बापू के सपनों को पूरा करने के लिए एकजुट हुआ भारत

punjabkesari.in Tuesday, Oct 02, 2018 - 04:33 AM (IST)

आज हम अपने प्यारे बापू की 150वीं जयंती के आयोजनों का शुभारंभ कर रहे हैं। बापू आज भी विश्व में उन लाखों-करोड़ों लोगों के लिए आशा की एक किरण हैं, जो समानता, सम्मान, समावेश और सशक्तिकरण से भरपूर जीवन जीना चाहते हैं। विरले ही लोग ऐसे होंगे, जिन्होंने मानव समाज पर उनके जैसा गहरा प्रभाव छोड़ा हो।

महात्मा गांधी ने भारत को सही अर्थों में सिद्धांत और व्यवहार से जोड़ा था। सरदार पटेल ने ठीक ही कहा था, ‘‘भारत विविधताओं से भरा देश है। इतनी विविधताओं वाला कोई अन्य  देश धरती पर नहीं है। यदि कोई ऐसा व्यक्ति था, जिसने उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष के लिए सभी को एकजुट किया, जिसने लोगों को मतभेदों से ऊपर उठाया और विश्व मंच पर भारत का गौरव बढ़ाया, तो वह केवल महात्मा गांधी ही थे और उन्होंने इसकी शुरूआत भारत से नहीं, बल्कि दक्षिण अफ्रीका से की थी। बापू ने भविष्य का आकलन किया और स्थितियों को व्यापक संदर्भ में समझा। वह अपने सिद्धांतों के प्रति अपनी अंतिम सांस तक प्रतिबद्ध रहे।’’ 

इक्कीसवीं सदी में भी महात्मा गांधी के विचार उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके समय में थे और वे ऐसी अनेक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, जिनका सामना आज विश्व कर रहा है। एक ऐसे विश्व में, जहां आतंकवाद, कट्टरपंथ, उग्रवाद और विचारहीन नफरत देशों और समुदायों को विभाजित कर रहे हैं, वहां शांति और अहिंसा के महात्मा गांधी के स्पष्ट आह्वान में मानवता को एकजुट करने की शक्ति है। ऐसे युग में, जहां असमानताएं होना स्वाभाविक है, बापू का समानता और समावेशी विकास का सिद्धांत विकास के आखिरी पायदान पर रह रहे लाखों लोगों के लिए समृद्धि के एक नए युग का सूत्रपात कर सकता है। 

एक ऐसे समय में, जब जलवायु-परिवर्तन और पर्यावरण की रक्षा का विषय चर्चा के केन्द्र बिंदु में है, दुनिया को गांधी जी के विचारों से सहारा मिल सकता है। उन्होंने एक सदी से भी अधिक समय पहले, सन् 1909 में मनुष्य की आवश्यकता और उसके लालच के बीच अंतर स्पष्ट किया था। उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय संयम और करुणा दोनों के अनुपालन करने की सलाह दी और स्वयं इनका पालन करके मिसाल कायम करते हुए नेतृत्व प्रदान किया। वह अपना शौचालय स्वयं साफ करते थे और आस-पास के वातावरण की स्वच्छता सुनिश्चित करते थे। वह यह सुनिश्चित करते थे कि पानी कम से कम बर्बाद हो और अहमदाबाद में उन्होंने इस बात पर विशेष ध्यान दिया कि दूषित जल साबरमती के जल में न मिले। 

कुछ ही समय पहले महात्मा गांधी द्वारा लिखित एक सारगर्भित, समग्र और संक्षिप्त लेख ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया। सन् 1941 में बापू ने रचनात्मक कार्यक्रम, उसका अर्थ और स्थान’ नामक से एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने 1945 में उस समय बदलाव भी किए थे जब स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर एक नया उत्साह था। उस दस्तावेज में बापू ने विविध विषयों पर चर्चा की थी जिनमें ग्रामीण विकास, कृषि को सशक्त बनाने, साफ-सफाई को बढ़ावा देने, खादी को प्रोत्साहन देने, महिलाओं का सशक्तिकरण और आर्थिक समानता सहित अनेक विषय शामिल थे। 

