दो चुनाव घोषणा पत्रों की विशेषताएं : मोदी की ‘गारंटी’ बनाम कांग्रेस का ‘न्याय’

punjabkesari.in Wednesday, Apr 17, 2024 - 05:23 AM (IST)

भारत के लोकतंत्र की नौटंकी के बारे में पर्दा उठने के साथ ही मंच सज गया है और श्रोता भी आशानुरूप हैं तथा गुरूवार से शुरू हो रहे चुनावों में देश के नागरिक या तो रेवडिय़ों और वायदों के चल रहे तमाशे का आनंद लेंगे या उससे नफरत करेंगे। यह सब कुछ सत्ता की ललक से भारत की राजगद्दी को प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है। 

चुनावों के इस शोर के बीच भाजपा ने विकसित भारत के लिए मोदी की गारंटी बनाम कांग्रेस के न्याय पत्र को आगे बढ़ाया है। यह एक वैचारिक अंतर है, जो भारत के ज्वलंत राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाता है। भाजपा का संकल्प पत्र पार्टी के 10 वर्ष के शासन में प्रगति की निरंतरता का प्रतीक है, जिसमें पार्टी को हिन्दुत्व की हितैषी बताया गया है, अवसंरचनात्मक प्रगति, राष्ट्रीय सुरक्षा, सुदृढ़ अर्थव्यवस्था, जिसके चलते स्थिरता, आर्थिक वृद्धि और एक एकीकृत देश के प्रति प्रतिबद्धता का उल्लेख किया गया है और यह लोकप्रियतावाद से प्रभावित नहीं होगा। इसकी तुलना में कांग्रेस के न्याय पत्र में बदलाव का आह्वान किया गया है, जिसमें सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता पर बल दिया गया है। इसमें समावेश और कल्याण, जातिगत जनगणना का वायदा किया गया है, साथ ही सामाजिक असमानता, आरक्षण का निराकरण करने और अपने प्रतिद्वंद्वी के दृष्टिकोण का प्रगतिशील विकल्प देने की पेशकश की गई है। न्याय पत्र में 30 लाख सरकारी नौकरियां भरने, आरक्षण की सीमा बढ़ाने के लिए संविधान में संशोधन का वायदा भी किया गया है। 

नि:संदेह यह बताता है कि भाजपा और कांग्रेस की विचारधारा में भारी अंतर है और भारत दुविधा में खड़ा है। उसके समक्ष दो दर्शनों संकल्प और न्याय का विकल्प है। यह राष्ट्र के भविष्य के लिए अलग-अलग दृष्टिकोणों को दर्शाते हैं। जहां भाजपा विकसित भारत के दृष्टिकोण की रूपरेखा बताती है, वहीं कांग्रेस सामाजिक समानता और न्याय की वकालत करती है। जो कोई भी इन चुनावों में जीतेगा, वह आने वाले समय में भारत की विकास यात्रा और सामाजिक, आर्थिक स्थिति का निर्माण करेगा। 

भाजपा का चुनाव घोषणा पत्र सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर आधारित है, जिसमें एक पुनर्जागृत भारत का दृष्टिकोण है, जो स्वावलंबी है और अपने अधिकारों की बात करता है। कांग्रेस के घोषणा पत्र में ऐसे भारत की रूपरेखा है, जहां पर प्रत्येक व्यक्ति के लिए न्याय एक आकांक्षा नहीं, अपितु वास्तविकता हो। रोचक तथ्य यह है कि दोनों दलों के चुनाव घोषणा पत्रों में युवाओं पर मुख्य ध्यान दिया गया है। भाजपा शैक्षिक आधार को सुदृढ़ करना चाहती है, पेपर लीक को रोकना चाहती है, सरकारी नौकरियों को भरना चाहती है, देश को वैश्विक विनिर्माण और स्टार्टअप के रूप में बनाना चाहती है। 

कांग्रेस की योजना युवा न्याय कार्यक्रम शुरू करना है, ताकि बेरोजगारी का सामना किया जाए और राइट टू अप्रैंटिस एक्ट के माध्यम से 25 वर्ष से कम आयु के डिप्लोमा धारक और स्नातकों को व्यावहारिक ट्यूङ्क्षनग देने की पेशकश करती है। दोनों ही एक दूसरे के घोषणा पत्रों की आलोचना करते हैं। भाजपा कांग्रेस के न्याय पत्र पर मुस्लिम लीग की छाप बताती है और कहती है कि यह झूठ का पुलिंदा है, जबकि कांग्रेस भाजपा के संकल्प पत्र को जुमला और माफीनामा की वारंटी बताती है और भाजपा पर आरोप लगाती है कि उसने पहले किए गए वायदों को पूरा नहीं किया। वर्ष 2014 में मोदी ने वायदा किया था कि वे काले धन को वापस लाएंगे, किंतु वे चुनावी बांड लेकर आए। 

भाजपा ने अपने 3 मुख्य मुद्दों में से 2 को पूरा कर दिया है, जिनमें अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और अनुच्छेद 370 को निरस्त करना शामिल है। अब वह लैंगिक समानता के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का वायदा करती है और साथ ही एक राष्ट्र, एक चुनाव के विचार पर कार्य करना चाहती है। भाजपा का मानना है कि जब तक भारत एक समान नागरिक संहिता लागू नहीं करता, तब तक लैंगिक समानता स्थापित नहीं हो सकती, जिससे महिलाओं के अधिकारों की रक्षा होगी और यह हमारी सर्वोत्तम परंपराओं पर आधारित होगा और उनका आधुनिक समय के साथ सामंजस्य किया जाएगा। 

