प्रत्यक्ष रूप से गलत हैं मोदी के दावे

punjabkesari.in Sunday, May 05, 2019 - 01:44 AM (IST)

मेरे सामने 1 मई के एक अंग्रेजी समाचारपत्र की प्रति है और मैं चुनावों संबंधी विभिन्न रिपोर्टों को पढ़ रहा हूं। इसमें एक स्टोरी प्रमुख सुर्खी के साथ है-‘जिस पार्टी का लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष नहीं हो सकता वह प्रधानमंत्री के सपने ले रही है : मोदी।’ इसमें नरेन्द्र मोदी के लखनऊ तथा मुजफ्फरपुर आदि में दिए गए भाषणों को काफी विस्तारपूर्वक बताया गया है। 

भारत का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश सभी राजनीतिक दलों के लिए लड़ाई का महत्वपूर्ण मैदान है। यह विशेष तौर पर 2019 में भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 2014 में जीती गई 71 सीटों (80 में से) को बनाए रखने के लिए लड़ रही है। इन्हीं 71 सीटों ने भाजपा को लोकसभा में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में सहायता की। यदि भाजपा उत्तर प्रदेश में जीती गई सीटों में से आधी भी हार जाती है तो वह अपने बूते पर सरकार का गठन करने में सक्षम नहीं होगी। इसलिए कोई हैरानी की बात नहीं कि मोदी अपना बहुत सारा समय उत्तर प्रदेश में लगा रहे हैं। 

इसमें कुछ गलत नहीं, सिवाय इसके कि प्रत्येक भाषण के साथ मोदी और अधिक असामान्य दावे तथा खुद को भोला साबित कर रहे हैं। वह स्कूल अथवा कालेज में शिक्षित औसत मतदाता की समझ को चुनौती दे रहे हैं। वह किसी व्यक्ति की सच्चाई के साथ स्वतंत्रता की सीमा का भी परीक्षण कर रहे हैं। मोदी के दावों पर नजर डालते हैं: 

कोई बम धमाके नहीं
आतंकवाद से लड़ाई में अक्षमता के लिए कांग्रेस तथा अन्य दलों का विलाप करने के बाद मोदी ने कहा कि ‘क्या आपने मंदिरों, बाजारों, रेलों अथवा बस अड्डों पर अब धमाके सुने हैं? ये बम धमाके रुके हैं या नहीं? वे मोदी के डर से रुक गए हैं।’ इससे पहले उन्होंने बार-बार दावा किया था कि उनके 5 वर्ष के कार्यकाल में कोई बम धमाके नहीं हुए। दुर्भाग्य से तथ्य कुछ और कहते हैं। यहां मैं गत 5 वर्षों में प्रमुख बम धमाकों की एक आंशिक सूची दे रहा हूं, जिसमें एक घटना उस दिन की भी है जिस दिन मोदी ने झूठा दावा किया था :

तिथि                   स्थान                  मौतें
05.12.2014    मोहरा (कश्मीर)         10
10.04.2015    दंतेवाड़ा                    05
27.01.2016    पलामू                      06
19.07.2016    औरंगाबाद (बि.)        10
02.02.2017    कोरापुट                   07
10.05.2017    सुकमा                     25
27.10.2018    अवापल्ली (छ.)         04
14.02.2019    पुलवामा                  44
09.04.2019    दंतेवाड़ा                    5*
01.05.2019    गढ़चिरौली               15
*भाजपा विधायक सहित 

इतिहास से सबक
मोदी का एक अन्य पसंदीदा विषय है कि उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ पहली ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की और इससे पहले की किसी भी सरकार ने भारतीय सेना को सीमा पार करने और पाकिस्तान के क्षेत्र में दाखिल होने का अधिकार नहीं दिया था। मुझे हैरानी होगी कि यदि मोदी ने नहीं सुना (अथवा पढ़ा) होगा कि सेना ने 1965 तथा 1971 में क्या किया था। क्या भारतीय सुरक्षा बलों ने पाकिस्तान के क्षेत्र में दाखिल हुए बिना युद्ध जीते और 1971 में बंगलादेश को आजाद करवाया? इसके अतिरिक्त सेना के जनरलों ने संकेत दिया है कि मोदी का दावा गलत है और उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘यह पहली बार नहीं था और यह अंतिम नहीं होगा।’ यहां सीमा पार की गई पहले की कार्रवाइयों की तालिका है।
21.1.2000 : नडाला एन्क्लेव, नीलम नदी के पार
18.9.2003 : बारोह सैक्टर, पुंछ
19.6.2008 : भट्टल सैक्टर, पुंछ
30.8.2011 : शारदा सैक्टर, नीलम नदी के पार
6.1.2013 : सावन पत्र चैक पोस्ट
27.7.2013 : नाजापीर सैक्टर
6.8.2013 : नीलम घाटी