मैं अपने प्रिय भारतवासियों से अनुरोध करूंगा कि वे गांधी जी के ‘रचनात्मक कार्यक्रम’ को पढ़ें  (इसका मुद्रित संस्करण और इंटरनैट पर भी यह आसानी से उपलब्ध है), यह ऑनलाइन एवं ऑफलाइन उपलब्ध है। हम कैसे गांधी जी के सपनों का भारत बना सकते हैं-इस कार्य के लिए इसे पथ प्रदर्शक बनाएं। ‘रचनात्मक कार्यक्रम’ के बहुत से विषय आज भी प्रासंगिक हैं और भारत सरकार ऐसे बहुत से बिंदुओं को पूरा कर रही है जिनकी चर्चा पूज्य बापू ने 7 दशक पहले की थी लेकिन जो आज तक पूरे नहीं हुए। गांधी जी के व्यक्तित्व के सबसे खूबसूरत आयामों में से एक बात यह थी कि उन्होंने प्रत्येक भारतीय को इस बात का एहसास दिलाया था कि वे भारत की स्वतंत्रता के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने एक अध्यापक, वकील, चिकित्सक, किसान, मजदूर, उद्यमी, सभी में आत्म-विश्वास की भावना भर दी थी कि जो कुछ भी वे कर रहे हैं, उसी से वे भारत के स्वाधीनता संग्राम में योगदान दे रहे हैं।

उसी संदर्भ में, आइए आज हम उन कामों को अपनाएं जिनके लिए हमें लगता है कि गांधी जी के सपनों को पूरा करने के लिए हम इन्हें कर सकते हैं। भोजन की बर्बादी को पूरी तरह बंद करने जैसी साधारण-सी चीज से लेकर अङ्क्षहसा और अपनेपन की भावना को अपनाकर इसकी शुरूआत की जा सकती है। आइए हम इस बात पर विचार करें कि कैसे हमारे क्रिया-कलाप भावी पीढिय़ों के लिए एक स्वच्छ और हरित वातावरण बनाने में योगदान दे सकते हैं। करीब आठ दशक पहले जब प्रदूषण का खतरा इतना बड़ा नहीं था तब महात्मा गांधी ने साइकिल चलाना शुरू किया था। जो लोग उस समय अहमदाबाद में थे, इस बात को याद करते हैं कि गांधी जी कैसे गुजरात विद्यापीठ से साबरमती आश्रम साइकिल से जाते थे। 

असल में, मैंने पढ़ा है कि गांधी जी के सबसे पहले विरोध प्रदर्शनों में वह घटना शामिल है जब उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में उन कानूनों का विरोध किया जो लोगों को साइकिल का उपयोग करने से रोकते थे। कानून के क्षेत्र में एक समृद्ध भविष्य होने के बावजूद जोहान्सबर्ग में आने-जाने के लिए गांधी जी साइकिल का प्रयोग करते थे। ऐसा कहा जाता है कि जब एक बार जोहान्सबर्ग में प्लेग का प्रकोप हुआ तो गांधी जी एक साइकिल से सबसे ज्यादा प्रभावित स्थान पर पहुंचे और राहत कार्य में जुट गए। क्या आज हम इस भावना को अपना सकते हैं? यह त्यौहारों का समय है और पूरे देश में लोग नए कपड़े, उपहार, खाने की चीजें और अन्य वस्तुएं खरीदेंगे। 

ऐसा करते समय हमें गांधी जी की एक बात को ध्यान में रखना चाहिए जोकि उन्होंने हमें एक ताबीज के रूप में दी थी। आइए हम इस बात पर विचार करें कि कैसे हमारे क्रिया-कलाप अन्य भारतीयों के जीवन में समृद्धि का दीया जला सकते हैं। चाहे वे खादी के उत्पाद हों या फिर उपहार की वस्तुएं या फिर खाने-पीने का सामान, जिन भी चीजों का वे उत्पादन करते हैं, उन्हें खरीद कर एक बेहतर जिंदगी जीने में हम अपने साथी भारतीयों की मदद करेंगे। हो सकता है कि हमने उन्हें कभी देखा न हो और हो सकता है कि शेष जीवन में भी हम उनसे कभी न मिलें लेकिन बापू को हम पर गर्व होगा कि हम अपने क्रिया-कलापों से अपने साथी भारतीयों की मदद कर रहे हैं।

