भारत-यू.ए.ई. संबंधों में मील का पत्थर बी.ए.पी.एस. मंदिर

punjabkesari.in Saturday, Feb 17, 2024 - 07:00 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सप्ताह की शुरूआत में अबू धाबी में बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बी.ए.पी.एस.) द्वारा निर्मित मंदिर का उद्घाटन किया, जो भारत-यू.ए.ई. संबंधों में एक महत्वपूर्ण क्षण है। बी.ए.पी.एस. की सामाजिक-आध्यात्मिक हिंदू आस्था का प्रतिनिधित्व करने वाले इस मंदिर की भारत की सांस्कृतिक विरासत में गहरी जड़ें हैं। इसका प्रस्ताव प्रधानमंत्री मोदी की 2015 की संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) यात्रा के दौरान सामने आया और यू.ए.ई. सरकार ने इसके निर्माण के लिए भूमि आबंटित की।

मोदी का यह दावा कि यू.ए.ई. ने अबू धाबी में पहला हिंदू मंदिर स्थापित करके मानव इतिहास में एक ‘सुनहरा अध्याय’ लिखा है, गहराई से प्रतिध्वनित होता है। उनकी यह मान्यता कि यह मंदिर विविध आस्थाओं के प्रतीक के रूप में काम करेगा, केवल सटीक नहीं है, यह भावना उस कालजयी कहावत को भी प्रतिध्वनित करती है- ‘विविधता में घृणा मत समझो’, विभिन्न मान्यताओं के बीच समावेशिता और पारस्परिक सम्मान के महत्व पर जोर देती है।

जबकि अबू धाबी में हिंदू मंदिर का उद्घाटन भारत-यू.ए.ई. संबंधों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, यह उन ऐतिहासिक संबंधों की भी प्रतिध्वनि करता है, जो लंबे समय से दोनों क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। यू.ए.ई. के सहिष्णुता मंत्री शेख नाह्यान बिन मुबारक अल नाह्यान ने कहा कि बी.ए.पी.एस. मंदिर ‘पूरी दुनिया के लिए सांप्रदायिक सद्भाव और वैश्विक एकता का प्रतीक बन जाएगा।’ मंदिर के डिजाइन में ऐसे तत्व शामिल हैं, जो दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देते हैं।

उदाहरण के लिए, इसमें 7 शिकारे या आत्माएं हैं, जो संयुक्त अरब अमीरात बनाने वाले 7 अमीरात का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रवेश द्वार पर दाहिनी मूर्तियां आस्था, दान और करुणा जैसे सार्वभौमिक मूल्यों की प्रतीक हैं। यह मंदिर कृत्रिम रूप से बनाई गई नदियों से घिरा हुआ है, जिनमें गंगा और यमुना का पानी है। मंदिर के डिजाइन में संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रीय पक्षी बाज को शामिल करना मेजबान देश को समान प्रतिनिधित्व प्रदान करने के प्रयास को दर्शाता है।

यह प्रतीकात्मक इशारा सहिष्णुता और स्वीकृति के सांझा मूल्यों का प्रतीक है, जो भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच संबंधों का मार्गदर्शन करता है। मंदिर के निर्माण में यू.ए.ई. की भूमिका को प्रधानमंत्री मोदी की स्वीकृति गैर-इस्लामी आस्थाओं को समायोजित करने, समावेशिता और पारस्परिक सम्मान के माहौल को बढ़ावा देने के लिए देश की प्रतिबद्धता को उजागर करती है।

यह याद रखना चाहिए कि मुगल सम्राट अकबर की मां हमीदा बानो बेगम ने मुस्लिम मुगल दरबार और भारत की ङ्क्षहदू आबादी के बीच सांस्कृतिक अंतर को पाटने में अद्वितीय भूमिका निभाई थी। उनके जीवन का एक आकर्षक पहलू रामायण में उनकी रुचि थी। कुछ वृत्तांतों से पता चलता है कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से रामायण का पाठ सुनने में आनंद आता था। हमीदा बानो ने रामायण का फारसी में अनुवाद करवाया था, जो 1556 में पूरा हुआ। पांडुलिपि 1594 में लाहौर में रखी गई थी और उनके निधन तक हमीदा बानो के पास रही।

