मोदी जी, लोग ‘अच्छे दिनों’ की प्रतीक्षा कर रहे हैं

punjabkesari.in Monday, Aug 14, 2017 - 10:38 PM (IST)

वर्ष 1942! करेंगे या मरेंगे। गांधी जी के इस नारे ने करोड़ों देशवासियों को अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया था। वर्ष 2017! करेंगे और करके रहेंगे।

मोदी ने देशवासियों में देशभक्ति की भावना का संचार करने तथा देश को सांप्रदायिकता, जातिवाद और भ्रष्टाचार से मुक्त करने तथा भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ पर 2022 तक एक नए भारत के निर्माण के लिए यह नारा दिया। कुल मिलाकर वह जानते हैं कि उन्हें क्या कदम उठाने हैं। यह केवल एक शब्दजाल है या वास्तविक भावना है जिसका उद्देश्य बदलाव लाना और राष्ट्रवाद की भावना पैदा करना है। तथापि उनके इस नारे ने महत्वाकांक्षी भारतवासियों को प्रेरित किया है और वह देश में कुलीनतंत्र, वंशवादी राजनीति, भ्रष्टाचार तथा पक्षपात आदि को समाप्त करने के लिए अधीर हो गए हैं। 

निश्चित रूप से मोदी ने अपने को इन नए समीकरणों का एक हीरो बना दिया है, जिसमें उनकी छवि एक कठोर और स्पष्टवादी नेता के रूप में बनी है, जो किसी का मुकाबला करने के लिए डरता नहीं है चाहे वह भ्रष्टाचार हो, देश विरोधी ताकतें हों या विदेशी दुश्मन या व्यवस्था में सुधार लाना हो। वस्तुत: वह निरंतर अच्छे दिन लाने के प्रयास कर रहे हैं और कह रहे हैं कि देश की जनता शासन में सक्रिय भागीदार बन गई है क्योंकि सरकार और जनता के बीच विश्वास का रिश्ता है। किन्तु क्या वास्तव में ऐसा है? क्या वह समावेशी विकास लाने में सफल हुए हैं? क्या वह अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने और उन्हें सहज बनाने में सफल हुए हैं? यदि हम पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के इस बयान को देखें तो इसका उत्तर नकारात्मक है। 

पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश के दलितों, मुसलमानों और ईसाइयों में असुरक्षा की भावना बढ़ी है। इससे गुस्साए मोदी ने इसका उत्तर यह कहकर दिया कि आपके अंदर कुछ बेचैनी है, किन्तु आज के बाद आप ऐसे संकट का सामना नहीं करेंगे। आज आप मुक्त हो गए हैं और अपने विश्वास के अनुसार सोच सकते हैं, बोल सकते हैं और काम कर सकते हैं। तथापि प्रधानमंत्री द्वारा कट्टरवादी हिन्दुत्व ताकतों पर अंकुश लगाने में विफलता को लेकर कुछ राजनीतिक नाराजगी है। ये तत्व साम्प्रदायिक धु्रवीकरण कर रहे हैं जिससे विभिन्न धर्मों के बीच अंतर समुदाय संबंध प्रभावित हुए हैं। 

हाल ही में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या करने की घटनाएं अल्पसंख्यकों के प्रति एक खतरनाक राजनीतिक प्रवृत्ति बनती जा रही है और यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो समाज विभाजित होगा इसलिए भाजपा को समय रहते हुई विभाजनकारी राजनीति पर अंकुश लगाना होगा क्योंकि अगर इस पर अभी रोक नहीं लगाई गई तो वह दिन दूर नहीं जब यह देश अन्य धर्मों के लोगों के लिए केवल इसलिए असुरक्षित बन जाएगा कि वे अलग धर्मावलंबी हैं। विदेशी मोर्चे पर नमो की विदेश नीति की परीक्षा डोकलाम क्षेत्र में गतिरोध के चलते चीन ले रहा है तथा पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तान और उसके आतंकवादी संगठन तथा सेना मोदी के लिए सरदर्द बने हुए हैं। इन दोनों पड़ोसी देशों के साथ संबंध अच्छे नहीं हैं। पारस्परिक संबंधों में अविश्वास बढ़ता जा रहा है और जब तक यह अविश्वास बना रहेगा तब तक भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान के बीच यह खेल जारी रहेगा। 

मोदी को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह संयम और विवेक से काम लें ताकि हमेशा लाभ की स्थिति में रहें। साथ ही उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा और देश के सामरिक हितों को ध्यान में रखना होगा तथा उसी के अनुरूप क्षेत्रीय और वैश्विक नीति अपनानी होगी। आर्थिक दृष्टि से नोटबंदी रजनीकांत की एक्शन फिल्म के एक दृश्य के समान है जहां पर हीरो बड़े-बड़े कारनामे कर देता है। किन्तु मोदी के इस कदम से न केवल नकदी की कमी हुई अपितु उत्पादन, विनिर्माण, बिक्री और रोजगार में भी गिरावट आई। मध्यावधि आर्थिक समीक्षा में इस बात को रेखांकित किया गया है कि 6.75-7.5 प्रतिशत वृद्धि दर प्राप्त करना मुश्किल है क्योंकि रुपए का मूल्य बढ़ रहा है, किसानों की कर्ज माफी की गई है तथा जी.एस.टी. लागू करने से संक्रमणकारी चुनौतियां पैदा हुई हैं। भारतीय रिजर्व बैंक की हाल ही की रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। 