पिछले 4 वर्षों में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के जरिए 130 करोड़ भारतीयों ने महात्मा गांधी को अपनी श्रद्धांजलि अॢपत की है। ‘स्वच्छ भारत अभियान’, जिसके 4 वर्ष आज पूरे हो रहे हैं, प्रत्येक भारतीय के कठोर परिश्रम के कारण यह आज एक ऐसे जीवंत जन-आंदोलन के रूप में बदल चुका है जिसके परिणाम सराहनीय हैं। साढ़े 8 करोड़ से ज्यादा परिवारों के पास अब पहली बार शौचालय की सुविधा है। 40 करोड़ से ज्यादा भारतीयों को अब खुले में शौच के लिए नहीं जाना पड़ता है। 4 वर्षों के छोटे से कालखंड में स्वच्छता का दायरा 39 प्रतिशत से बढ़कर 95 प्रतिशत पर पहुंच गया है। इक्कीस राज्य और संघशासित क्षेत्र तथा साढ़े 4 लाख गांव अब खुले में शौच से मुक्त हैं। ‘स्वच्छ भारत अभियान’  आत्मसम्मान और बेहतर भविष्य से संबद्ध है। यह उन करोड़ों महिलाओं के भले की बात है जो हर सुबह खुले में दैनिकचर्या से निवृत्त होते समय मुंह छुपाती थीं। मुंह छुपाने की यह समस्या अब इतिहास बन चुकी है। साफ-सफाई के अभाव में जो बच्चे बीमारियों का शिकार बनते थे, उनके लिए शौचालय वरदान बना है। 

कुछ दिन पहले राजस्थान के एक दिव्यांग भाई ने मेरे ‘मन की बात कार्यक्रम’  के दौरान मुझे फोन किया था। उन्होंने बताया था कि वह दोनों आंखों से देखने में लाचार थे लेकिन जब उन्होंने अपने घर में खुद का शौचालय बनवाया तो उनकी जिंदगी में कितना बड़ा सकारात्मक बदलाव आया। उनके जैसे अनेक दिव्यांग भाई और बहनें हैं जोकि सार्वजनिक स्थलों और खुले में शौच जाने की असुविधा से मुक्त हुए हैं। जो आशीर्वाद उन्होंने मुझे दिया वह मेरी स्मृति में हमेशा के लिए अंकित रहेगा। आज बहुत बड़ी संख्या उन भारतीयों की है जिन्हें स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने का सौभाग्य नहीं मिला। हमें उस समय देश के लिए जीवन बलिदान करने का अवसर तो नहीं मिला लेकिन अब हमें हर हाल में देश की सेवा करनी चाहिए और ऐसे भारत का निर्माण करने का हरसंभव प्रयास करना चाहिए जैसे भारत का सपना हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने देखा था।

आज गांधी जी के सपनों को पूरा करने का एक बेहतरीन अवसर हमारे पास है। हमने काफी कुछ किया है और मुझे पूरा विश्वास है कि आने वाले समय में हम और बहुत कुछ करने में सफल रहेंगे। ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए, जे पीर परायी जाने रे’, यह बापू जी की सबसे प्रिय पंक्तियों में से एक थी। इसका अर्थ है कि भली आत्मा वह है जो दूसरों के दुख का एहसास कर सके। यही वह भावना थी जिसने उन्हें दूसरों के लिए जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। हम, 130 करोड़ भारतीय आज उन सपनों को पूरा करने के लिए मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो बापू ने देश के लिए देखे और जिसके लिए उन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया था।-नरेन्द्र मोदी (प्रधानमंत्री, भारत) 


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Pardeep

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