हिमाचल के साथ ‘पुराने संबंधों’ का लाभ उठाने की कोशिश करेंगे मोदी व राहुल

punjabkesari.in Sunday, Dec 30, 2018 - 04:05 AM (IST)

जैसी कि आज स्थितियां हैं उन्हें देखते हुए हिमाचल के लोगों के साथ सम्पर्क बनाने के प्रयास में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रचार का तरीका 1994 से 2003 तक उनके पुराने संबंधों के दोहन पर केन्द्रित रहेगा, जब वह राज्य के भाजपा प्रभारी थे। 

इसके विपरीत राहुल गांधी हिमाचल प्र्रदेश सहित सभी राज्यों में कांग्रेस पार्टी के स्टार प्रचारक होंगे, जिनसे आशा की जाती है कि दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इस पर्वतीय राज्य के साथ निजी संबंधों, जिन्होंने 1971 में इसे राज्य का दर्जा दिया था तथा रिज मैदान पर एक विशाल रैली को सम्बोधित किया था, का हवाला देकर मोदी के यहां के लोगों के साथ सीधे संबंध स्थापित करने के प्रयासों का मुकाबला करेंगे। राहुल ने पहले भी ऐसा किया है जब उन्होंने राज्य के लोगों के साथ अपने परिवार के संबंधों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया था। 

हिमाचल को वित्तीय सहायता 
वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी सम्भवत: पहाड़ी लोगों को अधिक प्रभावित कर पाएंगे क्योंकि केन्द्र ने एक वर्ष के दौरान राज्य को 9 हजार करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता दी है जो 50 हजार करोड़ रुपए के बजट घाटे के बोझ तले दबा हुआ है। मोदी ने हिमाचालियों के साथ अपने पुराने संंबंध पुनर्जीवित करने के इरादों का बड़ा सबूत उस समय दिया जब उन्होंने जयराम सरकार का एक वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में भाजपा द्वारा हाल ही में धर्मशाला में आयोजित ‘जन आभार’  रैली को सम्बोधित किया था। लोगों के साथ अपने पुराने संंबंधों को पुनस्र्थापित करने के मोदी के सजग प्रयासों की समीक्षा करना प्रासंगिक होगा, जो राज्य के प्रत्येक कोने से आए थे। उन्होंने अपने उदार बर्ताव से लोगों को प्रभावित किया जो वित्तीय सहायता में वृद्धि से स्पष्ट है जिसे 2013 में 2100 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 2017 में 7200 करोड़ रुपए कर दिया गया। 

मोदी के भाषण में कुछ उल्लेखनीय विशेषताएं थीं जो हिमाचलियों के साथ उनकी नजदीकियों को प्रतिङ्क्षबबित करती थीं। पहली, प्रधानमंत्री ने अपनी संतुष्टि का प्रकटावा किया जब उन्होंने खुलासा किया कि पार्टी प्रभारी होने के नाते उन्होंने कई युवा नेताओं के साथ काम किया था जिन्होंने सरकार तथा संगठन में वरिष्ठ पद प्राप्त किए और अब उन्हें पहली पंक्तियों में बैठे देखा जा सकता है। उन्होंने दुर्गम क्षेत्रों में अपने दौरों को याद किया जहां वह पार्टी कार्यकत्र्ताओं द्वारा संचालित आराम घरों में रातें बिताते थे। वह महसूस करते हैं कि अब यह अवधारणा हिमाचल  प्रदेश में विदेशी तथा घरेलू पर्यटकों को आकॢषत करने के लिए व्यापक आयाम प्राप्त कर गई है। 

प्रधानमंत्री के प्रचार का मुख्य क्षेत्र भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की सहायता से निर्बाध चुनावी रणनीति बनाकर जोड़ा जाएगा जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकत्र्ताओं से मदद प्राप्त होगी। कोई भी इस तथ्य से इंकार नहीं कर सकता कि 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की विजय में आर.एस.एस. ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, हालांकि  हिमाचल में प्रत्येक पांच वर्ष बाद सरकार बदलने के इतिहास के साथ सत्ता विरोधी लहर भी पूरे जोर पर थी जिसने कांग्रेस की मुश्किलों में और वृद्धि कर दी। मोदी का चुनाव प्रचार सम्भवत: मुख्य रूप से केन्द्र की उपलब्धियों पर केन्द्रित होगा लेकिन वह सम्भवत: राज्य सरकार के कल्याणकारी कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं को भी छुएंगे। 

राहुल का नया ‘अवतार’ 
दूसरी ओर राहुल गांधी का आक्रामकता तथा प्रधानमंत्री पर सीधा निशाना साधने का नया ‘अवतार’ 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान दिखाई देगा जिसे पहले ही तीन राज्य विधानसभाओं के चुनावों में देखा जा चुका है जिन्हें कांग्रेस ने भाजपा से छीन लिया है। राज्य विधानसभा चुनावों में व्यावहारिक भाषणों, जिन्होंने भाजपा द्वारा दिया गया ‘पप्पू’ के उपनाम का ठप्पा उनसे हटा दिया, के बाद राहुल के व्यवहार में सम्भवत: कुछ शुचिता आ जाए। 

कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव अभियान सम्भवत: केन्द्र तथा राज्य में भाजपा सरकार की असफलताओं के इर्द-गिर्द घूमेगा, विशेषकर किसानी समस्याओं तथा 2014 के चुनावी वायदों को पूरा करने में असफलता। प्रधानमंत्री की हिमाचल के लिए विशेष औद्योगिक पैकेज की घोषणा करने को लेकर अनिच्छा के भी 2019 के चुनावों के दौरान मुख्य रूप से उभरने की सम्भावना है, मगर राहुल के प्रचार अभियान पर पार्टी में आंतरिक लड़ाई तथा पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व पार्टी के राज्याध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू के बीच खुलकर जारी आरोप-प्रत्यारोप विपरीत असर डालेंगे। 

प्रचार के तरीकों से लाभ होगा, मगर...
राजनीतिक पर्यवेक्षक महसूस करते हैं कि मोदी तथा राहुल के प्रचार करने के तरीके सम्भवत: भाजपा तथा कांग्रेस को लाभ पहुंचाएंगे लेकिन असल तस्वीर महागठबंधन बनाने के लिए क्षेत्रीय दलों के साथ आने में सफलता या असफलता के बाद उभरेगी, जो राजग के लिए एक गम्भीर चुनौती पैदा करेगा। पर्यवेक्षकों की यह भी राय है कि अपनी लोकप्रियता के कारण मोदी अपने प्रचार को राष्ट्रपति स्टाइल में परिवर्तित कर सकते हैं जबकि राहुल वोट प्रतिशत के गणित के आधार पर भाजपा को हराने का मामला क्षेत्रीय सहयोगियों पर छोड़ सकते हैं और फिर राजग के बदल के तौर पर चुनाव बाद की एक तस्वीर को अधिमान दे सकते हैं। मगर असली परिदृश्य संसदीय चुनावों की तिथियों की घोषणा के बाद उभरेगा क्योंकि यह ‘महागठबंधन’ के मूर्त रूप में आने से जुड़ा है।-के.एस. तोमर 


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Pardeep

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