वित्त मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार अवैध धन के रूप में एक छोटी-सी राशि जमा की गई और इसका प्रभाव सीमित रहा। केवल नोटबंदी से भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगेगा, इसके लिए नौकरशाही कानूनी और विनियामक सुधार भी करने होंगे किन्तु नोटबंदी से मोदी को यह राजनीतिक अभियान चलाने में सहायता मिली कि वह भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए तथा गरीबों की भलाई करने वाले नेता हैं क्योंकि नोटबंदी के चलते गरीबों की बजाय अमीरों को अधिक परेशानी हुई। नोटबंदी के बाद नमो ने उत्तर प्रदेश चुनावों का सामना किया जिनमें उन्होंने डंके की चोट पर कहा कि मैं भ्रष्टाचार का मुकाबला कर रहा हूं और जनता के विकास के लिए कार्य कर रहा हूं, जिसके चलते राज्य में भाजपा की भारी जीत हुई। पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी भाजपा ने अपने पैर जमाए हैं। मोदी का विजयी रथ लगातार आगे बढ़ता जा रहा है और उनके विरोधी सिमटते जा रहे हैं। 

नि:संदेह नए भारत के निर्माण के लिए विचारधाराओं के इस संघर्ष में विपक्ष कहीं खो गया है तथा अति सक्रिय संघ परिवार ने उसे परास्त कर दिया है, जिसके चलते आज 4 शीर्ष संवैधानिक पदों- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष पर संघ परिवार के लोग विराजमान हैं और इससे एक नया राजनीतिक मॉडल तैयार हो रहा है, जिसे सत्ता का संघ मॉडल कहा जा रहा है, जिसका उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना, विपक्ष को समाप्त करना और 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए मोदी के शासन के एजैंडा को आगे बढ़ाना है।

ये चारों संवैधानिक पदधारी आपस में समन्वय कर यह सुनिश्चित करेंगे कि सुशासन में तेजी लाई जाए क्योंकि अब आम चुनावों के लिए केवल 2 वर्ष का समय बचा है। उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत से मोदी-शाह की भाजपा में यह बदलाव भी देखने को मिला कि पार्टी अब केवल ब्राह्मण, बनिया की पार्टी नहीं रह गई है, अपितु यह बहुजन समाज की पार्टी बन गई है। पार्टी ने न केवल महादलितों, अन्य पिछड़े वर्गों, आदिवासियों को लुभाया और उनके मत प्राप्त किए, अपितु यह भी स्पष्ट किया कि संघ परिवार पूरे भारत में अपना प्रभाव बनाना चाहता है। 

किन्तु आज के 24&7 डिजीटल युग और प्रतिस्पर्धी राजनीति में जनता हर समय नेताओं पर नजर रखती है तथा वह मानती है कि हमारी संवैधानिक संस्थाओं में गिरावट आ रही है, इसलिए आवश्यक है कि नमो संविधान की भावना का पालन करें और राष्ट्र की चेतना के रखवाले के रूप में कार्य करें। उन्हें भारत के स्वस्थ विकास तथा इसे जातीय, पंथीय, क्षेत्रीय और भाषायी पहचानों से मुक्ति दिलाने के लिए बुनियादी मुद्दों पर ध्यान देना होगा। देश की आधी से अधिक जनसंख्या 18 से 35 आयु वर्ग में है तथा देश में युवाओं की आकांक्षाएं बदली हैं। अब आज का युवा वर्ग केवल वायदों पर भरोसा नहीं करता है। वे ओबामा की तरह ‘यस वी कैन’ की राजनीति में भरोसा करते हैं। 

आज प्रधानमंत्री सत्ता के मोदी मॉडल के बारे में उदासीन हो सकते हैं किन्तु उनकी राह आसान नहीं है क्योंकि राजनीति में कभी विराम नहीं लगता है। देश में एक नई तरह की राजनीति उभरकर सामने आ रही है। इसलिए हमारे नेताओं को एक नए अध्याय की शुरूआत कर नागरिकों, उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और भविष्य में निवेश करना चाहिए। यदि मोदी सरकार रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने या ग्रामीण और कृषि संकट को दूर करने में विफल रही तो यह नई पीढ़ी चुप बैठने वाली नहीं है। 

नि:संदेह लाल किले की प्राचीर से मोदी ने एक जोशीले भाषण में लोगों से आह्वान किया है कि अच्छे दिन आने वाले हैं और इससे एक नई चिंगारी सुलगी है। किन्तु उन्हें यह बात ध्यान में रखनी होगी कि वायदे पूरे होने चाहिएं। यह सच है कि यदि परिणाम अच्छे नहीं रहे तो उनकी सरकार इसके लिए विपक्ष और प्राकृतिक आपदाओं को दोषी ठहरा सकती है तथा यदि अच्छे रहे तो इसका श्रेय स्वयं ले सकती है। किन्तु दीर्घकाल में मोदी को यह समझना होगा कि वास्तविक उपलब्धियों का विकल्प भाग्य नहीं हो सकता। लोग अच्छे दिनों की प्रतीक्षा कर रहे हैं और हम भारतीय वास्तव में अच्छे दिनों के हकदार हैं।    


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