लैंगिक समानता और परंपरागत कानूनों को जोडऩे का कार्य संसद द्वारा 2017 में तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाने से हो गया है। एक समान नागरिक संहिता का उद्देश्य वैयक्तिक कानूनों में एकरूपता लाना है, जैसे विवाह पंजीकरण, बाल अभिरक्षा, तलाक, दत्तक ग्रहण, संपत्ति अधिकार, अंतर राज्य संपत्ति अधिकार आदि और इन सब पर धार्मिक आस्थाओं का प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालांकि आदिवासियों को इसके क्षेत्राधिकार से बाहर रखा गया है और यह भावना उच्चतम न्यायालय ने भी अपने विभिन्न निर्णयों में व्यक्त की है। भाजपा का मत स्पष्ट है किसी भी देश में नागरिकों के लिए एक समान कानून के अलावा कोई भी धर्म आधारित कानून नहीं होने चाहिएं। स्वाभाविक रूप से विपक्ष इसका विरोध करता है क्योंकि यह धार्मिक समूहों के वैयक्तिक कानूनों और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में हस्तक्षेप करेगा और तब तक इनमें बदलाव नहीं किया जाना चाहिए जब तक धार्मिक समूह बदलाव के लिए तैयार न हों। इसके अलावा यह अपनी पसंद से धर्म को अपनाने की संवैधानिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है, जो विभिन्न समुदायों को अपने-अपने वैयक्तिक कानूनों को मानने की अनुमति देता है। 

एक समान नागरिक संहिता के पक्ष-विपक्ष के बारे में शोर बढ़ता जा रहा है और इसका समाधान कहीं बीच में है। किंतु इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि एक समान नागरिक संहिता से भाजपा को चुनावी लाभ होगा। इसके साथ ही राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से भी भाजपा को लाभ पहुंचेगा क्योंकि इसका उपयोग विपक्ष को हाशिए पर लाने के लिए किया जाएगा कि वह मुस्लिम समर्थक है और अधिकतर हिन्दू इसे भाजपा द्वारा अपना एजैंडा लागू करने के रूप में देखेंगे। वस्तुत: एक समान नागरिक संहिता को लागू करने का मार्ग संवेदनशील और कठिन है किंतु यह मार्ग अपनाया जाना चाहिए। परंपराओं और रीति-रिवाजों के नाम पर भेदभाव को उचित नहंीं ठहराया जा सकता। अतीत के सहारे आप आगे नहीं बढ़ सकते। 

मोदी के प्रिय मुद्दे एक राष्ट्र, एक चुनाव के बारे में घोषणा पत्र में कहा गया है कि यह पूर्व राष्ट्रपति कोविंद समिति की एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश को लागू करने और सभी स्तरों पर चुनावों के लिए एक समान मतदाता सूची बनाने के प्रावधानों की दिशा में कार्य करेगा। विशेषकर तब, जब देश में अब तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के 400 चुनाव हो चुके हैं और विधि आयोग ने 1999, 2015 और 2018 में तीन बार एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की, ताकि नागरिकों, राजनीतिक दलों और सरकार को बार-बार होने वाले चुनावों से मुक्ति मिले क्योंकि यह आॢथक दृष्टि से लाभप्रद होगा और राजकोष को बड़ी बचत होगी क्योंकि यह बार बार चुनाव होने से शासन में ठहराव को रोकने और नीतिगत पंगुता को दूर करने में सहायता करेगा। 

किंतु विपक्षी दल इसे भाजपा के राजनीतिक एजैंडे को थोपने के रूप में मानते हैं और मानते हैं कि इस सबसे विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों के साथ संघीय संबंध बिगडेंग़े। यह राजनीतिक जवाबदेही और सरकार के कार्यकरण की समीक्षा में भी बाधक होगा और काम न करने वाली सरकारों को हटाने के नागरिकों के अधिकार की उपेक्षा भी होगी। कांग्रेस ने शायद अपने अस्तित्व और मतों के लिए सामाजिक समानता सुनिश्चित करने हेतु 3 दशक बाद जाति का जिन्न पुन: पैदा किया है। उसका मानना है कि यह सरकार की लक्षित कल्याण योजनाओं और नीतियों को बनाने में उपयोगी होगा और सुनिश्चित होगा कि इनका लाभ लक्षित लाभार्थियों को मिले। भाजपा इसका विरोध करती है और उसका मानना है कि जाति के आधार पर भेदभाव से जाति आधारित सामाजिक और राजनीतिक भावनाएं भड़केंगी और इससे उसके हिन्दुत्व राष्ट्रवादी योजना को नुकसान पहुंचेगा और जातिगत मतभेद भी बढ़ेंगे। 

हमारे नेताओं को देखना होगा कि वे किस तरह का दानव पैदा करने की योजना बना रहे हैं। अतीत बताता है कि सभी संघर्ष जाति आधारित रहे हैं। 1976 में बिहार के बेलची में ठाकुर-दलित ङ्क्षहसा से लेकर 1980-90 के बीच पंजाब में जाट-सिख उपद्रव, अतिवाद से लेकर कश्मीर में दो दशक तक पाक समर्थित आतंकवादियों द्वारा हिन्दू पंडितों के कत्लेआम तक इसके उदाहरण हैं। हमारे नेता इसे चुनाव प्रचार की राजनीतिक बाध्यता कह सकते हैं। निश्चित रूप से चुनावों के बारे में अभी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। अभी हम केवल दर्शक बनकर प्रतीक्षा ही कर सकते हैं। अभी खेल बाकी है दोस्तो।-पूनम आई. कौशिश 
 


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