सच और झूठ को धुंधला कर देता है ‘आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस’

punjabkesari.in Monday, Apr 22, 2024 - 05:17 AM (IST)

2024 के लोकसभा चुनाव में निर्णायक कारक क्या होगा? सोशल मीडिया अभियानों ने 2014 के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस (ए.आई.)संभावित रूप से पारंपरिक प्रचार अभियान की जगह ले सकता है, जिससे चुनाव परिणाम प्रभावित होंगे। 

राजनीतिक दल और उम्मीदवार अब मतदाता डाटा का विश्लेषण करने के लिए ए.आई. का उपयोग करते हैं। यह प्रक्रिया जनसांख्यिकी, सोशल मीडिया गतिविधि और पिछले मतदान व्यवहार की जांच करती है। ए.आई. एल्गोरिदम फिर इस डाटा से अंतर्दृष्टि उत्पन्न करता है जिसका उपयोग प्रभावी अभियान रणनीतियों को विकसित करने के लिए किया जा सकता है, जिसका 2024 के लोकसभा चुनावों में फायदा होगा। ए.आई. व्यक्तिगत मतदाताओं के लिए राजनीतिक कॉल तैयार कर सकता है और संभावित रूप से उनके विरोधियों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है। भारत में, आगामी चुनाव 500 करोड़ रुपए के बाजार का अवसर प्रस्तुत करता है क्योंकि 50 प्रतिशत से अधिक आबादी इंटरनैट का उपयोग करती है, और यह संख्या 2025 तक बढ़कर 900 मिलियन हो सकती है। 

प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि जैनरेटिड ए.आई. मतदाताओं को बड़े पैमाने पर कैसे प्रभावित कर सकता है। क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दोनों पार्टियां धीरे-धीरे ए.आई. की ओर बढ़ रही हैं। अतीत में, उम्मीदवार प्रचार करने के लिए मतदाताओं के घर जाते थे, एक कप चाय पीते थे और उनके वोट मांगते थे। लेकिन अब, वे मतदाताओं से जुडऩे के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं। पिछले साल 5 राज्यों के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा ने इसका सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया। प्रमुख नेताओं के फर्जी वीडियो और धोखा देने (स्पूफ) का पहली बार प्रचार में इस्तेमाल किया गया। 

भाजपा, कांग्रेस, ‘आप’, द्रमुक और अन्ना द्रमुक जैसी पार्टियां अपने समर्थकों के साथ संवाद करने के लिए ए.आई.का उपयोग करती हैं। उदाहरण के लिए, भाजपा दक्षिण में मतदाताओं से जुडऩे के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों का 8 क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने के लिए ए.आई. का उपयोग करती है। यह सिर्फ एक उदाहरण है कि देश भर में राजनीतिक अभियानों में ए.आई. का उपयोग कैसे किया जाता है। प्रचारक उम्मीदवारों का समर्थन करने और गलत सूचना फैलाने के लिए ए.आई.-जनरेटेड वीडियो का उपयोग करते हैं। ये वीडियो, अक्सर डीपफेक वीडियो, 18-25 आयु वर्ग और पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं को लक्षित करते हैं, क्योंकि यह अत्यधिक सक्रिय सोशल मीडिया जनसांख्यिकीय है।  इन वीडियो को शेयर करने के लिए व्हाट्सएप का इस्तेमाल किया जाता है। 

उदाहरण के लिए, कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक नकली छवि सांझा की। 16 मार्च को भाजपा ने इंस्टाग्राम पर राहुल गांधी का एक झूठा वीडियो पोस्ट किया। तमिलनाडु में द्रमुक और अन्ना द्रमुक जैसी पार्टियों ने अपने दिवंगत नेताओं की रिकाॄडग का इस्तेमाल किया। मतदाता का समर्थन प्राप्त करने के लिए कम्युनिस्ट पार्टियों ने भी अपने अभियानों में ए.आई. तकनीक का इस्तेमाल किया। एक वीडियो में  असदुद्दीन ओवैसी को हिंदू भक्ति गीत गाते हुए दिखाया गया है। अखिलेश यादव, नवीन पटनायक और ममता बनर्जी जैसे क्षेत्रीय नेता भी इस टूल का इस्तेमाल करते हैं। डीपफेक वीडियो, एक प्रकार की ए.आई.-जनित सामग्री, भारत के 2024 चुनावों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगी। वे सत्य और झूठ के बीच की रेखा को धुंधला कर देते हैं, जिससे जनता के विश्वास और चुनावी अखंडता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। 

