14 करोड़ यूथ की सुनें मोदी व राहुल

punjabkesari.in Wednesday, Oct 03, 2018 - 04:29 AM (IST)

लोकसभा चुनावों की बात की जाए तो देश में 9 लाख से ऊपर बूथ हैं। भाजपा और कांग्रेस के बीच ज्यादा से ज्यादा बूथों तक पहुंचने की होड़ मची है। भाजपा पन्ना प्रमुख (वोटर लिस्ट के प्रत्येक पन्ने का प्रभारी) से पहले अद्र्ध पन्ना प्रमुख तक आई और अब मोबाइल प्रमुख तक बनाने की खबरें आ रही हैं। कांग्रेस बूथ सहयोगी की बात कर रही है। मामला एक बूथ दस यूथ अब एक बूथ बीस यूथ तक पहुंच गया है। 

मेरा बूथ सबसे मजबूत का नया नारा स्वयं प्रधानमंत्री दे रहे हैं। दोनों दलों का इरादा बूथ तक वोटर को पहुंचाना और अपने पक्ष में वोट डलवाना है लेकिन सवाल उठता है कि वोटर के मन की थाह क्या कोई दल ले रहा है या सबको लग रहा है कि थोड़ा विकास, थोड़ा धर्म, थोड़ी जाति, थोड़ा पैसा, थोड़ा प्रलोभन और थोड़ा प्रशासन का सहयोग काम कर जाएगा? बाकी भाजपा को मोदी के चेहरे और छवि पर भरोसा है तो कांग्रेस को मोदी सरकार की कथित विफलताओं पर। लेकिन दोनों दल भूल रहे हैं कि इस बार करीब 14 करोड़ ऐसे युवा वोट देने आएंगे जो पहली बार वोट देंगे। इस नौजवान पीढ़ी की उम्मीदों, आशाओं, आशंकाओं, सपनों को टटोलने की कोशिश करते हैं। 

बनारस, अमेठी, कन्नौज, नवादा, हाजीपुर, लखनऊ, पटना, भोपाल, विदिशा, गुना, नागपुर, जयपुर, जम्मू, श्रीनगर, ऊधमपुर, हिसार, बठिंडा, रोहतक और संगरूर लोकसभा सीटों का पिछले सवा महीने सघन दौरा करने के बाद कुछ ऐसे अनुभव हुए जो आंख खोल देने वाले हैं। संगरूर में कुछ लड़कियां मिलीं। सुबह-सुबह का वक्त था और एक खाली मैदान में चक्कर लगा रही थीं। कहने लगीं कि बी.एस.एफ. में जाने की तैयारी कर रही हैं, फिजिकल फिटनैस की। पहले दौर की बातचीत में सबने कहा कि देश सेवा के लिए बी.एस.एफ. में जाना चाहती हैं। किसी ने जोड़ा कि पिता उसे वर्दी में देखना चाहते हैं तो किसी ने कहा कि देश का नाम ऊंचा करने की तमन्ना है।

बात आगे चली, लड़कियां कुछ खुलीं, एक ने कहा कि 6 बहनों का परिवार है, पिता बीमार रहते हैं, मां चौका-बर्तन करके गुजारे लायक कमाती हैं। बहनें सिलाई से लेकर काज-बटन का काम करती हैं। ऐसे में बी.एस.एफ. में जाना घर के हालात सुधारने की गांरटी है, कहते हुए वह रोने लगी। रोते-रोते कहने लगी कि यह भी सही है कि बीमार पिता को वह बी.एस.एफ. की वर्दी पहनी तस्वीर भेजना चाहती है। ऐसे ही कुछ लड़कों से भी बात हुई जिनमें से ज्यादातर ने माना कि रोजगार कहीं है नहीं। ले-देकर सेना, अद्र्ध-सैनिक बल और पुलिस में ही गुंजाइश बची है। पुलिस भर्ती में पैसा बहुत लगता है। सेना में मापदंड बहुत कड़े हैं और अद्र्ध-सैनिक बलों में कुछ लचीला रुख रहता है। घर के हालात मजबूर कर रहे हैं। 

पंजाब से लेकर हरियाणा और उससे सटे राजस्थान के शेखावाटी (सीकर, चूरू, झुंझुनूं जिले) इलाकों में ऐसी सैंकड़ों डिफैंस अकादमियां हैं जो ऐसे बेरोजगार लड़कों कोसेना की कठिन शारीरिक परीक्षा के लिए तैयार करती हैं। हाईवे के दोनों तरफ कतार में ऐसी अकादमियां दिख जाती हैं। इसके साथ ही खासतौर से पंजाब में स्पोकन इंगलिश, स्पोकन फ्रैंच सिखाने वाली, वीजा के लिए तैयार करने वाली संस्थाएं भी दिख जाती हैं। संगरूर में ऐसी ही एक संस्था में कुछ युवक-युवतियों से बात हुई तो वे कहने लगे कि यहां रोजगार करने का मौका मिले तो क्यों जाना पड़े विदेश, क्यों जाना पड़े सेना में? सरकारी नौकरियां नहीं के बराबर हैं, प्राइवेट नौकरियों में बरकत नहीं है और खुद का कारोबार करने का न तो हुनर है और न ही पैसा।