यह सचित्र पांडुलिपि, जिसे ‘दोहा रामायण’ के नाम से जाना जाता है, वर्तमान में कतर की राजधानी के इस्लामी कला संग्रहालय में संरक्षित है और यह अंतरधार्मिक सहयोग का एक सुंदर उदाहरण है। यह कोई रहस्य नहीं कि अकबर के दरबार का इस्तेमाल विभिन्न धर्मों और क्षेत्रों से विद्वानों और कलाकारों को इक्ट्ठा करने के लिए किया जाता था। तुर्क, फारसी, पारसी, राजपूत और ब्राह्मण विभिन्न पदों पर कार्यरत थे। दोहा रामायण भारतीय संस्कृति और हिंदू ग्रंथों में मुगल रुचि की अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।

हमीदा बानो का समर्थन ङ्क्षहदू संस्कृति के प्रति सच्ची सराहना को दर्शाता है और सांस्कृतिक विभाजन को पाटने में कला और साहित्य की शक्ति के प्रमाण के रूप में खड़ा है। सद्भाव की दीवार मंदिर की एक उल्लेखनीय विशेषता है। यह संयुक्त अरब अमीरात में सबसे व्यापक 3डी-मुद्रित दीवारों में से एक है और इसमें 30 भाषाओं में ‘सद्भाव’ शब्द उकेरा गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने जोरदार घोषणा की, ‘भारत और संयुक्त अरब अमीरात प्रगति में भागीदार हैं।

हमारा रिश्ता प्रतिभा, सूचना और संस्कृति का है।’ उन्होंने भारत के तीसरे सबसे बड़े व्यापार भागीदार और 7वें सबसे बड़े निवेशक के रूप में संयुक्त अरब अमीरात की स्थिति पर प्रकाश डाला और जीवन स्तर और व्यापार सुविधा में सुधार के लिए सहयोग पर जोर दिया। मोदी ने रेखांकित किया, ‘आज, हर भारतीय की आकांक्षा हमारे देश को 2047 तक विकसित स्थिति की ओर ले जाने की है। यह हमारा भारत है जो मजबूत आॢथक विकास का अनुभव कर रहा है और कई मोर्चों पर विश्व स्तर पर अग्रणी है, जो हमें दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की स्थिति में रखता है।’

अबू धाबी में पहले हिंदू मंदिर का उद्घाटन सहिष्णुता, एकता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक शक्तिशाली प्रतीक है। यह आयोजन विविध संस्कृतियों और आस्थाओं के बीच सहयोग और समझ की क्षमता का उदाहरण देता है, जो भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच कूटनीति और सहयोग के एक आशाजनक भविष्य को आकार देता है।

हालांकि, जैसा कि भारत और यू.ए.ई. इस ऐतिहासिक क्षण को चिह्नित करते हैं, यह हमें लोकतंत्र और बहुलवाद पर विचार करने की याद दिलाता है। मंदिर का सहिष्णुता और समावेशिता का संदेश इन सिद्धांतों से निकटता से जुड़ा हुआ है, जहां हम विविध आवाजों और मान्यताओं का सम्मान करते हैं और उन्हें महत्व देते हैं। इसलिए, इन उत्सवों के बीच भारत की लोकतांत्रिक स्थिति को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है। ‘फ्रीडम इन द वल्र्ड’ रिपोर्ट के 2023 संस्करण के अनुसार, भारत ने 100 में से 66 अंक प्राप्त किए, जो इसे ‘आंशिक रूप से मुक्त’ देशों की श्रेणी में रखता है। -हरि जयसिंह


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