प्रश्नों का उत्तर देने से मुकरती या उन्हें टालती है मोदी सरकार

punjabkesari.in Wednesday, Jul 28, 2021 - 05:44 AM (IST)

किसी भी प्रश्न का उत्तर देने की बजाय मोदी सरकार तथा भाजपा नेताओं के मुकरने या टालने का सिलसिला यदि ऐसे ही जारी रहा तो संभव है कि केंद्र द्वारा किसी समय यह भी कह दिया जाए कि देश में कोरोना महामारी से कोई मौत हुई ही नहीं। ऑक्सीजन की कमी के कारण किसी कोरोना मरीज की हुई मौत से इंकार कर देने वाले स्वास्थ्य मंत्री का राज्यसभा में दिया गया बयान दर्शाता है कि झूठ बोलने में महारत रखने वाले भाजपा नेता देश के लोगों को गुमराह करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। इस कुफ्र के लिए दलील भी कमाल की दी गई है। 

मंत्री जी ने फरमाया कि राज्य सरकारों ने कोरोना के कारण मौतों की गिनती के संबंध में भरे गए फार्मों पर ऑक्सीजन की कमी के कारण मौतों की सं या नहीं बताई। जबकि सच्चाई यह है कि संबंधित फार्म में ऐसा तथ्य बताने वाला कोई कॉलम ही नहीं छापा गया था। झूठ-दर-झूठ। जब प्रश्र पूछने वाले सदस्य ने यह बात कही तो मंत्री जी ने बड़ी ढिठाई से उत्तर दिया कि, ‘राज्य सरकारें संबंधित फार्म भरते समय ऐसा कालम आप भी जोड़ सकती हैं।’ 

यदि सचमुच ही मोदी सरकार ने लाखों लोगों की मौतों के संबंध में कोई संवेदनशीलता या अफसोस जताना होता तो संबंधित मंत्री जी ऑक्सीजन की कमी के कारण कोई भी मौत न होने का बयान देने की बजाय कह सकते थे कि ‘ऑक्सीजन की कमी के कारण मौतें तो हुईं मगर केंद्र सरकार के पास अभी इसकी पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है। सभी आंकड़े  इकट्ठे हो जाने के बाद मौतों की सही जानकारी सदन को दे दी जाएगी।’ 

वैसे कोरोना महामारी के दूसरे दौर में ऑक्सीजन की उपलब्धता न होने के कारण तड़पते हुए मरे सैंकड़ों मरीजों की दुखदायी खबरें टी.वी. चैनलों पर दिखाई गईं और लगभग सभी अखबारों में छपीं। विभिन्न अदालतों ने ऑक्सीजन बारे बरती लापरवाही के कारण केंद्रीय तथा राज्य सरकारों को फटकारें डाली हैं और अस्पतालों के डाक्टरों ने इस कमी के कारण मरने वाले मरीजों की मौतों बारे जोरदार तरीके से दुहाई भी दी थी। 

लॉकडाऊन के दौरान अपने घरों को वापस हजारों मील पैदल जाते पुरुषों व महिलाओं की गिनती तथा रास्ते में हुई मौतों बारे भी ऐसी ही मुकरने वाली ‘कला’ मोदी सरकार पहले भी दिखा चुकी है। दिल्ली की सीमाओं पर 8 महीने से भी अधिक समय से डटे किसानों की मौतों की जानकारी भी मोदी सरकार के पास उपलब्ध नहीं है, संसद में श्रद्धांजलि देना तो दूर की बात। केंद्र सरकार द्वारा कोरोना के कारण हुई मौतों की गिनती बारे जो झूठ बोला गया है उसकी चर्चा अब दुनिया भर में होने लग पड़ी है। अमरीका आधारित ‘थिंक टैंक सैंटर फॉर ग्लोबल डिवैल्पमैंट’ नामक संस्था ने अपनी खोज में भारत में कोरोना से मरने वालों की संख्या 49 लाख से ऊपर बताई है जबकि मोदी सरकार इस आंकड़े को 4.18 लाख मौतों तक ही समेट रही है। 

पहली बार प्रधानमंत्री का पद संभालने जा रहे मोदी ने संसद में दाखिल होने से पहले बड़े ही नाटकीय अंदाज में संसद की सीढिय़ों पर नाक-माथा घिसाया था। दरअसल प्रधानमंत्री लोगों को यह प्रभाव देना चाहते थे कि संसद उनके लिए किसी मंदिर या तीर्थ स्थान से कम नहीं है। मगर पिछले 7 वर्षों के सरकारी अमल से यह सिद्ध हो गया है कि संसद की प्रतिष्ठा को जितना नुक्सान मोदी के प्रधानमंत्री होते हुए पहुंचा है यह अपने आप में एक नया इतिहास है। 

प्रतिदिन ‘सबका साथ सबका विकास’ जैसे फरेबी नारे सुन-सुन कर लोगों के कान पक गए हैं, जबकि वास्तविकता ‘बहुगिनती का नाश, गिने-चुने लोगों का विकास’ वाली बात बनी हुई है। देश में बेरोजगारी, महंगाई, भुखमरी, गरीबी, अनपढ़ता तथा विभिन्न रोगों से पीड़ित लोगों की भारी बहुगिनती है। धार्मिक अल्पसं यक, विशेषकर मुसलमानों के विरुद्ध जिस तरह से टी.वी. चैनलों की बहसों में भाजपा के प्रवक्ता जहर उगलते हैं उसके परिणाम स्वरूप प्रतिदिन ही मुसलमानों पर हिंसक हमलों तथा अन्य अनेकों किस्म के जब्र की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। दलितों, महिलाओं तथा प्रगतिशील लोगों की त्रासदी भी इससे भिन्न नहीं है। 

इसराईल के एन.एस.ओ. के जासूसी करने वाले ‘पेगासस’ नामक सॉ टवेयर की मोदी सरकार द्वारा जिस तरह से अपने राजनीतिक विरोधियों, मुख्यमंत्रियों, जजों, पत्रकारों, सरकार की कार्यशैली से असहमति रखने वाले नौकरशाहों तथा सैन्य अधिकारियों की जासूसी करने की जो कहानी जग-जाहिर हुई है, उसने सिद्ध कर दिया है कि भाजपा के चुनाव जीतने पर विरोधी राज्य सरकारों को तोड़ कर ‘भाजपा सरकारों’ में परिवर्तित कर लेने का नाटकीय कार्य इसी ‘मोदी मंत्र’ के कारण नहीं बल्कि हर किस्म के घटिया तथा अनैतिक षड्यंत्रों की कृपा के कारण संभव हुआ है। 

लोकतंत्र जनता के भरोसे से ही कायम रह सकता है और भरोसा टूटने के बाद इसकी पुन: बहाली काफी मुश्किल होती है। केंद्र सरकार अपने ऊपर लगते किसी भी आरोप या नुक्सानदायक सरकारी कारगुजारी बारे पूछे गए किसी भी प्रश्न का जवाब ‘न’ में देती है। इससे लोकतांत्रिक ढांचे में सरकारों की जनता के प्रति जवाबदेही पूरी तरह से मनफी हो जाती है। एक भरोसे योग्य राजनीतिक विकल्प स्थापित करने के लिए वर्तमान परिस्थितियों में नए राजनीतिक आर्थिक तथा विचारात्मक मंच बनाने का उपयुक्त समय आ गया है जिसकी जिम्मेदारी 140 करोड़ भारतीयों के सिरों पर है।-मंगत राम पासला
 


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