एक कहने लगा कि यह राजनीतिक सिस्टम का फेल होना है। उस राजनीतिक व्यवस्था का, जो 5 साल में एक बार वोट मांगते हुए आश्वासन से लदा-फदा रहता है और फिर पैसे वालों या रसूखदारों और अपनों तक सिमट कर रह जाता है। सबसे दुखद पहलू यह है कि ये युवा नाउम्मीद हो चुके हैं। इन्हें लगता ही नहीं कि कुछ बदलने वाला है। कहते हैं कि अगर कुछ बदला भी तो वह अमीरों और रसूखदारों के हिस्से ही जाएगा, उनके हिस्से या तो भटकन आनी है या फिर सेना की नौकरी। बिहार के नवादा में कोङ्क्षचग के इंस्टीच्यूट एक कतार में दिखते हैं। एक जगह ऑनलाइन पढ़ाई हो रही थी। एक कमरे में बच्चे बैठे थे,  सामने सफेद बोर्ड पर मैथ्स के सवाल हल हो रहे थे। दिल्ली में बैठकर कोई सवाल हल कर रहा था और नवादा में बैठे बच्चे सवाल हल होते देख रहे थे। 

अपनी तरफ से गणित समझने की कोशिश कर रहे थे। ऐसी ही एक संस्था के बाहर युवक-युवतियों के एक झुंड से बात हुई। कहने लगे कि आसपास के कस्बों से हैं, यहां कमरा किराए पर लेकर रहते हैं। एक-एक कमरे में तीन-चार लड़के एक साथ। कोई बैंक की परीक्षा की तैयारी कर रहा है तो कोई आई.ए.एस. की, कोई कम्प्यूटर का कोर्स कर रहा है तो कोई एन.डी.ए. की तैयारी। सभी पढऩा चाहते हैं। सभी आगे बढऩा चाहते हैं। सभी बेहतर जिंदगी जीना चाहते हैं और इसके लिए भरपूर मेहनत करने को भी तैयार हैं लेकिन सवर्णों को लगता है कि अब प्रमोशन तक में आरक्षण देना गलत है (सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले की यह बात है)। नवादा से लेकर गुना और अमेठी तक कम्पीटिशन की तैयारी कर रहे युवकों का कहना था कि आर्थिक आधार पर आरक्षण होना चाहिए। अनुसूचित जाति और जनजाति को मिलने वाले आरक्षण में भी अन्य पिछड़ा वर्ग की तरह या तो क्रीमी लेयर लागू होनी चाहिए या फिर इस तरह की व्यवस्था की जाए कि दो या तीन पीढ़ी के बाद की पीढ़ी स्वत: खुद को आरक्षण से अलग कर ले। इससे उस जाति विशेष के सबसे दबे-कुचले लोगों को भी आगे आने का मौका मिलेगा और  सच्चे अर्थों में सामाजिक न्याय हो सकेगा। 

कुल मिलाकर ऐसे 14 करोड़ युवा वोटर यही चाहते हैं कि वे जहां पढऩा चाहते हैं वहां पढऩे का मौका मिले और फिर जिस फील्ड में नौकरी चाहते हैं वहां कम्पीट करने का उचित मौका मिले। युवा वोटर चाहता है कि क्या खाना है, क्या पहनना है, कहां किसके साथ घूमना है ये उन पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए। गाय, गौरक्षक जैसे मामले उनकी समझ से परे हैं, राजनीति से प्रेरित हैं। इस युवा वोटर को लगता है कि किसानों को लागत पर लाभ मिलना ही चाहिए और शिक्षा से जुड़ी सेवाओं पर जी.एस.टी. न्यूनतम होना चाहिए। सबसे बड़ी बात है कि आमतौर पर युवा वोटर खुद को राजनीति से अलग रखता है और उसे नेताओं से कोई खास उम्मीद भी नहीं बची है। इस इतने बड़े वोट बैंक को संभालने अभी तक न तो मोदी पहुंचे हैं और न ही राहुल। कुल मिलाकर एक बूथ पर दस या बीस यूथ की ङ्क्षचता करने वालों को इन 14 करोड़ यूथ की बात सुननी चाहिए और भविष्य संवारने के गंभीर प्रयास करने चाहिएं।-विजय विद्रोही


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Pardeep

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