नरेन्द्र मोदी महज एक राजनीतिक दल के नेता तथा प्रचारक नहीं हैं। वह भारत के प्रधानमंत्री हैं। लोग हैरान हैं कि देश का प्रधानमंत्री क्यों बार-बार झूठ दोहरा रहा है। यह याद्दाश्त खोने का मामला नहीं हो सकता क्योंकि मोदी ने बार-बार याद दिलाया है कि बम धमाकों तथा सर्जिकल स्ट्राइक बारे उनके दावे प्रत्यक्ष रूप से गलत हैं। न ही यह एक चतुराईपूर्ण चुनावी रणनीति हो सकती है क्योंकि लोग जब बार-बार झूठ सुनेंगे तो उन्हें गुस्सा आ जाएगा। मेरा मानना है कि इसके उत्तर मोदी के व्यक्तित्व में गहरे पैठे हैं।

वास्तविक मुद्दों पर चुप्पी
हाल ही में मोदी ने दावा किया था कि उन्होंने कभी भी अपने निम्न मूल (चाय वाला) अथवा अपनी जाति (ओ.बी.सी.) का हवाला नहीं दिया। मैं चौंक गया और कुछ शोध की। मोदी द्वारा कई बार इस बारे टिप्पणियां की गई हैं। मैंने पाया कि सबसे पहले उन्होंने खुद को चाय वाला  28 सितम्बर 2014 को कहा था और उसके बाद कई बार। इसी तरह कई ऐसी टिप्पणियां हैं जब मोदी ने अपनी पिछड़ी जाति के दर्जे का हवाला दिया। इसके दो हालिया उदाहरण 25 मार्च 2018 तथा 18 अप्रैल 2018 के हैं। यहां उनके वास्तविक शब्दों को दोहराना शर्मनाक होगा क्योंकि वह भारत के प्रधानमंत्री हैं और मैं उस पद का सम्मान करता हूं। मोदी को खुश होना चाहिए कि कोई भी उनके तथ्यों की साथ-साथ जांच नहीं कर रहा जैसे कि डोनाल्ड ट्रम्प के भाषणों की। 

अफसोसनाक पहलू यह है कि बहुत से ऐसे वास्तविक मुद्दे हैं जिन पर प्रधानमंत्री बोल सकते हैं और लोग प्रधानमंत्री से उन बारे सुनना चाहते हैं। मगर हैरानीजनक कारणों से मोदी अपनी पार्टी के चुनावी घोषणापत्र बारे नहीं बोलेंगे, वह बेरोजगारी तथा नौकरियों के बारे में नहीं बोलेंगे, वह किसानों के संकट तथा कर्ज के बारे में नहीं बोलेंगे, वह कृषि उत्पादों की घटती कीमतों अथवा कृषि बीमा योजना की बड़ी असफलता के बारे में नहीं बोलेंगे और न ही वह महिलाओं, दलितों, अनुसूचित जातियों, शिक्षाविदें, विद्वानों, पत्रकारों, एन.जी.ओज आदि के डर के बारे में बोलेंगे। नरेन्द्र मोदी ऐसा आभास दे रहे हैं कि जिन अच्छे दिनों का वायदा उन्होंने किया था वे आ गए हैं। सच से कुछ भी इससे अधिक दूर नहीं हो सकता। लोग जानते हैं कि अच्छे दिन नहीं हैं। लोग थक चुके हैं और झूठ सुन कर गुस्से में हैं तथा सच की कुछ खुराकों के लिए तड़प रहे हैं।-पी. चिदम्बरम


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