछ राज्यों में ऐसे प्रयोग हुए हैं कि बाल अपराधियों को मुक्त वातावरण में रखकर उनकी कानून में नियत अवधि को पूरा किया जाए। ये प्रयोग व्यापकता और संसाधनों के अभाव तथा प्रशिक्षित प्रशिक्षणकत्र्ताओं के न होने से सफल नहीं कहे जा सकते। 

सिस्टम की कमी : हमारा जो सिस्टम है वह बाल यौन शोषण के अपराधी को पकड़ कर सजा तो दिलाता है लेकिन जो बच्चा इसका शिकार हुआ है, उसे अपने बालपन के उत्पीडऩ या उसके साथ हुई जबरदस्ती और उसे उसके मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाने की बात कोई कानून नहीं करता। इसी के साथ यह भी तथ्य है कि चाहे चाइल्ड पोर्नोग्राफी का नाम बदलकर उसे बच्चों के यौन अंगों का शोषण दिखाती सामग्री कर दिया गया हो लेकिन तब इस हकीकत पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए था कि क्या हमारे सिस्टम के पास कानून लागू करने की इच्छा और संसाधन भी हैं? इंटरनैट से इस तरह का कंटैंट हटाने की बात सही कदम है लेकिन हरेक को एक ही लकड़ी से हांकने की बात गलत है। जो ऐसी सामग्री रखते या देखते और दूसरों को भेजते हैं, उनकी भी तो काऊंसलिंग की जा सकती है, उन्हें समझाया जा सकता है या इसके लिए विवश किया जा सकता है कि वे इस तरह की हरकतों की नजाकत को समझते हुए स्वयं इन्हें हटा दिया करें। आम तौर से अधिकतम लोग ऐसी सामग्री तुरंत हटा देते हैं तो फिर वे मु_ी भर लोग जो इस अश्लील सामग्री के व्यापार से अमीर बन रहे हैं, केवल उन्हीं की पहचान कर उन्हें सख्त सजा देना सही नहीं होगा, जरा सोचिए! -पूरन चंद सरीन
 


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