ए.आई. तकनीक का उपयोग चुनाव प्रक्रियाओं में कई तरह से मदद कर सकता है। ए.आई. चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी कर सकता है। ए.आई. चैटबॉट और वर्चुअल असिस्टैंट सोशल मीडिया पर मतदाताओं से संवाद कर सकते हैं। ए.आई. चुनावी धोखाधड़ी को रोक सकता है और राजनीतिक विज्ञापन अभियान वित्त उल्लंघनों को नियंत्रित कर सकता है। दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों के लिए ए.आई. का उपयोग एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। उन्नत ए.आई. के साथ, मतदाताओं या उम्मीदवारों सहित किसी का भी प्रतिरूपण करना संभव हो गया है, जिससे पहचान की चोरी हो सकती है और चुनावी प्रक्रिया में हेर-फेर हो सकता है। यह निष्पक्ष और पारदर्शी चुनावी  प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट नियमों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। 

राजनीतिक अभियानों में ए.आई. गोपनीयता संबंधी चिंताओं को बढ़ाता है और अनुचित प्रतिस्पर्धा और गलत सूचना को जन्म दे सकता है। पारदर्शी चुनावी प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट नियमों की आवश्यकता है। निष्पक्षता को बढ़ावा देने के लिए सरकारों को ए.आई. के उपयोग को विनियमित करना चाहिए। आई.टी. मंत्री ने सोशल मीडिया कंपनियों को नियमों का पालन करने की चेतावनी दी है। 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि भारत का चुनाव आयोग ए.आई.-जनित जानकारी को विनियमित करने के लिए स्पष्ट निर्देश जारी करे। इन दिशा-निर्देशों को अभियानों और मतदाता डाटा विश्लेषण में नैतिक ए.आई. उपयोग को संबोधित करना चाहिए। 

चुनावी प्रक्रिया की अखंडता सुनिश्चित करने के लिए विनियम महत्वपूर्ण हैं। वे मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा करते हैं और प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता का आश्वासन प्रदान करते हैं। इन विनियमों के बिना, चुनावी प्रक्रिया से समझौता किया जा सकता है, जिससे परिणामों की वैधता पर संदेह पैदा हो सकता है। इसलिए, चुनावी प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखने के लिए सख्त नियम बनाना महत्वपूर्ण है हालांकि चिंताएं हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता(ए.आई.) भी एक वरदान हो सकती है। कुछ ए.आई.-जनित प्रौद्योगिकियां संभावित रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के प्रति हमारे दृष्टिकोण में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती हैं। अधिक व्यापक रूप से अपनाए जाने से ई-चुनाव का मार्ग प्रशस्त हो सकता है, एक ऐसा भविष्य जहां चुनाव ऑनलाइन आयोजित किए जाएंगे, जिससे अधिक पारदर्शी और जवाबदेह चुनावी प्रक्रिया सुनिश्चित होगी। 

बिहार चुनाव के दौरान, चुनाव आयोग ने पारदर्शिता सुनिश्चित करने और हेरफेर को रोकने के लिए ए.आई.-संचालित प्रणाली का उपयोग किया। सिस्टम ने गलत सूचना और अभद्र भाषा के मामलों का पता लगाया और चिह्नित किया, जिससे गिनती की प्रक्रिया में तेजी आई और चुनाव के दौरान अभद्र भाषा पर अंकुश लगा। यह दर्शाता है कि ए.आई. का उपयोग कैसे प्रभावी ढंग से किया जा सकता है और मतदाताओं में विश्वास पैदा किया जा सकता है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या विधायक मुख्य रूप से अपने ए.आई. अभियान की सफलता या विफलता के आधार पर जीत या हार सकते हैं। भोले-भाले मतदाताओं को आसानी से मूर्ख बनाया जा सकता है। तकनीकी प्रगति महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है और ए.आई. कोई अपवाद नहीं है।-कल्याणी शंकर
  


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