भारत की नंबर एक राष्ट्रीय समस्या है कश्मीर

punjabkesari.in Friday, May 19, 2017 - 11:02 PM (IST)

एक पारिवारिक शादी में हिस्सा लेने के लिए छुट्टी पर आए युवा अविवाहित कश्मीरी सेना अधिकारी लैफ्टिनैंट उमर फयाज का 9 मई को दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में पाकिस्तानी सेना व आई.एस.आई. द्वारा समर्थित 3-4 आतंकियों द्वारा अपहरण व जघन्य हत्या के बारे में कम से कम यही कहा जा सकता है कि यह अमानवीय कृत्य है। 

यह अलगाववादी सरगना सैयद अली शाह गिलानी तथा अन्य शरातवी तत्वों द्वारा जम्मू-कश्मीर के सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने का हताशापूर्ण प्रयास है। इस प्रयास का स्पष्ट तौर पर अभिप्राय है सेना या सुरक्षा बलों में भर्ती होने वाले युवकों के मन में आतंक पैदा करना। पत्थरबाजी करने वाले छात्रों और शरारती तत्वों द्वारा सुरक्षा बलों तथा पुलिस को निशाना बनाया जाना केवल अमन-कानून की स्थिति के विफल होने की ही निशानी नहीं बल्कि यह महबूबा मुफ्ती सरकार तथा मुख्य धारा पाॢटयों के नेताओं के हाशिए पर धकेले जाने का भी प्रतीक है। 

वादी-ए-कश्मीर की जमीनी हकीकतें बहुत विस्फोटक और भयावह हैं। जमीनी स्तर पर जो राजनीतिक शून्यता पैदा हुई है उसके चलते पाकिस्तानी एजैंटों, अलगाववादियों तथा ‘आजादी’ के नारे लगाने वालों को खुला मैदान मिल गया है और वे स्थानीय युवकों को हिंसा और टकराव के रास्ते पर धकेलने तथा इसके फलस्वरूप प्रदेश की पहले से ही नाजुक पर्यटन-आधारित अर्थव्यवस्था एवं इससे संबंधित अनुषांगिक सेवाओं व रोजगार संभावनाओं को बर्बाद कर रहे हैं। 

इस जटिल परिदृश्य के मद्देनजर घाटी में इतिहास ने अपना एक चक्र पूरा कर लिया है क्योंकि हम देख रहे हैं कि सूफीवाद के सुनहरी सूत्र सऊदी अरब कीवहाबी विचारधारा द्वारा पोषित अलगाववादियों और आतंकियों की बदौलत एक-एक करके टूटते जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि पी.डी.पी.-भाजपा के 3 वर्ष के शासन द्वारा इन तत्वों को फिर से नया जीवन मिल गया है। भाजपा नेतृत्व आज किसी भी पूर्व दौर की तुलना में अधिक दिशाहीन एवं दिग्भ्रमित है। ऊपर से विडम्बना देखिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह प्रदेश में अपनी पार्टियों के मंत्रियों को आह्वान कर रहे हैं कि वे घाटी में आम लोगों तक पहुंच बनाएं। इसे सिवाय उपहासजनक के और क्या कहा जा सकता है? इससे पता चलता है कि भाजपा नेतृत्व जमीनी हकीकतों से किस हद तक टूटा हुआहै। 

यह जम्मू-कश्मीर के मामले में भाजपा की असंतुलित पहुंच की अलामत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नीति निर्धारकों तथा राम माधव एवं जितेन्द्र सिंह निर्देशित पार्टी कार्यकत्र्ताओं द्वारा कश्मीरी नेताओं की करतूतोंव बदलती वफादारियों का इतिहास खंगाले बिना पी.डी.पी. से गठबंधन बनाना पहले दिन से ही गलत था। कश्मीर में लगातार बदलती जमीनी हकीकतों की गंभीर अनदेखी की गई है। यदि भाजपा ने ऐसा पंगालेना ही था तो इसके लिए सबसे अच्छा रास्ता यह था कि महबूबा मुफ्ती की सरकार को बाहर से समर्थन देती। 

अब गिरे हुए दूध पर पछताना बेतुका है। आज जरूरत तो इस बात की है कि परिचालनात्मक, नीतिगत एवं निर्णयगत स्तरों पर कश्मीर की बहुआयामी जटिलताओं से दो-दो हाथ किए जाएं। कठिन, कटु और असुखद निर्णय साऊथ ब्लाक एवं नार्थ ब्लाक के स्वप्न महलों में बैठकर नहीं लिए जा सकते। कश्मीरी पंडितों सहित प्रदेश के विभिन्न मुद्दइयों के साथ अनौपचारिक चर्चा करके विभिन्न मोर्चों पर पैदा हुए अवरोधों को तोडऩे के लिए जब तक कोई अच्छी तरह फोकस राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई जाती तब तक अधकचरी सिद्धांतबाजी से कोई उद्देश्य हासिल नहीं होगा। यह एक बहुत पीड़ादायक कवायद है जिसे तदर्थवाद एवं बेदिली भरी नीतियों से जारी नहीं रखा जा सकता। 

यह स्मरण योग्य है कि कुछ लोग इसलिए सफल हो जाते हैं कि उनकी किस्मत साथ देती है लेकिन अधिकतर लोग अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बूते ही सफल होते हैं। अपनी भारी-भरकम चुनावी जीत के लिए मोदी निश्चय ही अपने भाग्य पर इतरा सकते हैं। लेकिन कश्मीर संकट की हवा निकालने के लिए उन्हें वादी की ऐतिहासिक एवं राजनीतिक पृष्ठभूमि को विधिवत समझने, अतीत की भूलों-चूकों का विश्लेषण करने और इसके अनुरूप कार्रवाई की योजना तैयार करने की जरूरत है। उन्हें व्यक्तिगत एवं पार्टीगत गणनाओं से ऊपर उठते हुए कश्मीर मुद्दे को नए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य तथा बदली हुई वैश्विक परिस्थितियों के संदर्भ में आंकना होगा। 

कश्मीर आज भारत की नम्बर एक राष्ट्रीय समस्या है। कश्मीर की आंतरिक समस्याओं, पाक प्रायोजित आतंकवाद तथा सीमा रेखा पर की जाने वाली दरिंदगी से निपटने के लिए सर्वसम्मति विकसित करने के लिए प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर सभी नेताओं को सक्रिय वार्तालापों में शामिल करने की जरूरत है। यह कोई आसान काम नहीं। इसके लिए सच्चे मन से और गंभीरतापूर्वक प्रयास करने की जरूरत है। 

सुरक्षा बलों का नेतृत्व करने वाले लोगों और विशेषज्ञों को भी विश्वास में लेना होगा। प्रधानमंत्री और उनकी टीम को कश्मीर मामलों के प्रबंधन के लिए अल्पकालिक, मध्यकालिक एवं दीर्घकालिक रणनीतियां तलाश करनी होंगी और इसके साथ ही एक परमाणु शक्ति सम्पन्न बदमाश राष्ट्र पाकिस्तान तथा संदिग्ध भूमिका निभाने वाले चीन से निपटने के लिए संभव कार्रवाई योजना तैयार करनी होगी।        


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